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बरगी बांध के निर्माण के दौरान विस्थापित हुए परिवार आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। डेम के दूसरे छोर पर बसे मिढ़की, कठौतिया, बढ़इया खेड़ा गांव के वाशिंदे आज भी टीन की नाव से सफर करने के लिए मजबूर हैं। दरअसल, दूसरी छोर पर सड़क सुविधा है, लेकिन वहां लोगों को 100 किलोमीटर से अधिक दूर जाकर अपनी जरुरत की सामग्री मिल पाती है। इसलिए गांव के लोग नाव के सहारे बरगी नगर आकर अपनी जरूरी सामग्री खरीदते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि तीनों ग्रामों की ग्राम पंचायत मगरधा यहां से 20 किलोमीटर दूर है।
ग्रामीणों को रोजमर्रा की जरुरतें पूरी करने के लिए हर दिन 2 से 3 घंटे का सफर तय करके जल मार्ग से 20 किलोमीटर दूर बरगी नगर आना पड़ता है। चाहे गेहूं पिसाना हो, हाट बाजार करना हो, शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य कोई सेवा लेनी हो इसके लिए बरगी नगर ही आना पड़ता है। रोजगार सहायक भीकम मरावी ने बताया की दूसरा रूट सड़क मार्ग का है, जो बरगी नगर से लगभग 100 किलोमीटर घेर कर जाना पड़ता है। यदि किसी को गांव पहुंचना है तो बीजाडांडी मार्ग से होते हुए ग्राम जमठार, पौड़ी तथा सलैया होते हुए इन गांवों तक पहुंचा जा सकता है। 100 किलोमीटर से अभी अधिक लम्बा रास्ता होने के कारण ग्रामीण जलमार्ग का ही उपयोग कर रहे हैं।
अफसरों ने केवल दिखाए सब्जबाग
ग्रामीणों ने बताया कि पूर्व कलेक्टर हरी रंजन राव ने डूब क्षेत्र के इन तीनों गांवों में भ्रमण किया था। उन्होंने ग्रामीणों की समितियां बनाकर परिवहन वोट चलाने की बात की थी, इससे आवागमन तो सुगम होता ही साथ में ग्रामीणों को रोजगार भी मिल जाता, लेकिन यह घोषणा भी केवल सपने तक सिमटकर रह गई। ग्रामीणों ने फरवरी 2011 में मगरधा गांव पहुंचे तत्कालीन कलेक्टर गुलशन बामरा से भी वोट चलाने की मांग की थी, जिस पर 5 लाख तक की वोट खरीदी के लिए ग्राम पंचायत से प्रस्ताव मांगा गया था। ग्राम पंचायत मगरधा ने ढाई लाख रुपए का प्रस्ताव भी बना कर जमा कर दिया, जिसे आज तक स्वीकृति नहीं मिल पाई है।
कागजों में ही सिमट कर रह गई जलमार्ग की योजना- ग्राम के सरपंच पति इंदर सिंह तिलगांम एवं सचिव रूप राम सेन ने बताया कि वर्ष 1995 में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने बांध में दो जलमार्ग के विकसित करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया था। पहला जलमार्ग लैडी कोल सिवनी वाया मूल डोंगरी, मंडला वाया बरगी नगर का था। यह रूट करीब 23 किलोमीटर लम्बा था। दूसरा रूट खुर्सीपार से नारायणगंज मंडला का था, जो लगभग 13 किलोमीटर लंबा था। दोनों रूटों पर जल यातायात सुलभ हो जाने से 60 से अधिक गांव के ग्रामीणों को लाभ मिलता, लेकिन यह योजना केवल कागजों में ही सिमट कर रह गई।
गांव में उपचार की व्यवस्था भी नहीं
ग्राम की आशा कार्यकर्ता रेखा पटेल ने बताया कि गांव में उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए बरगी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या फिर मेडिकल ले जाना पड़ता है। नाव से सफर करना सबसे ज्यादा परेशान करता है। अधिक समय लगने के कारण कई बार मरीज की जान पर भी बन आती है। छोटे-बच्चों और माताओं का टीकाकरण भी समय पर नहीं हो पाता है। यदि किसी की रात में अचानक तबीयत खराब हो जाए तो उसे सुबह तक इंतजार करना ही पड़ता है। ऐसे में कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है।
मैंने तीनों गांव जाकर खुद देखा है, बड़ी विकराल स्थिति में ग्रामीण रह रहे हैं। उनके आवागमन का कोई साधन नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बनी हुई है। ग्रामीणों को आश्वासन दिया गया है। जल्द ही उच्च अधिकारियों से चर्चा का समस्याओं के समाधान के प्रयास किए जाएंगे। संजय यादव विधायक बरगी
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