चाइल्ड लाइन वर्कर्स की निजी जिंदगी भी कई पेंच:हादसों के शिकार नौनिहालों को उबारने वाले वर्कर्स को साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग

इंदौर2 वर्ष पहले
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प्रकृति से प्रेम करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। - Dainik Bhaskar
प्रकृति से प्रेम करने की ट्रेनिंग दी जा रही है।

विभिन्न प्रकार के हादसों का शिकार हुए बच्चों को उनके साथ हुई घटना से उबारने वाले वाली ‘चाइल्ड लाइन’ के वर्कर्स की निजी जिंदगी में परेशानियों के पेंच हैं जिसका वे किसी को अहसास नहीं होने देते। इसका कारण उनकी पहली प्रतिबद्धता बच्चों को हादसे से उबाकर उनका भविष्य संवारना है लेकिन अब खुद वर्कर्स की निजी जिंदगी में परेशानियां बढ़ते जा रही हैं। इसके मद्देनजर अब 40 से ज्यादा चाइल्ड लाइन वर्कर्स को साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि उनका आत्मविश्वास व मनोबल और बढ़े तथा इसका फायदा खुद को, परिवार को और रेस्क्यु किए गए बच्चों को भी मिले। चार दिनी इस ट्रेनिंग में इन वर्कर्स ने मुसीबतों का सामना कैसे करना है, इसके सहित कई गुर सीख लिए हैं।

चाइल्ड लाइन ऑफिस में लाइफ स्किल पर ट्रेनिंग।
चाइल्ड लाइन ऑफिस में लाइफ स्किल पर ट्रेनिंग।

लंबे समय से शहर में मासूमों के साथ हो रहे दुष्कर्म, ज्यादती आदि के मामले बढ़े हैं जिनमें पुलिस या अन्य विभागों द्वारा संबंधितों पर कार्रवाई के बाद ऐसे मासूमों को ‘चाइल्ड लाइन’ के सुपुर्द किया जाता है। दूसरा खुद ‘चाइल्ड लाइन’ के वर्कर्स भी मैदानी तौर पर इस िदशा में काम करते हैं कि जिले में कहां मासूमों के साथ अत्याचार हो रहा है। इसमें दुष्कर्म, ज्यादती, बाल श्रम सहित कई मामले होते हैं। दुष्कर्म के कई मामले तो ऐसे होते हैं जिसमें सौतेला पिता, रिश्तेदार, ट्यूटर या कोई नजदीकी उसके साथ लगातार ऐसे कृत्य करता है लेकिन मासूम डर के कारण घुटते रहते हैं। इनके सहित सैकड़ों मामले बीते सालों में ‘चाइल्ड लाइन’ तक पहुंचे हैं।

सैकड़ों बच्चों को हादसों से उबारा

ऐसे मामलों में आरोपियों पर केस दर्ज करने के साथ बच्चों को रेस्क्यु कर ‘चाइल्ड लाइन’ भेजा जाता है। वहां इन मासूमों से विशेष तरीके से पूछताछ कर घटना से जुडे सूत्र जुटाए जाते हैं ताकि आरोपी को सजा दिलाने में मदद हो और इसके साथ ही बच्चों को फिर उस घटना से उबराने के लिए मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, रचनात्मक आदि तरीकों से उस माहौल को भुलाने के प्रयास किए जाते हैं जिसमें वह लंबे समय से जी रहा था। फिर उन्हें संबंधित आश्रम में भेज दिया जाता है। इस दिशा में काफी समय से यह काम चल रहा है और बेहतर नतीजे भी सामने आए हैं।

अब खुद की जिंदगी में मुसीबतें

दूसरी ओर जो वर्कर्स इन बच्चों को नया जीवन दे रहे हैं, उन्हें आत्म संतोष तो मिलता ही है साथ में पारिश्रमिक भी। दरअसल, ये सभी वर्कर्स अलग-अलग समाजों से होते हैं जिनमें महिला-पुरुष दोनों हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वे इस क्षेत्र में इसलिए भी काम कर रहे हैं कि उन्हें बच्चों से भी लगाव है और वे उनके लिए अच्छा करना चाहते हैं। बीते सालों में इन लोगों ने रेस्क्यु किए गए बच्चों के साथ हुई घटना को बहुत बारीकी से देखा व समझा है। ऐसे में इस तरह के केसों में दिनरात उलझे रहने जैसी समस्या तो ही है अधिकांश वर्कर्स की निजी जिंदगी में भी कई परेशानियां हैं। इनमें से कुछ वर्कर्स ने यह दुख ‘चाइल्ड लाइन’ व इससे जुड़ी संस्था ‘आस’ के डायरेक्टर वसीम इकबाल से साझा किया तो धीरे-धीरे एक-एक की परेशानी सामने आई।

ट्रेनिंग का एक अंदाज यह भी।
ट्रेनिंग का एक अंदाज यह भी।

साइकोलॉजिकल एक्सपर्ट डॉक्टरों से टायअप

बकौल वसीम इकबाल इसमें सीधे तौर पर वर्कर्स का कोई दोष नहीं है। दरअसल जिस व्यक्ति को जैसा माहौल मिलता है उसके कारण फिर उसका स्वभाव भी बदलने के साथ चिड़चिड़ा हो जाता है। जैसे पुलिस विभाग से जुड़े पुलिसकर्मी का स्वभाव उसके परिवार में सख्ती या गाली-गलौज के रूप में सामने आता है। इसके चलते इन 40 वर्कर्स को चार दिन की ट्रेनिंग दी जा रही है। इसमें ‘चाइल्ड लाइन’ ने शहर के साइकोलॉजिकल एक्सपर्ट डॉक्टरों से टायअप किया है जो इन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं जिसमें कई बिंदु हैं।

- एक तथ्य यह सामने आया है कि नेटफिलिक्स, अमेजान या इस तरह के प्लेटफॉर्म पर मारधाड़ जैसी फिल्में देखने से नेगेटिविटी आ रही है, इससे दूर रहकर कैसे मनोरंजक या रचनात्मक माहौल से खुद को जोड़े, इसकी ट्रेनिंग दी जा ही है।

- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर जोर दिया गया है। इसके तहत व्यक्ति तकनीकों पर इतना निर्भर हो गया है, उससे बाहर ही नहीं आना चाहता। ऐसे में उससे दूर रहकर कैसे निर्भर रहा जा सकता है।

- कम्युनिकेशन स्किल, लाइफ स्किल, डिसीजन मैकिंग आदि बिंदुओं पर भी ट्रेनिंग दी जा रही है।

- प्रकृति से प्रेम, कर्ण प्रिय गीत-संगीत व मनोबल बढ़ान जैसे तरीकों पर भी काम किया जा रहा है।

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