फिलहाल सोयाबीन को लेकर अड़चनें हैं। विदर्भ में जब सोयाबीन की शुरुआत हुई, तो 15-20 क्विंटल सोयाबीन प्रति एकड़ हुआ था। फिर धीरे-धीरे अमरावती, अकोला की ओर भी हुआ। अब एवरेज 4 से 5 क्विंटल पर आया है। अमेरिका में 30 क्विंटल प्रति एकड़ सोयाबीन का प्रोडक्शन होता है। ब्राजील में 26 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। अर्जेन्टीना में 26 व 28 क्विंटल है।
सबसे बड़ा चैलेंज है कि कोई भी सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन प्लांट पूरी कैपेसिटी यूज नहीं कर पाता, क्योंकि रॉ मटेरियल की उपलब्धता बड़ी समस्या है। अगर हम सोयाबीन का प्रति एकड़ में प्रोडक्शन बढ़ाने में सक्सेस हुए तो क्रॉप पैटर्न बदल सकता है। अगर क्रॉप पैर्टन में 15 क्विंटल सोयाबीन का प्रॉडक्शन होगा, तो किसानों को अच्छा मुुनाफा मिल सकता है।
यह बात केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) द्वारा ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इंटरनेशनल सोया कॉन्क्लेव में वर्चुअल उपस्थिति में कही। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत निर्माण करने की प्रक्रिया में हमें एडिबल ऑयल का इम्पोर्ट जीरो पर लाना होगा। अभी हम 65 % इडिबल ऑयल इम्पोर्ट कर रहे हैं। इस कारण तेल के भाव भी ज्यादा हैं। किसानों को एग्रीकल्चर में इकॉनॉमिक वॉयबलिटी उतनी नहीं मिल रही।
इस साल ब्राजील एक्सपोर्ट होगी शुगर
उन्होंने कहा कि हमारे पास शुगर, राइस सरपल्स, व्हीट सरपल्स पर हैं। इंटरनेशनल मार्केट में शुगर के भाव 22-23 रु. किलो है। वहीं, भारत में 32-33 रु. किलो है, इसलिए हम एक्सपोर्ट नहीं कर पा रहे थे। इस साल ब्राजील में शुगर का प्रोडक्शन कम होने के कारण शायद हमारी शुगर कुछ एक्सपोर्ट हो सके। दो साल पहले 6 हजार करोड़ रु. केवल शुगर एक्सपोर्ट करने के लिए इन्सेंटिव दिए थे। ऐसे ही, पिछले साल 4 हजार करोड़ रु. इन्सेंटिव के लिए दिए थे।
सरसों की तरह सोयाबीन सीड को डेवलप करने की आवश्यकता
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल इसका एप्रूवल दिया है, जिसमें तेलंगाना, आंध्र में विशेष रूप से अंडमान निकोबार में पॉम का विशेष प्रकार से प्लांटेशन करके उसका भी ऑयल प्रोडक्शन बढाने की कोशिश कर रहे हैं। सरसों के सीड में थोड़ा सुधार हुआ है। इसके कारण उत्तर भारत में सरसों का उत्पादन भी बढ़ा है। सोयाबीन का प्रति एकड़ प्रोडक्शन कैसे बढ़े, सबसे जरूरी विषय है।
सीड को लेकर दिक्कत है। मार्केट में जो सीड मिल रहा है, उसकी क्वालिटी में भी कमियां हैं। अभी तक देश में जीएम सीड को लेकर काफी विवाद है। जिस प्रकार से हमने सरसों का सीड डेवलप किया है, उसी प्रकार सोयाबीन का भी सीड डेवलप करके आगे जाने की आवश्यकता है। विशेष रूप से प्लांट पैथोलॉजी में सोयाबीन पर जो डिसीजन आते हैं, उसमें रिसर्च करके समाधान ढूंढ़ना होगा।
कंपनियां मोटे अक्षरों में मिलावटी तेल का प्रतिशत लिखें
उन्होंने कहा कि सोयाबीन पर जितना प्रति एकड़ प्रोडक्शन बढ़ाएंगे, सोयाबीन का प्लांटेशन बढ़ेगा। तेल की शॉर्टेज होने के कारण और इम्पोर्ट ड्यूटी का बैलेंस बनाना होगा। अभी इम्पोर्ट ड्यूटी बहुत कम की है क्योंकि बाजार में तेल के भाव बढ़ गए थे। मेरा सुझाव है कि सोयाबीन का रेट MSP के नीचे जाएगा, इतनी इम्पोर्ट ड्यूटी कम करना भी उचित नहीं होगा। उन्होंने बायोएनर्जी के लिए सोया तेल का उपयोग करने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा जो कंपनियां मिलावट करती हैं, उन्हें मोटे शब्दों में बताना चाहिए कि खाद्य तेलों का निर्माण करते समय कितने प्रतिशत तेल मिलाए गए हैं।
सोया केक में काफी प्रोटीन्स
उन्होंने कहा कि सोया केक में बहुत प्रोटीन्स हैं। इस पर रिसर्च करके इसके कुछ फूड आइटम्स कैसे तैयार कर करें, इस पर काम होना चाहिए। अमेरिका में सोया से वेज मटन व वेज चिकन बना है। यह 30 फीसदी मटन व चिकन में एड करें, तो भी ध्यान नहीं आता। नए प्रयोग किए बना किसानों को कीमत अच्छी नहीं मिलेगी और तेल व एडिबल के मामले में भारत आत्मनिर्भर नहीं बनेगा। हमें एरिया वाइज ऑयल प्रोडक्शन को बढ़ाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर SOPA अध्यक्ष डॉ. दाविश जैन ने मप्र में सोयाबीन को लेकर स्थिति स्पष्ट की। सोपा ने सुझाव दिया कि सरकार को खाने की सभी वस्तुओं को टैक्स फ्री करना चाहिए। सोया कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र को ACS (एग्रीकल्चर एण्ड फॉर्मर वेलफेयर, मप्र) अजीत बी. केसरी व डॉ दावीश जैन, ICAR डायरेक्टर डॉ. नीता खांडेकर ने भी संबोधित किया। पहले सेशन में डॉ पीजी पेडगांवकर, सुरेश चित्तूरी, प्रेरणा देसाई और वंदना भारती सहित विशेषज्ञों ने पोल्ट्री उद्योग, सोयाबीन, सोया तेल और सोया मील की मांग व आपूर्ति के पूर्वानुमान पर अपने विचार रखे। पैनल डिस्कशन में अतुल चतुर्वेदी, सुधाकर देसाई, विवेक पाठक, संदीप बजरिया, मनीष गुप्ता, अजय परमार, ए.जानकीरमन, हेमंत बंसल और खालिद खान ने भाग लिया।
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