जबलपुर तिलवारा दयोदय में ठहरे आचार्य विद्यासागर 75 वर्ष के हो जाएंगे। शरद पूर्णिमा के दिन वे पैदा हुए थे। 22 साल की उम्र में दीक्षा ले ली थी। बाद में परिवार के सभी लोग सन्यास ले चुके हैं। उनके जीवन से जुड़े ऐसे कई बातें हैं, जो लोगों को आश्चर्य में डाल सकता है।
आचार्य विद्यासागर का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। जबकि मां श्रीमंती बाद में आर्यिका समयमति बन गई। विद्यासागर महाराज 30 जून 1968 में अजमेर में 22 की उम्र में आचार्य ज्ञानसागर से दीक्षा ली, जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे।
1972 में आचार्य का मिला था पद
आचार्य विद्यासागर को 22 नवंबर 1972 को ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। सिर्फ विद्यासागर महाराज के बड़े भाई गृहस्थ है। उनके अलावा घर के सभी लोग संन्यास ले चुके है। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाए।
कई भाषाओं की जानकारी
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं।
काव्य मूक माटी की भी रचना की है
उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
आचार्य विद्यासागर के बारे में रोचक जानकारी
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