अपनी चमक और दाने के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध MP के गेहूं को मध्य प्रदेश की ही सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी नई पहचान देने में जुटी है। जबलपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने MP के लिए गेहूं की 18 किस्मों को अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की जरूरत के अनुसार तैयार किया है। भास्कर खेती-किसानी सीरीज-2 में पढ़िए, गेहूं की बुवाई में पिछड़ गए किसान कौन सी किस्म का चुनाव करें? खासकर दिसंबर में बुवाई करने जा रहे हैं तो अच्छी उपज के लिए कौन सा बीज, खाद अपनाएं और कितनी बार सिंचाई करें? आइए, जानते हैं एक्सपर्ट आरएस शुक्ला (जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर प्रजनक बीज उत्पादन के प्रमुख वैज्ञानिक प्रभारी अधिकारी) से गेहूं की अच्छी फसल लेने का हुनर…
दिसंबर में बुवाई कर रहे हैं तो शीघ्र पकने वाला बीज बोएं
गेहूं की सामान्य फसल पकने में 120 दिन लगते हैं। MP में की भौगोलिक स्थित देखें तो यहां सिंचित, कम सिंचित और असिंचित क्षेत्र हैं। गेहूं की बुवाई बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपने खरीफ में कौन सी फसल ली है और आपके खेत कब खाली हो रहे हैं। यदि 15 से 30 नवंबर के बीच गेहूं की बुवाई करने में चूक गए हैं तो भी किसान भाइयों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। JNKV द्वारा शीघ्र पकने वाली (100 से 105 दिन में) गेहूं कि किस्में जवाहर गेहूं 3336, HD 2932, HD 2864, MP 4010 और इंदौर ARCI द्वारा विकसित 1634 का चुनाव करें।
फरवरी से बढ़ने लगता है तापमान
10 से 15 फरवरी के बाद तापमान बढ़ने लगता है। यदि किसान भाई सही बीज का चुनाव नहीं करेंगे तो दाने का भराव पूर्ण रूप से नहीं होगा और उपज भी प्रभावित होगी। पुराने लोकमन का भी चुनाव कर सकते हैं, लेकिन इसमें गेरुआ रोग लगने की आशंका बनी रहती है। किसान भाठयों को अच्छी उपज चाहिए तो अनुसंचित जातियों का ही चुनाव करना चाहिए। ये सभी विकसित किस्में गेरुआ रोग के प्रति सहनशील होती हैं और किसानों को अच्छी उपज प्राप्त होती है। किसान भाई कृषि कॉल सेंटर, कृषि अनुसंधान केंद्र, कृषि विवि या इंदौर ARCI के वैज्ञानिकों से नवीन किस्मों के चयन में सलाह ले सकते हैं।
मृदा का परीक्षण जरूर कराएं किसान
गेहूं की अच्छी उपज चाहिए तो खाद और सिंचाई का सावधानी से उपयोग करना चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि मृदा परीक्षण करा लें। इससे हमें पता होगा कि हमारी मिट्टी में कौन से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। फसल लेते समय उन सूक्ष्म पोषक तत्वों की भरपाई करने से हमें अच्छी उपज कम खर्च में प्राप्त हो सकेगी।
DAP की बजाए NPK का उपयोग करें
किसान को DAP की बजाए NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश) का प्रयोग करना चाहिए। DAP में पोटाश नहीं होता है। जबकि इससे गेहूं की बढ़वार अच्छी होती है। जड़ों का अच्छा प्रचार-प्रसार होता है। दानों में पुष्टता व चमक आती है। आधी यूरिया बुआई के समय और आधी यूरिया पहली और दूसरी सिंचाई के समय डालनी चाहिए।
सिंचाई के बाद ही यूरिया का करें छिड़काव
ध्यान रखें कि यूरिया का छिड़काव ओस सूखने के बाद ही करें, नहीं तो पत्तियों के झुलसने का खतरा रहता है। कई किसान भाई सिंचाई से पहले यूरिया डाल देते हैं। यूरिया में लीचिंग प्रॉपर्टी होती है, नीचे जमीन की ओर जाती है। ये पौधे को उपलब्ध नहीं होता है। जबकि सिंचाई के बाद यूरिया का छिड़काव करेंगे तो यह पौधे की जड़ों को उपलब्ध हाेगा और अच्छी पैदावार प्राप्त करेंगे।
कब करें गेहूं की सिंचाई
गेहूं की फसल यदि 20 से 25 दिन की हो गई हो तो खेत में पहली सिंचाई का प्रबंध करें। यदि पानी दो सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड़ के विकास के समय तथा दूसरी फूल आते समय करनी चाहिए। यदि पानी तीन सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड़ के विकास के समय, दूसरी सिंचाई तने में गांठ बनते समय और तीसरी दाने में दूध बनते समय करनी चाहिए। गेहूं की फसल में सिंचाई की मात्रा सर्दियों में होने वाली वर्षा पर निर्भर करता है। एमपी में अधिकतम चार सिंचाई पर्याप्त होती है। इसी तरह देर से बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर 80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश का उपयोग करना चाहिए।
गेहूं में खरपतवार का नियंत्रण जरूरी है
गेहूं की फसल में रबी के सभी खरपतवार जैसे बथुआ, प्याजी, खरतुआ, हिरनखुरी, चटरी, मटरी, सैंजी, अंकरा, कृष्णनील, गेहुंसा, और जंगली जई आदि लगते हैं। इसकी रोकथाम निराई गुड़ाई करके की जा सकती है, लेकिन कुछ रसायनों जैसे पेंडामेथेलिन 30 ईसी 3.3 लीटर की मात्रा 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर फ्लैटफैन नोजिल से प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव बुवाई के बाद 1-2 दिन तक करना चाहिए।
इससे खरपतवारों का जमाव नहीं होता है। इसके अलावा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30-35 दिन बाद और पहली सिंचाई के एक सप्ताह बाद 24डी सोडियम साल्ट 80% डब्लूपी. की मात्रा 625 ग्राम 600-800 लीटर पानी में मिलाकर करें तो इसका उपचार हो जाएगा।
एमपी का मौसम ही गेहूं को चमकदार बनाता है
सरबती कोई किस्म नहीं होती है। जवाहर 3288, जवाहर 3211, एचआई 1531 और जेडब्ल्यू 3288 ही शरबती गेहूं कहलाती हैं। सागर, खुरई, सिहोर, अशोकनगर का क्षेत्र इसके लिए प्रसिद्ध है। ये किस्में कम ऊंचाई वाली होती हैं। एमपी में जब गेहूं पकता है तो वेदर ड्राई होता है। इसके चलते यहां के गेहूं में चमक और दाने अच्छे आते हैं। इस कारण एमपी के गेहूं की डिमांड देश-विदेश में सबसे अधिक होती है।
जेएनकेवी ने 15 सालों में एमपी के लिए 18 किस्में विकसित की हैं। इसमें देर और शीघ्र पकने वाली प्रजातियां शामिल हैं। महाकौशल के लिए 2004 में जवाहर 3020 का विकास किया गया है। ये सभी किस्में गुणावत्ता युक्त हैं और भरपूर उत्पादन से युक्त हैं।
भास्कर खेती-किसानी एक्सपर्ट सीरीज में अगली स्टोरी होगी दलहन और तिलहन की फसलों को फलीछेदक कीटों से बचाने के लिए किसान भाई क्या करें। यदि आपका कोई सवाल हो तो इस नंबर -9406575355 वॉट्सऐप पर कर सकते हैं।
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