मध्यप्रदेश के कई मंदिरों में आज अन्नकूट का आयोजन किया जा रहा है। मान्यता है कि अन्नकूट की यह परंपरा इंदौर के 400 साल पुराने राजाधिराज श्री वीर अलीजा हनुमान मंदिर से शुरू हुई थी। बुधवार शाम को भगवान को भोग अर्पित किया गया और अन्नकूट महोत्सव शुरू हुआ। आइए जानते है इस मंदिर की महिमा...
राजाधिराज श्री वीर अलीजा हनुमान मंदिर, वीर बगीची इंदौर के पश्चिम क्षेत्र में पंचकुईया में स्थित है। आंवला नवमी और हनुमान जयंती पर मंदिर में बड़े आयोजन किए जाते हैं। लाखों रुपए के स्वर्ण आभूषण से भगवान का श्रृंगार होता है। इस हनुमान मंदिर से सैकड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी है। मंदिर जितना पुराना है, उसके किस्से भी उतने ही अनोखे हैं। हनुमान जी की जो प्रतिमा है, वह कई सालों तक एक मंजिल नीचे तलघर में थी। इसी स्थान पर एक ऐसा मंदिर भी है जहां रोजाना आधा किलो भांग का भोग हनुमान जी को अर्पित किया जाता है।
मंदिर का इतिहास भी है अनूठा
400 साल पहले हनुमान जी का प्राकट्य हुआ। यहां के सबसे पहले गुरु श्रीश्री 1008 कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज नेपाल से आए थे। जिन्होंने यहां तप किया। महाराज तुकोजीराव भी यहां आते थे। जानकारों ने बताया कि महाराज की मनोकामना पूरी होने पर उन्होंने एक मार्ग का नाम भी कैलाश मार्ग रख कर सम्मान किया था। कैलाशानंद महाराज के शिष्य श्रीश्री 1008 औंकारानंद ब्रह्मचारी जी महाराज बनें। उन्होंने भी इस भूमि पर तप किया। यहां का विकास किया।
औंकारानंद जी महाराज को स्वप्न आया था कि वे बद्रीविशाल का मंदिर बनवाएं। हालांकि उनका ये स्वप्न औंकारानंद महाराज के शिष्य श्रीश्री 1008 प्रभुवानंद ब्रह्मचारी महाराज ने पूरा किया। 1925 से लेकर 2017 तक उन्होंने मंदिर की गादी संभाली। करीब 108 वर्ष की उम्र में वे ब्रह्मलीन हुए। इनके बाद अब वर्तमान में पवनानंद ब्रह्मचारी महाराज गादिपति है। पवनानंद ब्रह्मचारी महाराज का दावा है कि अन्नकूट परंपरा भी इसी मंदिर से शुरू हुई है। सबसे पहले महाराज यानी श्रीश्री 1008 कैलाशानंद महाराज ने इस मंदिर में अन्नकूट कराया था।
जानिए मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा के बारे में
मंदिर के पुजारी पवनानंद ब्रह्मचारी महाराज ने बताया कि श्रीश्री 1008 कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज और औंकारनंद ब्रह्मचारी महाराज हनुमान जी की प्रतिमा को तलघर से ऊपर लेकर आए थे। उस वक्त काफी कोशिश के बाद भी प्रतिमा उठ नहीं रही थी। तब महाराज जी ने ब्राह्मण भोज कराने का संकल्प लिया था। इसके बाद प्रतिमा को तलघर से हटाया जा सका। इसी प्रकार 1985 में हनुमान जी ने चोला छोड़ा था। उस वक्त 25 लोगों ने चोला हटाने का प्रयास किया, लेकिन वे नहीं उठा सके। उस दौरान श्रीश्री 1008 प्रभुवानंद ब्रह्मचारी महाराज ने भगवान से विनती की, जिसके बाद चोले को उठाया जा सका।
मंदिर में भगवान हनुमान की प्रतिमा स्वयंभू है। खजूर के पेड़ के नीचे यह प्रतिमा निकली थी। काले पाषाण की हनुमान जी की ये प्रतिमा वीर मुद्रा में है। हनुमान जी के एक हाथ में गदा तो दूसरे हाथ में पर्वत उठाए हुए हैं। प्रतिमा की ऊंचाई 5 फीट तो चौड़ाई 3 फीट है। यह प्रतिमा पश्चिम मुखी है। मान्यता है कि यहां आने और अर्जी लगाने पर भक्तों की मनोकामना जल्द पूरी होती है। रोजाना बड़ी संख्या में भक्त यहां के दर्शन करने आते हैं।
आधा किलो भांग का लगता है भोग
