हल्दी हर घर की रोज खाने वाली स्पाइस है। पर पीली की बजाए काली हल्दी की खेती किसानों की किस्मत बदल सकती है। काली हल्दी विलुप्त श्रेणी में पहुंच गई है। भारत सरकार ने इसके व्यवसायिक उपयोग पर रोक लगा दी है। प्रदेश के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय को भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने 67 लाख रुपए का प्रोजेक्ट काली हल्दी के विकास की खातिर दिया है। काली हल्दी की खेती किसानों के लिए कैसे फायदेमंद हो सकती है? जानिए भास्कर खेती-किसानी सीरीज-25 में एक्सपर्ट डॉक्टर राधेश्याम शर्मा (वैज्ञानिक, जैव प्रौद्योगिकी, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय) से…
काली हल्दी का मार्केट वैल्यू सबसे अधिक
किसानों की सामान्य पीली हल्दी 60 से 100 रुपए प्रति किलो के भाव में बिकती है। वहीं काली हल्दी की कीमत 800 से एक हजार रुपए होती है। सबसे बड़ी बात ये कि वर्तमान में काली हल्दी बड़ी मुश्किल से मिल पाएगी। कोविड के बाद इसकी डिमांड काफी बढ़ गई है। इम्यूनिटी बुस्टर के तौर पर भी इसका उपयोग किया जाता है। काली हल्दी अपनी औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। आयुर्वेद, होम्योपैथ और कई जरूरी ड्रग बनाने में इसका उपयोग होता है।
एमपी व छग काली हल्दी के लिए उपयुक्त
20 साल पहले एमपी का बालाघाट, अमरकंटक, मंडला, डिंडोरी जैसे आदिवासी बेल्ट और छत्तीसगढ़ में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था। आदिवासी लोग इसका उपयोग खाने सहित आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने में करते थे। अब इस क्षेत्र में भी ये नाम मात्र की बची है। काली हल्दी में करक्यूमिन सबसे अधिक पाई जाती है। इस कारण इसका व्यवसायिक डिमांड कहीं अधिक है। इसके अलावा काली हल्दी में ऑयल भी मिलता है, जो कई तरह से फायदेमंद है।
जेएनकेवी को ये मिला है प्रोजेक्ट
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की ओर से जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग को काली हल्दी का प्रोजेक्ट मिला है। इसके लिए 67 लाख रुपए का फंड जारी हुआ है। जेएनकेवी इसका उत्पादन टिशू कल्चर से करने की तैयारी में है। विवि ने आदिवासी सहित देश के कई हिस्सों खासकर पूर्वोत्तर भारत में मिलने वाली काली हल्दी की प्रजाति लाकर रिसर्च शुरू की है। रिसर्च कर देखा जा रहा है कि किस प्रजाति की काली हल्दी में अधिक करक्यूमिन मिलता है। इसी तरह हल्दी ऑयल (कपूर जैसे सुगंध वाला) किस प्रजाति में अधिक मिलेगा।
व्यवसायिक उत्पादन के लिए किसानों को मिलेगा
रिसर्च के बाद काली हल्दी की सबसे अच्छी प्रजाति को मदर प्लांट के तौर पर टिशू कल्चर से विकसित किया जाएगा। इसके बाद एक वेरायटी को डेवपलेप किया जाएगा। फिर इसका रजिस्ट्रेशन कराकर किसानों तक पहुंचाएंगे। इसका बड़े स्तर पर उत्पादन करके किसान भी आत्मनिर्भर बन सकेंगे। अधिक उत्पादन कर काली हल्दी को लुप्त होने से बचा पाएंगे और इसका आयुर्वेदिक उपयोग भी हो सकेगा।
गंभीर बीमारियों में उपयोग
काली हल्दी सर्दी, खांसी, रक्तचाप में, माइग्रेन, सिरदर्द, दर्दनासक, इम्यूनिटी बुस्टर, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में इसका उपयोग होता है। बाजार उत्पादकता । बीज के तौर पर एक क्विंटल बीज लगता है। वहीं प्रति हेक्टयर 10 टन के लगभग उत्पादन होता है। रिसर्च के लिए पीएचडी शोधार्थी विनोद साहू ने काली हल्दी की कई प्रजातियों का कलेक्शन किया है। इसी में से किसी एक प्रजाति को आगे किसानों के लिए डेवलेप किया जाएगा।
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