मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने MPPSC परीक्षा-2019 के रिजल्ट को विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दिया है। जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुनीता यादव की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को मामले पर जवाब पेश करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया है। अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी।
MPPSC में 113 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के मामले में 45 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हो रही है। इन याचिकाओं में पीएससी संवैधानिकता और प्रारंभिक परीक्षा 2019 के घोषित परिणाम की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में कहा गया है कि पीएससी ने संशोधित नियमों को दरकिनार करते हुए मुख्य परीक्षा 2019 के परिणाम जारी कर दिए।
विज्ञापन के समय नियम कुछ और, बाद में संशोधन कर बदलाव किया
याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट को बताया कि पीएससी परीक्षा 2019 का विज्ञापन 14 नवंबर 2019 को जारी किया गया था। कायदे से उस समय जो नियम थे, उसी के हिसाब से प्री और मेंस के रिजल्ट घोषित होने चाहिए। पर ऐसा न करते हुए पीएससी परीक्षा नियमों में 17 फरवरी 2020 का संशोधन करते हुए असंवैधानिक नियम लागू कर दिए। इससे आरक्षण 113 प्रतिशत मिल गया। इस असंवैधानिक नियमों के खिलाफ याचिका दायर की गई है।
निरस्त नियमों के अनुसार ही MPPSC ने जारी कर दिया रिजल्ट
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद 20 दिसंबर 2021 को इन नियमों को पीएससी ने निरस्त कर दिया। इसी बीच उक्त याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने 31 दिसंबर 2021 को पुराने नियम लागू कर मुख्य परीक्षा के परिणाम घोषित कर दिए। दरअसल संशोधन में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में न चुनने का नियम लागू कर दिया गया। ये नियम आरक्षित वर्ग के लिए प्रतिभावान छात्रों को अनारक्षित ओपन सीट पर माइग्रेट करने से रोकते थे।
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