तिल का तेल बच्चे के पैदा होने से लेकर बुढ़ापे तक उपयोग में लाया जाता है। इसका इस्तेमाल तेल, बीज के रूप में पूजा, औषधि के रूप में होता है। किसान भाई तिल को खरीफ के साथ जायद के रूप में भी बुआई कर सकते हैं। गर्मी में तिल की खेती का फायदा ये है कि इसमें रोग नहीं लगता है। बस किसान को चार से पांच बार सिंचाई करनी पड़ती है। भास्कर खेती किसानी सीरीज-14 में एक्सपर्ट डॉ. रजनी बिसेन (प्रिंसिपल साइंटिस्ट अखिल भारती समन्वित अनुसंधान परियोजना तिल एवं रामतिल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) से…
मुंगफली के बाद सबसे अधिक तिल होता है एक्सपोर्ट
देश में मूंगफली के बाद सबसे अधिक 5 हजार करोड़ रुपए का तिल का एक्सपोर्ट होता है। सबसे अधिक चीन में एक्सपोर्ट होता है। चीन एक्सपोर्ट भी करता है और इम्पोर्ट भी करता है। चीन के अलावा भारत का तिल यूएसए, नीदरलैंड व तंजानिया में जाता है। किसान को एमएसपी के रूप में 7309 प्रति क्विंटल की दर से कीमत मिलती है। तिल में 52 से 55 प्रतिशत तेल निकलता है।
खरीफ के साथ फरवरी में जायद के तौर पर किसान कर सकते हैं तिल की बुआई
सबसे महत्वपूर्ण ये है कि किसान तिल की बुआई खरीफ के साथ-साथ जायद फसल के तौर पर 10 फरवरी से 20 फरवरी के बीच में जब तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच में हो, तो कर देना चाहिए। जायद में ये 95 से 100 दिन में होता है। वहीं, खरीफ में 85 से 90 दिन में हो जाती है। खरीफ में जून के आखिरी सप्ताह से लेकर 15 जुलाई के के बीच कर देनी चाहिए।
गर्मी में तिल की फसल लेने के लिए इन किस्मों का चयन करें किसान
किसान भाई 10 फरवरी से जब तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो तो पवारखेड़ा द्वारा जायद के लिए विकसित पीकेडीएस 12, पीकेडीएस-8, पीकेडीएस-11 किस्मों की बुआई करनी चाहिए। बुआई के समय तीन ग्राम बैबस्टीन व थायरम मिलाकर प्रति किलो बीज का उपचार कर लें। सीड ड्रिल से प्रति हेक्टेयर चार किलो बीज लगेगा। वहीं, छिड़काव विधि से पांच किलो प्रति हेक्टेयर बीज लगेगा। खरीफ में भी बीज की यही मात्रा लगती है।
तिल की अच्छी फसल के लिए खाद की मात्रा
तिल की बुआई के लिए अच्छी भुरभरी दोमट मिट्टी वाले खेत का चयन करें। खेत की तैयारी करते समय 8 से 10 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद में पांच किलो ट्राइकोडर्मा बिरडी मिलाकर खेत में छिड़काव करा दें। इसके बाद बुआई करें। बुआई के समय मिट्टी में नमी पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए।
बुआई के समय प्रति हेक्टेयर 40 किलो नाइट्रोज (20 किलो बुवाई और 10-10 किलो पहली सिंचाई और फूल लगने के समय दें), 30 किग्रा फाॅस्फोरस और 20 किलो ग्राम पोटाश की जरूरत पड़ती है। किसान भाई पोटाश एमओपी के माध्यम से दें। एसएसपी के माध्यम से सल्फर दें। तिल के लिए सल्फर बहुत जरूरी होता है।
अच्छी फसल चाहिए, तो गर्मी के फसल में करनी होगी सिंचाई
तिल में खरीफ के समय तो बारिश का पानी ही पर्याप्त होता है। बस पानी का भराव नहीं होना चाहिए। वहीं, गर्मी के समय पहली सिंचाई बीजारोपण के तुरंत बाद करनी चाहिए, नहीं तो बीज को चींटियां खा जाएंगी। दूसरी सिंचाई 30 से 35 दिन में। तीसरी फूल आने पर और चौथी फलियां भरने पर करनी चाहिए।
पानी का साधन हो, तो जरूरत के अनुसार बीच में एक-दो बार और सिंचाई कर सकते हैं। गर्मी में वहीं पर तिल की बुआई करें, जहां का तापमान 45 डिग्री से अधिक न जाता हो। इससे अधिक तापमान होने पर फली नहीं भरती। गर्मी के तिल में 55 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है।
खरीफ में दो तरह के लगते हैं रोग, जायद में कीट व रोग का बचाव
जायद में तिल की खेती कर रहे हैं, तो इस मौसम में रोग या कीट का प्रभाव नहीं होता। खरीफ में दो तरह के रोग तिल में लगते हैं। पहला फाइलोडी। इसमें तने चिपक कर झाड़ीनुमा संरचना बना लेते हैं। इससे बचने के लिए किसान भाई क्विंटल का प्रयोग तीन लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें।
वहीं, चाहें तो किसान भाई बुआई के समय ही बीज में ट्राइकोडर्मा डरमी मिला दें। कोशिश करें कि प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें। दूसरा रोग लगता है जड़ व तना सड़न रोग। इससे बचाव के लिए साफ दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15-15 दिन पर छिड़काव कर दें।
भास्कर खेती-किसानी एक्सपर्ट सीरीज में अगली स्टोरी होगी कि प्रगतिशील किसान जेएनकेवी के एग्री क्लिनीक एंड एग्री बिजनेस सेंटर्स में प्रशिक्षण लेकर कृषि उद्यमी बन सकते हैं। यदि आपका कोई सवाल हो तो इस नंबर 9406575355 वॉट्सऐप पर सकते हैं।
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