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सीधी के सरदा पटना नहर में ड्राइवर की लापरवाही से भले ही बस नहर में गिरी हो, लेकिन असल कारण छुहिया घाटी का जाम है। 12 किमी की इस घाटी का आधा हिस्सा रीवा तो आधा सीधी जिले में पड़ता है। जिले की सीमा की तरह घाटी सड़कों और खतरे भी बंटे हुए हैं। रीवा के हिस्से में जहां सड़क की हालत तुलनात्मक रूप से ठीक है, वहीं घुमाव भी कम है। वहीं, सीधी के हिस्से वाली सड़क बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। जिगजैग (मोड़दार) सड़क पर कई मोड़ धूल में तब्दील हो चुके हैं। इस 12 किमी के हिस्से में चार बड़े वाहन सड़क पर ही खराब मिले। इन्हें हटाने के लिए न तो कोई क्रेन थी और न ही पुलिस। इसकी वजह से जाम लग रहा था। स्थानीय लोगों के मुताबिक महीने में यहां 25 से 26 दिन जाम लगता है।
छुहिया घाटी की रोड का पिछले चार साल से मरम्मत नहीं हो रहा है। इस पर रोड पर हर घंटे 500 से 600 बड़े और लोडिंग वाहन निकलते हैं। इन व्यावसायिक वाहनों के चलते आम यात्री वाहन नहीं निकल पाते हैं। सड़क खराब होने और ओवर लोडिंग के चलते अक्सर यहां तीन से चार वाहन बीच रास्ते में खराब हो जाते हैं। पहाड़ी पर ढलान वाले ये पूरा रास्ता संकरा है। एक वाहन खराब होने पर दूसरे वाहन को निकलने के लिए कम जगह मिलती है। ऐसे में दोनों तरह का आवागमन बाधित हो जाता है।
पांच दिन से लगे जाम के चलते ही बस ने बदला था रूट
छुहिया घाटी का आधा हिस्सा सीधी के रामपुर नैकिन थाने के पिपरावं चौकी के अंतर्गत आता है। वहीं आधा हिस्सा रीवा जिले के गोविंदगढ़ थाने में आता है। मंगलवार को हुए बस हादसे के लिए भी छुहिया घाटी का जाम ही कारण था। यहां बीच में तीन लोडिंग वाहन खराब हो गए थे। उन वाहनों को हटाया नहीं गया। जाम में वाहन फंसे रहे, लेकिन दोनों ही जिलों और थानों की पुलिस को सुध लेने की फुर्सत नहीं मिली। जाम के चलते ही पिपरांव चौकी की पुलिस ने यात्री सहित छोटे वाहनों को नहर रूट से डायवर्ट कर दिया था।
हादसे के बाद पांच दिन का जाम घंटों में घुल गया
नहर में बस गिरते ही पिपरांव चौकी की पुलिस ने वाहनों का डायवर्सन बंद कर दिया। एक तरफ लाशें निकल रही थी, तो दूसरी ओर अपनी नाकामी छिपाने पुलिस घाटी का जाम भी निकलवाती रही। पांच दिन का जाम रात नौ बजे तक समाप्त हो गया। पुलिस चाहती तो ये राहत भरे कदम पहले भी उठा सकती थी। अपनों को खो चुके परिवाजनों की टीस भी यही थी और वे लगातार सवाल भी उठा रहे थे कि आखिर पांच दिन का जाम हादसे के तुरंत बाद कैसे खुल गया। ये सवाल सीएम के सामने भी उठा। जब वे रामपुर नैकिन में हादसे के पहले पीड़ित अनिल गुप्ता परिवार में पहुंचे।
घाटी की जाम के लिए करने होंगे स्थायी व्यवस्था
घाटी में अक्सर जाम लगने की बड़ी वजह बीच चढ़ाई पर वाहनों की खराबी है। पीड़ित लोगों का दावा है कि वहां स्थाई रूप से पुलिस क्रेन की व्यवस्था करा सकती है। इसके अलावा वहां दोनों जिलों की पुलिस द्वारा स्थाई पिकेट बनाकर तीन से चार पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगानी चाहिए। इससे वाहन खराब होने पर उसे रोड किनारे करने में जहां आसानी होगी। वहीं पुलिस के रहने से लोग लाइन नहीं तोड़ेंगे और पुलिस एक-एक लेन के वाहनों को थोड़े-थोड़े अंतराल पर निकलवा सकती है। पुलिस ने हादसे के बाद भी यही किया था।
सीएम की घोषणा से उम्मीद
हादसे के बाद पीड़ित परिवारजन में पहुंच कर सांत्वना देने बुधवार को सीधी प्रवास पर पहुंचे सीएम ने घोषणा की है कि इस घाटी की सड़क को ठीक कराएंगे। इसका असर भी दिखा। रीवा स्थित एमपीआरडीसी के अधिकारियों ने छुहिया घाटी का दौरा कर एक-एक टर्न का निरीक्षण भी किया। इसके खतरनाक प्वाइंट की खामी को दूर करने प्लान तैयार होगा। वहीं रोड की चौड़ाई भी बढ़ाई जा सकती है। रीवा-अमरकंटक को जोड़ने वाले इस रोड के अलावा भी वैकल्पिक मार्ग का निर्माण भी होगा।
खतरनाक घाटी मार्ग, फिर भी अंधेरा
12 किमी की ये पूरी घाटी मार्ग खतरनाक है। रात में ही सबसे अधिक लोडिंग वाहन निकलते हैं। बावजूद यहां रोशनी का कोई इंतजाम नहीं है। सड़क किनारे ही गहरी खाई है। थोड़ी भी लापरवाही सीधे वाहन कई फीट नीचे चला जाएगा। यहां रोशनी का कोई इंतजाम नहीं है। यहां अक्सर एक्सीडेंट भी इसी की वजह से होता रहता है।
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