संक्रांत पर शहर पतंगबाज़ी के लिए एक बार फिर तैयार है। शहर में इस साल 10 रुपए में 5 पतंग से लेकर 100 रुपए में 5 पतंग तक मिल रही हैं। 1000 रु. की भी पतंगें हैं। मांझा भी 300 से लेकर 1000 रुपए तक में बेचा जा रहा है। पतंगों पर कोरोनो संक्रमण से बचिए, वॉश योर हैंड ... जैसे संदेश लिखे हैं। गुजरात से पतंगें मंगाई गई हैं। जर्मनी के राइस पेपर से बनी पतंग भी अवेलेबल है। पिछले साल के मुकाबले भाव बढ़ गए हैं।
शहर में रानीपुरा, काछी मोहल्ला, तिलक नगर, विजय नगर, पाटनीपुरा व अन्य इलाकों में पतंग की दुकानें सजी हैं। पबजी, निंजा हथोडी, छोटा भीम, स्पाइडर मैन, हैप्पी न्यू ईयर, राजनेताओं के चेहरे प्रिंटेड पतंगे भी हैं। इन इलाकों में पतंगबाजी का भी क्रेज ज्यादा है।
पतंगों के नाम हैं फेमस
चील, परेल, कानबाज, नीलमपरी, चांदबाज, लिप्पू और डग्गा... ये पतंगों के नाम हैं, जो उनके आकार-प्रकार और रंगों के आधार पर रखे गए थे। पुराने लोगों को आज भी इनकी पहचान है। पुरानी किस्म की पतंग, जो जर्मनी ताव (राइस पेपर) से बनाई जाती थी, वो आज भी बिकती है।
पन्नी पर कार्टून कैरेक्टर वाली पतंग
शहर में ज्यादातर पतंग का सामान अहमदाबाद से आता है। रानीपुरा के थोक व्यापारी के अनुसार इस बार पन्नी की पतंग की ज्यादा मांग है। पिछले कुछ साल से संक्रांति पर पतंग प्रेमियों के उत्साह में कमी आ गई थी। तीसरी लहर के बावजूद पतंगबाजी होने से लोगों का इस ओर रुझान फिर से बढ़ गया।
मटका और पैराशूट पतंग आकर्षण का केंद्र
काछी मोहल्ले में पैराशूट पतंग को पैराशूट के कपड़े से बनाया गया है। यह गुजरात से बनकर आती है। 1 हजार रुपए में बिकती है। इसे बरेली के विशेष धागे से ही उड़ाया जाता है, जिसके एक गट्टे की कीमत करीब तीन हजार रुपए है। मटका पतंग का नीचे से आकार मटके जैसा होता है, इसलिए इसका नाम मटका पतंग है।
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