'10 साल की थी तब सीनियर टीम में डाल दिया':सिर फूटा, पट्टी बांधकर खेला और MP के लिए दागे 13 बॉस्केट गोल; उस कप्तान की कहानी

देवेंद्र मीणा/इंदौर4 महीने पहले
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खेलो इंडिया यूथ गेम्स के बॉस्केटबॉल में मध्य प्रदेश बालिका टीम फाइनल की दौड़ से बाहर हो गई लेकिन इस टीम और उसकी कप्तान ओशिन सिंह के जज्बे ने सबका दिल जीता। खासकर, सिर में चोट के बाद भी खेलकर टीम को सेमीफाइनल तक लाने वाली कप्तान ओशिन सिंह की चर्चा है। इस मैच में उन्होंने 13 बॉस्केट किए थे। जानते हैं उनके करियर की कहानी, परिवार और अफसरों की जुबानी…

फ्लाइट से बैंगलुरु में ट्रायल दिया, बोर्ड एग्जाम होने से नतीजे की घोषणा होने से पहले ही लौटीं …

ओशिन को अंडर 17 के लिए ट्रायल देने का मौका पिछले साल मिला था। यह समय तब का था जब उनकी बोर्ड एग्जाम 10वीं की सिर पर थी। पर ओशिन मौका छोड़ना नहीं चाहती थी। एग्जाम जबलपुर में और ट्रायल बेंगलुरु में..।

तय किया कि फ्लाइट से जाकर ट्रायल भी देना है और एग्जाम भी..। बैंगलुरु में देशभर से 70 से 80 लड़कियों कों बुलाया गया था। अंतत: मम्मी के साथ फ्लाइट से रवाना हुईं और दो दिन के ट्रायल में हिस्सा ले लिया। चूंकि एग्जाम का वक्त था इसलिए वापसी ट्रेन से आ रहे थे। मैं ट्रायल के नतीजे के लिए भी नहीं रुक सकती थी क्योंकि एग्जाम भी था। रवाना हो गए तभी वहां से फोन आ गया कि आपका सिलेक्शन हो गया है। कुल 20 लड़कियां चुनी गई थीं।

हम पूरे दिन का सफर करके सुबह सात बजे जबलपुर पहुंच गए और साइंस पेपर का एग्जाम नौ बजे से था। वह भी हल कर आई। वो 72 घंटे की दो बड़ी परीक्षा का पल कभी नहीं भुला पाती हैं।

5-5 मिनट करके एक घंटे तक रोक लेती थी पापा को, अब नहीं रहे

ओशिन अपने प्रैक्टिस के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि पापा कैफे चलाते थे। मैं घर की इकलौती लड़की हूं इसलिए बचपन में प्रेक्टिस के दिनों में बॉस्केटबॉल कोर्ट में छोड़ने और वापस लाने का जिम्मा पापा का ही था। पापा कैफे से टाइम निकालकर छोड़कर चले जाते थे लेकिन जब वापस लेने आते थे तो मैच चल रहा होता था। तब कई बार ऐसा मौका आया है जब 5-5 मिनट इंतजार का कहकर एक घंटे तक उन्हें रुकवा लिया करती थी। पापा इंतजार करते रहते थे और मैं प्रेक्टिस..। 2020 में पापा का निधन हो गया, वो मेरे लिए किसी पहाड़ टूटने से कम नहीं था।

10 साल की उम्र में जूनियर से सीधे स्कूल की सीनियर टीम में मौका
6 नवंबर 2005 को जन्मी ओशिन ने 2015 से बास्केटबॉल खेलना शुरू किया। मां भुवनेश्वरी सिंह ने ओशिन को समर वेकेशन में बास्केटबॉल खेलने के लिए भेजा था। चौथी क्लास में थीं तब पहली बार बास्केटबॉल खेला। तब दो ग्रुप होते थे सीनियर और जूनियर। मुझे जूनियर में रखा लेकिन कोच ने कह दिया कि इसे जूनियर में नहीं, सीनियर ग्रुप में डालो..। तब सीनियर के साथ प्रेक्टिस शुरू कर दी।