मंदिर के पुजारी पवनानंद ब्रह्मचारी महाराज ने बताया कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां हनुमान जी को आधा किलो भांग का भोग रोजाना लगाया जाता है। आमतौर पर भगवान भोलेनाथ को भांग का प्रसाद अर्पित किया जाता है, लेकिन पुजारी का दावा है कि यह विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां हनुमान जी को भांग का भोग अर्पित किया जाता है।
बद्री विशाल का मंदिर भी इसी जगह
मंदिर के पुजारी ने बताया कि हनुमान जी की मंदिर के ठीक सामने बद्री विशाल का मंदिर है। उनका दावा है कि उत्तराखंड के बाद यहां पर मंदिर को बनाया गया। मंदिर परिसर में ही शिव जी का संतानेश्वर महादेव मंदिर भी बना है। यहां की मान्यता है कि जो भी यहां मनोकामना करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर में 400 सालों से निरंतर अखंड प्रज्ज्वलित धुना है। यहां बैठकर मंदिर के सभी गादीपति तपस्या कर चुके हैं।
भक्तों ने बताई हनुमान जी की महिमा
भक्त धीरज गोयल ने बताया कि वे पिछले कुछ दिनों से ही मंदिर में आ रहे हैं। यहां इतनी सिद्धि है कि कैसा भी दुख-दर्द हो, ठीक हो जाता है। मंदिर में आकर शांति महसूस होती है। भक्त गोविंद यादव ने बताया कि 25 सालों से वे यहां आ रहे हैं। यह एक सिद्ध पीठ है। मान्यता ऐसी है कि आप जो भी मनोकामना लेकर आएंगे वह पूरी हो जाती है। ये हनुमान जी की कृपा और ब्रह्मचारी महाराजों का तप है।
मंदिर में डोरा-ताबीज के भी चर्चे
मंदिर में डोरा-ताबीज और झाड़न के लिए काफी बच्चे आते हैं। मंगलवार और शनिवार को यहां डोरा-झाड़न दी जाती है। उन्होंने कहा कि यहां का ताबीज विदेशों तक जाता हैं। मंदिर में गोशाला है, जिसमें 50 गाय हैं। यहां पर पाठशाला भी है। यहां 10 से 12 बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं।
अन्नकूट में पर्यावरण बचाने का संदेश
यहां होने वाले अन्नकूट महोत्सव में पर्यावरण बचाने का संदेश दिया जा रहा है। अन्नकूट महोत्सव में डिस्पोजल और प्लास्टिक को बैन किया गया है। यहां स्टील के ग्लास में ही भक्तों को पानी दिया गया। इसके लिए पांच हजार स्टील के ग्लास भी भक्त मंडल द्वारा खरीदे गए। यहां आने वाले भक्तों को हरे पत्ते पर प्रसादी परोसी गई। इस अन्नकूट में 20 हजार से ज्यादा भक्तों आए। अन्नकूट में 100 से ज्यादा भक्तों ने पूरी व्यवस्थाएं संभाली। मंदिर में अन्नकूट महोत्सव को लेकर साज सज्जा भी की गई थी। भगवान को छप्पन भोग भी लगाया गया। महोत्सव का निमंत्रण सोशल मीडिया पर भी दिया गया था। अन्नकूट महोत्सव में 10 महाराज और 20 से ज्यादा उनके सहयोगी भोजन व्यवस्था की कमान संभाली।
भगवान को भोग अर्पित करने के साथ शुरू हुआ अन्नकूट
मंदिर में वीर अलीजा सरकार की आरती और भोग अर्पित किया गया। जिसके बाद यहां अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत हुई। बड़ी संख्या में भक्त यहां पर भोजन प्रसादी ग्रहण करने के लिए पहुंचे। यहां पर भक्तों के बैठकर भोजन प्रसादी ग्रहण करने की व्यवस्था की गई।
फोटोज में देखिए मंदिर में अन्नकूट
इंदौर के दो बड़े मंदिरों में भी अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया गया। रणजीत हनुमान मंदिर में अन्नकूट महोत्सव हुआ। मंदिर के पुजारी पं.दीपेश व्यास ने बताया कि आंवला नवमी पर करीब 35 हजार भक्तों के लिए भोजन प्रसादी बनाई गई। मंदिर परिसर के पास बने ग्राउंड में भक्तों के भोजन की व्यवस्था की गई थी। श्री लक्ष्मी वेंकटेश देवस्थान छत्रीबाग में भी आंवला नवमी के मौके पर अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया गया।
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