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बुधवार शाम को शहर के 15-20 अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत हो गई। कुछ अस्पतालों ने अपने स्तर पर व्यवस्था भी कर ली, लेकिन छह अस्पतालों में स्थिति खराब हो गई। वहां दो-तीन घंटे की ही ऑक्सीजन बची थी, जबकि 150 से ज्यादा गंभीर मरीज ऑक्सीजन पर थे। मरीजों में ऑक्सीजन लेवल कम कर बचत की गई।
कुछ जगह मरीजों को अन्य अस्पताल शिफ्ट करने का सुझाव तक दे डाला। स्थिति बिगड़ती देख कलेक्टर मनीष सिंह ने रात को ही अपर कलेक्टर अभय बेडेकर, बिजली कंपनी से संतोष टैगोर और एकेवीएन से रोहन सक्सेना को प्लांट पर जाकर ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाने और अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए कहा।
बेडेकर पीथमपुर के मित्तल प्लांट पर पहुंचे, टैगोर बाणगंगा स्थित शिवम प्लांट और बीआरजी तथा सक्सेना ने उद्योगों को ऑक्सीजन आपूर्ति रुकवाई। एकेवीएन मैनेजर अनंत टेंबरे, तहसीलदार विनोद राठौर भी प्लांट पर पहुंचे अैर सभी अस्पतालों से सिलेंडर बुलाकर अतिरिक्त श्रमिकों की मदद से पूरी क्षमता से प्लांट चलाए और अस्पतालों को ऑक्सीजन पहुंचाई। रात 3 बजे स्थिति सामान्य हो पाई।
ऑक्सीजन की खपत
संकट में भी लापरवाही
एमजीएम के 3 अस्पतालों में रात को बढ़ जाती है 2 किलो खपत
ऑक्सीजन की किल्लत के चलते गुरुवार को ट्रॉमा सेंटर ने मरीजों को शिफ्ट होने के लिए कह दिया। सुबह 11 बजे सीएमएचओ ऑफिस तक सूचना पहुंची तो एपल हॉस्पिटल से व्यवस्था करवाई गई। सरकारी व निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत के ऑडिट के दौरान एमजीएम मेडिकल कॉलेज में बड़ी लापरवाही का खुलासा हुआ है। मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में दो दिन में ही दो किलो लीटर की खपत बढ़ गई।
बुधवार काे इन अस्पतालों में 15 किलो ऑक्सीजन की खपत हुई थी, जबकि गुरुवार को यह 17 किलो लीटर तक पहुंच गई। ऑडिट में पता चला कि दिनभर में जितनी ऑक्सीजन लग रही है रात में उससे 20 फीसदी ज्यादा खर्च हाे रही है। अंदेशा है कि कर्मचारी फ्लो न बढ़ा देते हों। इसकी जांच की जा रही है। बता दें कि शहर के अस्पतालों में रोजाना एक टन लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है।
नर्सिंग स्टाफ बढ़ा देता है फ्लो, अब रोकेंगे
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