कप्तान ओशिन सिंह।
कप्तान ओशिन सिंह।

जब ड्रिल सीखने में अन्य प्लेयर से पिछड़ गई थी ओशिन
ओशिन ने बताया कि बोर्ड एक्जाम के कारण अंडर 17 सिलेक्शन के बाद कैंप में कुछ दिनों के बाद शामिल हुई थी। तब तक अन्य खिलाड़ी बहुत आगे निकल चुके थे। जो ड्रिल थी वो मुझे समझ ही नहीं आ रही थी। पुरानी ड्रिल सीखने में दिक्कत आई। एक तरह से मैं बाकी गर्ल्स प्लेयर से पीछे चल रही थी, क्योंकि वो सारी ड्रिल पूरी कर चुकी थी। मुझे पता नहीं होता था कि करना क्या है। 20 दिन में जो पुरानी ड्रिल छूट चुकी थी उन्हें सीखा।

मैं जितना कर सकती थी अपने पूरे प्रयास मैंने वहां सिलेक्शन के लिए डाल दिए थे। मुझे लग नहीं रहा था मेरा सिलेक्शन होगा लेकिन जब फीबा वुमन्स एशियन चैंपियनशिप के लिए आखिर में 12 खिलाड़ियों का चयन हुआ तो मैं भी उसमें शामिल थी। फिर जॉर्डन में हमारी टीम खेली थी।

ये रहता है रूटीन.. मीठे में रसमलाई पसंद
ओशिन बताती हैं कि सुबह 1 घंटे सेल्फ वर्क आउट रहता है। उसके बाद जिम रहती है। फिर स्कूल और शाम को 5 से 8 बजे तक प्रैक्टिस करती हैं। मिठाई को लेकर ओशिन कहती है कि उन्हें रसमलाई पसंद हैं। बास्केटबॉल जब से खेलना शुरू किया उसके बाद घर पर रहकर अच्छा नहीं लगता था। रोजाना बास्केटबॉल कोर्ट जाती हूं। चार-पांच साल से एमपी के लिए खेल रही हूं। साल 2019 में पहली बार इंडिया के लिए खेला था। तब पापा बहुत खुश हुए थे।

एमपी बास्केटबॉल टीम की कोच रितु शर्मा।
एमपी बास्केटबॉल टीम की कोच रितु शर्मा।

रफ एंड टफ प्लेयर...
एमपी बास्केटबॉल टीम की कोच रितु शर्मा ने बताया कि ओशिन सिंह चार-पांच सालों से उनके संपर्क है और नेशनल में उनके साथ ही वह जाती है। शुरू से ही रफ एंड टफ प्लेयर रही है। जुझारू रही है। एमपी के लिए कुछ करना है। खेल के बताना है इस तरह की प्लेयर है। लड़कियों के लिए स्पोर्टस चैलेंजिंग रहता ही है लेकिन आज ओशिन इंडिया भी खेल रही है तो ये बहुत बड़ी बात है। एमपी की एक स्ट्रान्ग प्लेयर है।

स्पोर्टस ऑफिसर उमाकांत सिंह।
स्पोर्टस ऑफिसर उमाकांत सिंह।

हाईट और स्पीड का गेम है बास्केटबॉल
स्पोर्ट्स ऑफिसर उमाकांत सिंह कहते है कि बास्केटबॉल गेम गर्ल्स के लिए ज्यादा चैलेंजिंग होता है, क्योंकि गर्ल्स की हाइट थोड़ी कम होती है। बास्केटबॉल के गेम का जो नेचर है, ट्रेडिशनली कहा जाता है कि हाइट का गेम है लेकिन ऐसा नहीं है। गेम काफी फास्ट हो चुका है। हाइट के साथ-साथ स्पीड भी मैटर करता है। टीम का कंपोजिशन हम इस तरह बनाते है कि हाइट भी रहे और प्लेयर की स्पीड भी रहे। ये गेम डिसीजन मेकिंग ज्यादा है।

खिलाड़ी ओशिन सिंह।
खिलाड़ी ओशिन सिंह।