इंदौर में भी डेंगू के डी-2 व डी-3 वैरिएंट सामने आए हैं। ये दोनों टाइप ज्यादा घातक होते हैं। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को इंदौर सहित प्रदेश से भेजे गए सैंपल की जांच में इसकी पुष्टि हुई है। इंदौर में जनवरी से अब तक सरकारी रिकॉर्ड में एक हजार 119 मामले डेंगू के सामने आ चुके हैं। निजी लेबोरेटरीज में पॉजिटिव मरीजों की संख्या आठ से दस गुना ज्यादा है। बदले हुए वैरिएंट का पता लगाने के लिए आईसीएमआर ने कुछ जिलों से सैंपल्स मंगवाए थे। इसमें कुछ सैंपल में डी1-3, डी2-3 टाइप का वैरिएंट मिला है।
इस साल अगस्त से डेंगू केस की संख्या बढ़ना शुरू हुई थी। सितंबर तक यह चरम पर पहुंच गया। यहां भी सरकारी व निजी अस्पतालों में यह स्थिति बनी थी कि बेड कम पड़ने लगे थे। उसी समय यह आशंका जताई जा रही थी कि कहीं कोरोना वायरस की तरह डेंगू भी अपना स्ट्रेन तो नहीं बदल रहा? डेंगू वायरस के सीरो-टाइप को समझने के लिए यह स्टडी की गई। मप्र में भी जबलपुर स्थित आईसीएमआर के पास यह जिम्मेदारी थी।
स्वास्थ्य विभाग ने कुल 25 सैंपल्स भिजवाए थे। इनमें 12 सैंपलों की जांच में से 11 सैंपल्स पॉजिटिव मिले हैं। इनमें सात मरीजों में टाइप-2 और 3 मिला है। यह ज्यादा संक्रामक माने जाते हैं। संक्रमण की गंभीरता ज्यादा हो जाती है। इनके होने से एक्यूट हेमोरेजिक फीवर में जाने की संभावना अधिक होती है। एक मरीज में डी-1 भी मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार कमोबेश सभी प्रकार के स्ट्रेन वाले डेंगू में एक जैसे ही लक्षण होते हैं। डी-2 ज्यादा घातक होता है। आमतौर पर लक्षणों में बुखार, उल्टी, जोड़ों में दर्द आदि समस्याएं ज्यादा होती हैं।
डी2 वैरिएंट ही महाराष्ट्र-गोवा में बीमारी की बड़ी वजह था
महाराष्ट्र सहित कई अन्य राज्यों में बढ़ते डेंगू के मामलों की बड़ी वजह टाइप-2 डेंगू को माना गया था। खास बात यह है कि पहले से यदि कोई डेंगू संक्रमित हो तो टाइप-2 उन्हें ज्यादा घातक तरह से संक्रमित करने की क्षमता रखता है। शरीर के अन्य अंग गंभीर संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। इसे तेजी से फैलने वाला सीरो-टाइप माना जाता है। आईसीएमआर ने राष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्टडी करवाई थी। शुरू में महाराष्ट्र व गोवा में सीरो टाइप समझने के लिए हजारों सैंपलों की जांच की गई थी। इसमें डी 2 सहित कई वैरिएंट मिले थे।
एक्सपर्ट- डेंगू के एक टाइप की एंटीबॉडी अन्य टाइप के बुखार से नहीं बचाती
डी1, डी2, डी3, डी4 डेंगू वायरस के ही अलग-अलग प्रकार हैं। अब नया प्रकार डी-5 भी सामने आया है। इन सभी के लक्षण समान होते हैं। किसी भी एक प्रकार का डेंगू हाेने पर दूसरा प्रकार अटैक कर सकता है। उदाहरण के लिए अगर आप डेंगू के डी-1 टाइप से प्रभावित हुए हो और बुखार आया तो इससे बनने वाली एंटीबॉडी मरीज को डी2 या डी3 टाइप के डेंगू वायरस के बुखार से नहीं बचाती है। दूसरी बार संक्रमण होने पर वह खतरनाक हो सकता है। इससे मरीज में डेंगू हेमोरेजिक, शॉक सिंड्रोम या प्लेटलेट्स कम होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है।
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