एक न्यूज किसी की सोच बदल सकती है। कुछ ऐसा ही हुआ है प्रगतिशील किसान अंबिका पटेल के साथ। पंजाब-राजस्थान में 'कैंसर ट्रेन' की न्यूज पढ़ी। इसमें पता चला कि दोनों प्रदेशों में रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग से बीमारी बढ़ी है। वे इतने विचलित हुए कि पिछले पांच साल से उन्होंने रासायनिक खाद को हाथ तक नहीं लगाया। उनके खेत की मिट्टी इतनी भुरभुरी हो चुकी है कि उसकी रंगत में अब फसल भी खिल उठी है। ऑर्गेनिक तरीके से शुरू में उपज जरूर कम होती है, लेकिन दो से तीन साल बाद उपज बढ़ने लगती है। जैविक खेती करके किसान किस तरह अपनी किस्मत बदल सकते हैं? भास्कर खेती-किसानी सीरीज 28 में जानते हैं प्रगतिशील किसान अम्बिका पटेल से…
जैविक खेती में धैर्य की जरूरत होती है। कारण है कि इसमें समय लगता है। किसान की खेती की लागत कम हो जाती है। फिर जैविक प्रमाणीकरण कराकर किसान अपनी उपज डेढ़ से दो गुना कीमत पर बेच सकता है। कोविड के बाद लोगों को समझ में आने लगा है कि जैविक और प्राकृतिक खेती ही जिंदगी बचाने का तरीका है। अब तो पीएम से लेकर सरकारें भी जैविक खेती करने पर जोर दे रही हैं।
रासायनिक खाद का प्रभाव जाने में पांच साल लग जाते हैं
खेतों में लगातार रसायनिक खाद के प्रयोग से कई सूक्ष्म जीव समाप्त होते जा रहे हैं। किसान मित्र माने जाने वाले केंचुए तो दिखते ही नहीं। ऐसे में वर्मी कम्पोस्ट से फसल उगाना चुनौती भरा है। जैविक खेती से अच्छी फसल उगाने में पांच साल का समय लगता है। इसके बाद साल दर साल उपज बढ़ने लगती है। एक दो साल प्रोडक्शन कम आता है। फसल भी कमजोर दिखती है। तीसरे से चौथे साल में फसल की रंगत बदलने लगती है।
एक एकड़ खेत में पांच क्विंटल धान हुआ
एक एकड़ खेत में मैंने छिड़काव विधि से तीन किलो धान बो दिया था। पांच क्विंटल धान हुआ। इससे 3.28 क्विंटल चावल हुआ था। एक किलो चावल की कीमत 100 रुपए मिल रहा है। इसमें सिंचाई और 10 टन वर्मी कम्पोस्ट के अलावा कुछ नहीं डाला था। उसका स्वाद 30 साल पहले वाला मिल रहा है। अब उसी खेत में गेहूं लगाया है। फसल देखकर किसी को विश्वास ही नहीं होता कि इसमें रासायनिक खाद नहीं पड़ी है।
बाली निकलने से पहले गेहूं में एक बार वर्मी कम्पोस्ट छिड़काव विधि से डालते हैं
गेहूं में बाली निकलने से पहले एक बार वर्मी कम्पोस्ट को छिड़काव विधि से फसल में डालते हैं। इसके बाद हल्की सिंचाई कर देते हैं। 15 दिन बार पौधाें के लिए जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है। वर्मी कम्पोस्ट से तैयार फसल की चमक और हेल्दी दाने इसकी अलग ही पहचान बताती हैं। इसमें परंपरागत स्वाद का अहसास होता है। यह सुपाच्य और स्वास्थ्य वर्धक होता है।
खुद तैयार करते हैं वर्मी कम्पोस्ट
60 वर्गफीट का वेड बनाया गया है। इसकी गहराई तीन फीट है। इसमें गोबर को 40 से 45 दिनों के लिए छोड़ देते हैं। इसमें केंचुआ डालते हैं। पक्के वेड बनाकर हम वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते हैं। डेयरियों से गाेबर लाकर एक महीने के लिए अलग रख देते हैं। इसके बाद वेड में डालते हैं। इसके बाद इसे छान कर खेत में डाल देते हैं। प्रति एकड़ 10 टन खाद की जरूरत पड़ती है। डेयरियों में बारिश के दिनों में फ्री नहीं तो हजार रुपए डंपर की दर से गोबर मिल जाता है। उसी समय अपने साल भर की जरूरत की खाद लाते हैं।
जैविक चना व मटर भी उगाया
वर्मी कम्पोस्ट डालकर ही एक एकड़ खेत में चना, आधे एकड़ में मटर भी लगाया है। दोनों ही फसलों में इल्ली लगने का खतरा रहता है। इसके लिए जैविक कीटनाशक भी तैयार किया है। नीम की खली, धतूरा, आंक का पत्ता, गोमूत्र, बच की पत्तियां की कुल 100 किलो ग्राम मात्रा लेकर 200 लीटर पानी में 21 दिनों तक सड़ने देते हैं। फिर पानी छान कर रख लेते हैं। जरूरत के अनुसार 8 लीटर पानी में एक लीटर इस जैविक कीटनाशक को मिलाकर स्प्रे कर देते हैं। इससे इल्ली का प्रभाव 90 प्रतिशत तक समाप्त हो जाता है। यदि इल्ली अधिक लग गई हो, तो 15 दिन के अंतराल पर दो बार स्प्रे कर सकते हैं।
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