किसान अपने खेत से धान व गेहूं के निकलने वाले अवशेष से मशरूम उत्पादन कर कमाई कर सकते हैं। वह एक कमरे में भी इसकी मदद से मशरूम का उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। 45 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाती है। एक बार बिजाई करने पर तीन बार कटाई कर सकते हैं। बाजार में ये 70 से 80 रुपए किलो की दर से बिकता है। जबकि किसान की लागत महज 10 से 15 रुपए आती है। कोई भी बेरोजगार युवक एक कमरे में 1500 से दो हजार रुपए से मशरूम की खेती शुरू कर 7 से 8 हजार रुपए बचत कर सकता है। भास्कर खेती-किसानी सीरीज-12 में मशरूम की खेती से जुड़ी जानकारी हमारे एक्सपर्ट रिसर्च स्टूडेंट मनीष पारोदा (पोध रोग विभाग, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय) से…
आयस्टर मशरूम सबसे आसानी से उगा सकते हैं किसान
मशरूम की दो प्रजातियां होती हैं। पहली वाइट बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम होती है। इसमें वाइट बटन मशरूम के लिए 15 डिग्री का तापमान जरूरी होता है। ठंड में यहां किसान इसका उत्पादन ले सकते हैं, लेकिन अन्य मौसम में यहां के मौसम के लिए अनुकूल नहीं है। जबकि ऑयस्टर मशरूम की खेती जबलपुर सहित एमपी के मौसम के हिसाब से अधिक आसान है। कच्च मशरूम 70 से 80 रुपए किलो की दर से बिकता है। वहीं इसे पाउडर रूप में 600 से 700 रुपए प्रति किलो की दर से बेच सकते हैं।
आयस्टर मशरूम के लिए ये लगती है सामग्री
गेहूं का भूसा या धान का पैरा, मिट्टी की नांद या प्लास्टिक के ड्रम, पॉलीथिन थैलियां, मशरूम स्पान (बीज), बांस के रैक, बैविस्टीन, फार्मेलीन की जरूरत पड़ती है। मशरूम उगाने का सही समय अगस्त से मार्च तक का होता है। यदि आपके पास 25 डिग्री तापमान मेंटेन करने का साधन है तो इसकी खेती आप वर्षभर कर सकते हैं। पर उसमें लागत बढ़ जाएगी। मशरूम की फसल लेने के बाद इस वेस्ट से खाद बना लेते हैं। यह खेतों के लिए काफी उपयोगी होगी।
इस तरह मशरूम की होती है खेती
50 लीटर पानी में 75 एमएल फार्मेलीन और 3 ग्राम बैविस्टीन मिलाकर 5 किलो भूसा या धान का पैरा को उपचारित करने उसे रात भर भिंगो कर रख देते हैं। अगले दिन भिगोए गए भूसे या पैरा को निकाल कर पक्के फर्श पर 30 मिनट तक पॉलीथिन शीट पर फैलाकर रख देते हैं, जिससे उसका पानी निथर जाए। इसके बाद 12 गुणे 18 साइज के पॉलीथिन की थैलियों में पांच लेयर भूसे का अौर इसके बीच में 4 लेयर मशरूम के बीजे 30 से 40 दाने हर लेयर में बिछाते हैं। थैली में सबसे नीचे दो मुट्ठी भूसा, फिर चारों ओर किनारे बीज और इसके ऊपर फिर दो मुट्ठी भूसा क्रमानुसार डालते हैं। थैली भरने के बाद उसका मुख सुतली या रबर बैंड से बांध देते हैं। फिर सूजे से नीचे और चारों ओर 15 से 17 छेंद कर देते हैं।
अंधेरे कमरे में पैकेट को 15 से 18 दिन रखते हैं
इस पैकेट को अंधे कमरे में 15 से 18 दिन के लिए रख देते हैं। जब पूरी थैली दूध जैसी सफेद हो जाए तो इसकी पॉलीथिन को निकाल कर इस तैयार पैकेट को कमरे, बरामद, झोपड़ी आदि में बांस के रैक पर या फिर प्लास्टिक की डोरी से लटका देते हैं। हर पैकेट से पैकेट की दूरी नौ इंच की होनी चाहिए। इस पैकेट पर सुबह-शाम पानी डालते रहे। एक सप्ताह बाद इससे मशरूम निकलना शुरू हो जाता है। एक पैकेट से 500 से 700 ग्राम मशरूम एक बार में तैयार होता है। तीन बार इसमें मशरूम आता है। इस तरह एक पैकेट से डेढ़ से दो किलो तक मशरूम ले सकते हैं। इसकी पूरी अवधि 45 दिन की रहती है।
इस तरह कर सकते हैं कमाई
कोई भी इच्छुक व्यक्ति 800 वर्गफीट के हाल या कमरे में दो हजार की लागत से मशरूम की खेती कर सकता है। इसमें 10 किलो स्पान लगेगा। लगभग 100 पैकेट तैयार होगा। इससे 150 से 200 किलो मशरूम तैयार होगा। बाजार में मशरूम 70 से 80 रुपए किलो की दर से बिक रही है। इस तरह वह लागत, मार्केटिंग आदि खर्च घटाकर हर महीने 8 हजार रुपए कमा सकता है। मशरूम तोड़ने के बाद इसे साफ करें और पतले कपउ़े पर रखकर धूप में फैला दें। इसके बाद इसे पॉलीथिन में भरकर बाजार में सप्लाई कर सकते हैं।
चूहे और गिलहरी से बचाना होगा
मशरूम में दो तरह की परेशान होती है। पहली इसे तोड़ने में सावधानी रखनी चाहिए। मशरूम को तोड़ने के लिए थोड़ा घुमाकर खींच लेना चाहिए। काटने पर वहां मक्खी बैठने लगती है और सड़न शुरू हो जाता है। दूसरा चूहे और गिलहरी से इसे बचाना चाहिए। यदि कमरे में चूहा दिखे तो तुरंत उसे पकड़ने का उपाय करें, नहीं तो यह सारा मशरूम खा जाएंगे।
भास्कर खेती-किसानी एक्सपर्ट सीरीज में अगली स्टोरी होगी इंजीनियरिंग के छात्र कैसे अपने इनोवेशन से किसानों की सब्जी की खेती में नर्सरी की बुआई को बना रहे आसान। ये मशीन खेत से मजदूरों की कर देगी छुट्टी। सब कुछ मोबाइल से होगा मैनेज। यदि आपका कोई सवाल हो तो इस नंबर 9406575355 वाॅट्सऐप पर कर सकते हैं।
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