मध्य प्रदेश में सोमवार को बिरसा मुंडा की जयंती पर पॉलिटिकल पावर में कांग्रेस के कार्यक्रम से भीड़ गायब रही। एक ओर भोपाल में पीएम मोदी नरेंद्र मोदी आदिवासियों के लिए सौगातों की घोषणा कर लुभाने की कोशिश कर रहे थे। वहीं, दूसरी ओर करीब 300 किमी दूर जबलपुर में कांग्रेस के पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी आदिवासी विधायकों संग 2018 में जुड़े इस समाज के वोट बैंक को बनाए रखने की कोशिश करते नजर आए।
सियासी मंच सज चुका है। महाकौशल में दिग्विजय सिंह ने एक दिन पहले 14 नवंबर रविवार को ही मोर्चा संभाल लिया था। मंडला में उन्होंने पार्टी के आदिवासी समाज की बैठक कर अपनी रणनीतियों को धार देने में जुट गई है। सोमवार को जवाहर लाल कृषि विवि परिसर में कांग्रेस ने बिरसा मुंडा जयंती पर कार्यक्रम आयोजित की थी, लेकिन कार्यक्रम में नेताओं के कद को देखते हुए भीड़ नहीं जुटा पाए। कार्यक्रम में मंच से नेताओं ने इसका ठीकरा बीजेपी पर फोड़ते हुए कहा कि वहां भीड़ जुटाने के लिए जिले-जिले में बसें लगवा दी गई थीं। लोगों को लालच देकर भोपाल बुला लिया गया।
कांग्रेस की पूर्व मंत्री रह चुकीं सुश्री कौशल्या गोटिंया ने कहा कि मेरे कहने पर सीएम रहते हुए दिग्विजय सिंह ने बिरसा मुंडा की पहली प्रतिमा प्रदेश में जबलपुर में लगवाने का काम किया था। इस कारण कांग्रेस ने यहां आदिवासी सम्मेलन किया। इससे पहले शंकरशाह-कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर 18 सितंबर को दोनों पार्टी जोर आजमाइश कर चुके हैं।
आदिवासी वोटर ही तय करेगा एमपी में कौन सत्ता में बैठेगा
कांग्रेस पार्टी के निवास विधायक डॉक्टर अशोक मर्सकोले का साफ मानना है कि बीजेपी की तरफ से आदिवासी सम्मेलन के नाम पर सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। 17 साल में बिरसा मुंडा कभी याद नहीं आए। उन्हें पता है कि एमपी में जो आदिवासी हित की बात करेगा, वहीं प्रदेश में राज करेगा। वर्ष 2003, 2008, 2013 में आदिवासी वोटरों के दम पर ही बीजेपी सत्ता में आई। पर अब उनका छल-प्रपंच और नहीं चलने वाला है। आदिवासी समाज जान गया है कि नाखून कटाकर शहीदों में नाम जुड़वाने वाली ये पार्टी है।
आदिवासी क्षेत्रों में पलायन और प्रताड़ना देख लीजिए, सब समझ में आ जाएगा
प्रदेश में 47 सीटें ट्राइबल के लिए सुरक्षित हैं। 87 आदिवासी ब्लॉक हैं। यहां का पलायन देख लीजिए, प्रताड़ना देख लीजिए। राजा शंकरशाह व रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर 18 सितंबर को कई घोषणाएं की गई। हम इंतजार कर रहे हैं इनके शुरू होने का। हम तो ओपन डिबेट का चैलेंज देते हैं। बीजेपी आदिवासी हित के लिए चलाई गई योजनाएं बताए, हम उसकी खामियां बताएंगे।
टीएसपी का बजट कहां खर्च किया जा रहा, आदिवासी विकास पर नहीं हो रहा
अब जिलों में बसों में भरकर आदिवासी समाज को भोपाल में ले जाने की नई नौटंकी शुरू हुई है। बीजेपी के दावे खोखले हैं। आदिवासी समाज के विकास के लिए योजनाएं ही नहीं बनती। अभी तक टीएसपी की कुल चार बैठकें हुई हैं। जब बैठक ही नहीं हुई तो राज्यपाल के पास विकास के प्रस्ताव ही नहीं पहुंचा। टीएसपी का बजट कहां खर्च किया गया। ट्राइबल विकास के लिए तो खर्च नहीं किया गया। उस पैसे का इस्तेमाल भोपाल में आदिवासी सम्मेलन के नाम पर किया जा रहा है, जो गलत है।
एमपी में आदिवासियों के 21% वोट पर है दोनों दलों की नजर
एमपी में जनजातियों की आबादी 153 लाख से भी ज्यादा है। यह प्रदेश की आबादी का 21.5 फीसदी है। अनुसूचित जनजाति की 47 विधानसभा सीटें भाजपा और कांग्रेस को सत्ता की कुंजी देने में महत्वपूर्ण रोल अदा करती हैं। दोनों ही दल अब बिरसा मुंडा की जयंती के बहाने इस वर्ग में पैठ बनाने की सोच रहे हैं। 2018 में भाजपा को इन वर्ग ने 15 सीटों पर झटका देकर सत्ता से उतार दिया था और उसी कमी को ध्यान में रखते हुए अब भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है।
कांग्रेस जबलपुर में जुटा रही आदिवासी
बिरसा मुंडा जयंती पर कांग्रेस भी अपने वोट बैंक को सहेजने आज 15 नवंबर सोमवार को जबलपुर में बिरसा मुंडा जयंती मनाई। आधारताल में जेएनकेवी में यह आयोजन हुआ। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, विवेक तन्खा और आदिवासी विधायकों सहित जनजातीय समाज के प्रमुख नेताओं को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
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