सरकारी कंपनी ग्रामीण विद्युतीकरण कॉरपोरेशन (REC) ने MP में पावर ट्रांसमिशन-2 का ठेका 1200 करोड़ रुपए में अडाणी समूह दिया है। अगले 35 सालों तक अडाणी समूह ट्रांसमिशन लाइन के रखरखाव से लेकर संचालन का काम संभालेंगी। इसके एवज में उसे प्रदेश की वितरण कंपनियों से टैरिफ के अनुसार हर साल 250 करोड़ रुपए मिलेंगे। ये पैसा सीधे आम उपभोक्ताओं की जेब से बिजली की दर बढ़ाकर वसूला जाएगा। एक महीने का बिल 13 रुपए ज्यादा आएगा।
MP पावर ट्रांसमिशन कंपनी ने 2027 तक की ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखकर ट्रांसमिशन क्षमता के विस्तार का प्रोजेक्ट तैयार किया था। अभी तक REC एमपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी को ही ठेका दे रही थी। इसमें 30% अंशपूंजी राज्य सरकार देती थी, पर इस अंशपूंजी से बचने के लिए बिड में निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी शामिल किया था।
1700 करोड़ रुपए का था पूरा प्रोजेक्ट
एमपी ट्रांसमिशन कंपनी की ओर से ट्रांसमिशन लाइन के विस्तार की जो कार्ययोजना तैयार की गई थी। इस बिड में एमपी पावर ट्रांसमिशन सहित अन्य कंपनियां भी शामिल हुई थीं। पर सबसे कम बोली 1200 करोड़ रुपए के आधार पर गौतम अडाणी की कंपनी अडाणी ट्रांसमिशन लिमिटेड (ATL) को मिला है। कंपनी को 35 साल तक ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट्स के निर्माण, स्वामित्व, संचालन और रखरखाव का काम करेगी।
कंपनी को ये काम मिला है
ऐसे समझिए पावर ट्रांसमिशन के काम को
पावर प्लांटों से आपके घर तक बिजली पहुंचाने का काम पावर ट्रांसमिशन कंपनियां करती हैं। वह बिजली का तार, सब स्टेशन बनाती हैं और उसकी देखरेख करती हैं। यह खर्च वह बिजली वितरण कंपनियों से वसूलती हैं। बिजली वितरण कंपनियां यह खर्च आम उपभोक्ता से लेती हैं।
आम लोगों की जेब से हर साल 150 रुपए लेकर कंपनी को देने पड़ेंगे
कंपनी को हर साल ट्रांसमिशन लाइन का उपयोग करने के एवज में विद्युत वितरण कंपनियों से 250 करोड़ रुपए के लगभग भार पड़ेगा। विद्युत वितरण कंपनियां ये रकम आम उपभोक्ताओं की बिजली को महंगी करके जुटाएंगी। प्रदेश में अभी मौजूदा समय में 1.59 करोड़ उपभोक्ता हैं। औसत भार मानें ताे हर उपभोक्ता पर 157 रुपए का भार सालाना पड़ेगा। इसे महीने के अनुसार जोड़ें तो हर महीने 13 रुपए बिल बढ़कर देने पड़ेंगे।
ये दिया जा रहा तर्क
अडाणी समूह को एमपी के 18 जिलों में ट्रांसमिशन नेटवर्क खड़ा करने के दिए गए ठेके को लेकर ये तर्क दिया जा रहा है कि इससे प्रदेश में ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता बढ़ेगी। वर्ष 2027 तक प्रदेश में बिजली उपयोग के आधार पर ये तैयारी की जा रही है। उपभोक्ताओं तक सही वोल्टेज की लाइन पहुंचेगी। एमपी सरकार ने अडाणी ट्रांसमिलशन कंपनी को लेटर ऑफ इंटेंट यानी आशय पत्र (LOI) दे दिया है। भारत सरकार के स्वामित्व वाली आरईसी कंपनी ने एमपी पावर ट्रांसमिशन पैकेज-2 लिमिटेड के अधिग्रहण का ये पूरा सौदा 1200 करोड़ रुपए में 35 सालों के लिए किया है।
केंद्र की नवरत्न कंपनी में शामिल है REC
REC पावर डेवलपमेंट एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड भारत सरकार की नवरत्न कंपनी REC लिमिटेड के पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी है। मतलब अधिग्रहित की जा रही कंपनी एमपी पावर ट्रांसमिशन पैकेज-2 लिमिटेड भी भारत सरकार का ही एक उपक्रम है, जिसे अब अडाणी ग्रुप द्वारा संचालित किया जाएगा। सभी सब स्टेशन एयर इंसुलेटेड आधारित होंगे।
देश की सबसे बड़ी निजी ट्रांसमिशन कंपनी है ATL
अडाणी ट्रांसमिशन लिमिटेड (ATL) देश की सबसे बड़ी प्राइवेट ट्रांसमिशन कंपनी है। इसका कुल ट्रांसमिशन नेटवर्क 18,800 सर्किट किमी में फैला है। इसमें 13,200 सर्किट किमी ट्रांसमिशन लाइंस चालू हालत में हैं, जबकि 5600 सर्किट किमी ट्रांसमिशन लाइंस निर्माणाधीन है। कंपनी मुंबई में लगभग 30 लाख से ज्यादा ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने का काम भी करती है।
एमपी में ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता का 32 प्रतिशत ही उपयोग
प्रदेश में पहले से एक निजी कंपनी के पास है ट्रांसमिशन का ठेका
प्रदेश में इससे पहले कल्पतरु पावर ट्रांसमिशन कंपनी को सारिणी से आष्टा तक ट्रांसमिशन लाइन बनाई है। इसके एवज में उसे हर साल तीनों विद्युत वितरण कंपनियों से 37 करोड़ रुपए मिलता है। इसी तरह पावर ट्रांसमिशन कंपनी को अपने ट्रांसमिशन नेटवर्क के एवज में विद्युत वितरण कंपनियों से 3000 करोड़ रुपए और पावर ग्रिड को भी इतनी ही राशि मिलती है। अब अडाणी समूह के पावर ट्रांसमिशन नेटवर्क तैयार होने पर हर साल 250 करोड़ का भार बढ़ जाएगा। ये सारा भार बिजली बिल के तौर पर आम उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा।
सीएम को लिखा पत्र
रिटायर्ड इंजीनियर आरके अग्रवाल ने इस मामले में सीएम को पत्र लिखा है। प्रदेश में ट्रांसमिशन कंपनी के नेटवर्क और उसके अधिकतम उपयोग का डाटा साझा करते हुए नए अनुबंध को गैर वाजिब बताया है। अभी ट्रांसमिशन की जो क्षमता उपलब्ध है, उतनी बिजली तो एमपी में बनती ही नहीं है। ऐसे में अडाणी जैसे निजी क्षेत्र की कंपनियों को ट्रांसमिशन का ठेका देना आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार डालने जैसा है।
आंकड़ों से ऐसे समझें
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