जबलपुर में शुक्रवार 05 नवंबर को गौ पूजन के साथ गोवर्धन पूजा और फिर राधारानी के साथ ठाकुरजी को छप्पन भोग लगाया गया। शहर के अन्नपूर्णा मंदिर में दोपहर तीन बजे के बाद महिलाओं ने विभिन्न पकवानों का भोग लगाया। इस दौरान अहीर नृत्य के साथ लोगों को गायों का श्रृंगार और घोड़े का डांस भी देखने को मिला।
गायों का श्रृंगार और अहीर नृत्य की जुगलबंदी ने पूरा माहौल भक्तिमय कर दिया। भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाकर लोगों ने अपनी श्रद्धा दिखाई तो वहीं बहनों ने भाईयों के लंबी उम्र के लिए यम तत्वों की कुटाई की। सबसे रोचक रहा पैरों में घुंघरू और पारंपरिक वेश-भूषा के साथ अपनी धुन में मदमस्त होकर नाचते अहीर समाज का आयोजन। इसे देखने लोग दूर-दूर से पहुंचे थे। गीतों की धुन ऐसी कि सुनने वाले भी खुद को थिरकने से नहीं रोक पाए।
लोकगीत के साथ अहीर नृत्य किया
अहीर नृत्य गुरुवार की रात से चालू हुआ, जो पूर्णिमा तक जारी रहेगा। अहीर नृत्य पर पहने जाने वाले परंपरागत वस्त्रों की पहले पूजा की जाती है। वादन यंत्र भी विधि-विधान से पूजे जाते हैं। उसके बाद देवों की पूजा कर अहीर नृत्य किया जाता है। अहीर नृत्य की वर्षों से प्रस्तुति देने वाले चेरीताल निवासी आजाद यादव ने बताया कि हमारी पीढ़ियां गुजर गईं। हर साल गोवर्धन पूजा पर हमारी टोली परंपरागत नृत्य करती है। जहां भी हमारी टोली अहीर नृत्य करती है, लोग सम्मान के साथ उपहार भेंट कर उनका हौसला बढ़ाते हैं।
गायों को संजाने के साथ की गई पूजा
हरदौल मंदिर चेरीताल में गोवर्धन पूजन के साथ भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाया गया। डुमना एयरपोर्ट स्थित गधेरी में यादव समाज द्वारा विशेष आयोजन किया गया। पूजन के दौरान गायों को विशेष रूप से तैयार किया गया। मोर पंख के मुकुट और रंग-बिरंगे कलर में गायों को सजाया गया। गायों का नृत्य कराने के लिए मृत पशु का चमड़ा दिखाकर रोमांच पैदा करने के लिए उकसाया गया। शहर के दीक्षितपुरा में यादव समाज द्वारा गायों का विशेष पूजन किया गया। भेड़ाघाट स्थित हरे कृष्णा आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग का अर्पण किया गया। अहीर समाज गोवर्धन के दिन अपने गायों के दुग्ध नहीं बेचते हैं।
गाय के गोबर का बनाया गोवर्धन
गोवर्धन पूजन भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग में प्रारंभ हुई। शुक्रवार सुबह ग्वालों ने गायों को धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनका पूजन किया। गाय को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी। गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण के सम्मुख गाय और ग्वाल-बालों की रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजन और परिक्रमा की गई।
ये है धार्मिक मान्यता
भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर इन्द्र का मान-मर्दन किया था। तब उनके प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी थी। ब्रह्माजी ने इन्द्र को भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का वृतांत सुनाकर उनकी शरण में जाने को कहा। लज्जित इन्द्रदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। तभी से गोवर्धन पूजा प्रारंभ हुई।
गोवर्धन पूजा पर घोड़े और अहीर नृत्य ने लोगों का किया मनोरंजन-
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