प्रदेश की शिक्षा नीति में हिंदी भाषा का दायरा सिमट गया है। भले ही प्रश्न-पत्र 35 से 50 अंकों का कर दिया गया है, लेकिन अब लघु उत्तरीय व दीर्घ उत्तरीय प्रश्न नए एग्जाम पैटर्न से हटा दिए गए हैं। अब प्रश्न-पत्र में सभी ऑब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाएंगे। ऐसे में विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि इससे हिंदी का दायरा सिमट जाएगा, क्योंकि छात्र हिंदी की विस्तृत पढ़ाई करने के बजाय केवल ऑब्जेक्टिव की तैयारी करेंगे।
विभाग ने अंग्रेजी भाषा के प्रश्न-पत्र में भी यही व्यवस्था लागू कर दी है। हिंदी के रिटायर प्रोफेसर डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल बताते हैं कि प्रश्न-पत्र में व्याकरण से जुड़े प्रश्न नहीं पूछे जाने से हिंदी का दायरा सीमित होगा। खासकर उसकी शुद्धता पर असर पड़ेगा। आज की युवा पीढ़ी व्याकरण को लेकर पहले जितनी गंभीर नहीं है।
मात्रा की गलती की वजह से हिंदी की शुद्धता सवालों के घेरे में रहती है। वहीं, शिक्षाविद डॉ. रमेश मंगल कहते हैं इस निर्णय से हिंदी के विस्तार पर विपरीत असर पड़ेगा, क्योंकि छात्र व्याकरण, गद्यांश पढ़ेगा तो यही, लेकिन लिखने में अशुद्धि की बढ़ेगी। कम से कम इस प्रश्न-पत्र में प्रश्न लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय होना चाहिए।
पहले यह था सिस्टम
अभी के एग्जाम पैटर्न में हिंदी के 35 अंक के प्रश्न-पत्र में लघु और दीर्घ उत्तरीय के साथ ही 5 से 10 वैकल्पिक प्रश्न पूछे जाते थे। छात्र को कम से कम 20 पेज की कॉपी भरना होती थी। दरअसल, बीकॉम, बीए और बीएससी के तीनों वर्ष में फाउंडेशन ग्रुप में हिंदी भाषा का प्रश्न-पत्र अनिवार्य है।
अब 100 अंकों का एक प्रश्न-पत्र
अब स्नातक स्तर पर आधार पाठ्यक्रम को सामान्य सामरिक ज्ञानवर्धक कर दिया गया है। प्रथम वर्ष में भाषा के साथ योग व पर्यावरण संरक्षण विषय को शामिल किया गया है। तीन वर्ष के आधार पाठ्यक्रम में प्रति वर्ष 200 अंकों के दो प्रश्न-पत्र रखे गए हैं। इसमें 100 अंकों का एक प्रश्न-पत्र भाषा का होगा, जिसमें 50 अंक हिंदी व 50 अंक अंग्रेजी के लिए होंगे।
दूसरे प्रश्न-पत्र में भी 50-50 अंक के दो भाग होंगे। इन विषय में अब आंतरिक मूल्यांकन नहीं होगा। हालांकि, उच्च शिक्षा विभाग का तर्क है कि छात्रों को अब संपूर्ण सिलेबस का सूक्ष्म अध्ययन करना होगा। इससे वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर पाएंगे।
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