जबलपुर की एक पहचान तीरंदाजी भी बनती जा रही है। यहां के तीरंदाज गोल्ड पर निशाना साध रहे हैं। कोच रिचपाल सिंह सलारिया को विश्वामित्र पुरस्कार से प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया है। जबलपुर में प्रशिक्षण ले रहे उनके 11 खिलाड़ी विश्व स्तरीय चैम्पियनशिप में अपनी प्रतिभा का लोहा मना चुके हैं। वर्तमान में इस सेंटर से प्रशिक्षण ले रही मुस्कान किरार, एश्वर्या चौधरी, अमित कुमार ने कई गोल्ड पर निशाना साधा है।
संस्कारधानी निवासी मुस्कान किरार ने वर्ल्ड कप से लेकर कई चैम्पियनशिप में देश के लिए गोल्ड जीत चुकी हैं। गुरंदी बाजार की रहने वाली मुस्कान बेहद साधारण परिवार से आती हैं। पिता वीरेंद्र किरार साधारण सी मीट की दुकान चलाते हैं। माला किरार घर संभालती हैं। मुस्कान स्टेट ऑचर्री एकेडमी में तीरंदाजी सीख रही हैं। बर्लिन में 2019 में मुस्कान ने ऑचरी विश्व चैम्पियनशिप में देश के लिए सिल्वर जीत चुकी हैं। 20 वर्षीय मुस्कान ने 17 की उम्र में ही बैंकाक में हुए एशिया कंप तीरंदाजी में गोल्ड जीत कर अपनी प्रतीभा का परिचय करा चुकी हैं।
2016 से जबलपुर बन गया तीरंदाजी का केंद्र
जम्मू-कश्मीर के रहने वाले रिचपाल सिंह सलारिया को 2016 में स्टेट ऑचर्री एकेडमी का कोच बनाया गया। इसी के साथ जबलपुर में कई खिलाड़ी सामने आए। जबलपुर से शिवांश अवस्थी, मुस्कान किरार, अमित यादव, यश्वी उपाध्याय, चिराग विद्यार्थी, आरसी चौधरी, सृष्टि सिंह, रागिनी मार्को, अनुराधा अहिरवार व अमित कुमार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं।
ट्रक ड्राइवर पिता के बेटे अमित का गोल्ड तक का सफर
पिछले दिनों पोलैंड में गोल्ड जीतने वाले अमित कुमार के पिता ट्रक ड्राइवर हैं। डेंगू के चलते उनकी मां की मौत हो गई। बावजूद उन्होंने गोल्ड जीता। उत्तर प्रदेश के मथुरा के रहने वाले अमित कुमार ने आर्थिक संकट से जूझते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। जबलपुर में रह रहे चाचा के पास रहकर अकादमी से तीरंदाजी के गुर सीख रहे हैं।
ये खिताब यहां के तीरंदाज जीत चुके हैं
कम नहीं हैं जिले में खेल प्रतिभाएं
शहर में तीरंदाजी के अलावा कई ऐसी प्रतिभाएं भी हैं, जो शारीरिक परेशानियों के बावजूद अपने खेल से संस्कारधानी को गौरवान्निदत कर रहे हैं। होमसाइंस निवासी रजनीश अग्रवाल ने 2016 में फ्रांस में आयोजित कम्प्यूटर वेब प्रेज प्रोग्रामिंग में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। इसके अलावा साउथ कोरिया में भी 2011 में स्पेशल मेडल जीत चुके हैं। दिव्यांग रजनीश अग्रवाल वर्तमान में मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास कर वाणिज्यकर विभाग में कम्प्यूटर प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत हैं। रजनीश के मुताबिक हम जैसे और अन्य खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं मिले तो संस्कारधानी कई क्षेत्रों में अच्छा खिलाड़ी देने का दम रखता है।
मानसिक रूप से कमजोर संदीप व निशाद खान भी जीत चुके हैं सिल्वर मेडल
सेवा भारती चेतना के मानसिक रूप कमजोर छात्र संदीप दुबे ने 2015 में लॉस एंजलिस (अमेरिका) में आयोजित स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर में साईक्लिंग में 10 किमी की प्रतिस्पर्धा में रजत पदक जीता था। सेवा भारती में ही पढ़ रही मानसिक रूप से कमजोर निशाद खान ने 2015 में ही लॉस एंजलिस में 800 मीटर एथलेटिक्स में रजत पदक जीता था।
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