मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में रोटेशन, परिसीमन और राज्य सरकार के अध्यादेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती के बीच OBC आरक्षण का मसला आ गया। कोर्ट ने OBC आरक्षण रद्द करने की बात कह दी है। अब लोगों को जानने की उत्सुकता है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कहा? आइए इस बारे में मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता व कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक कृष्ण तन्खा से जानते हैं क्या है मामला। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में उन्होंने कहा- मध्य प्रदेश सरकार ने गैरकानूनी तरीके से काम किया है। संविधान के खिलाफ कोई नहीं जा सकता।
भास्कर: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर क्या कहा है?
तन्खा: रोटेशन का पालन करना संवैधानिक अनिवार्यता है। हाईकोर्ट में रोटेशन को लेकर हम गए थे। कोर्ट ने किसी कारणवश स्टे नहीं दिया। इसके बाद हम सुप्रीम कोर्ट गए, तो वहां से वापस हाईकोर्ट भेजा गया। यहां कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। इस पर फिर सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही का आखिरी दिन था।
आखिरी मैटर के तौर पर दो बजे हमें सुना गया। कोर्ट ने कहा कि सरकार और निर्वाचन आयोग संवैधानिक तरीके से इलेक्शन कराएंगे। यदि असंवैधानिक तरीका अपनाएंगे, तो इलेक्शन ही रद्द हो जाएगा। इस दौरान कोर्ट ने नाराजगी भी जताई। ऐसा लगता है कि कोर्ट ने मन बना लिया था कि स्टे नहीं देंगे, जो हम अपेक्षा कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा है कि OBCआरक्षण मामले में जो महाराष्ट्र केस में फैसला दिया है, उसका पालन मध्यप्रदेश में भी होना चाहिए। महाराष्ट्र केस में सुप्रीम कोर्ट ने OBC सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील कर चुनाव कराने का आदेश दिया है। यह नजीर देते हुए MP में इसे लागू कराने के लिए SG (तुषार मेहता) को आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ पंचायत चुनाव ही नहीं, निकाय चुनाव पर भी लागू होगा।
भास्कर: क्या रोटेशन का केस सुप्रीम कोर्ट में सुना ही नहीं गया। अब आगे उम्मीद?
तन्खा: रोटेशन की प्रक्रिया संवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख जनवरी में तय की है। तब विस्तार से बहस होगी। सुप्रीम कोर्ट को लगेगा कि प्रदेश सरकार का अध्यादेश संवैधानिक नहीं है, तो पंचायत चुनाव निरस्त भी कर सकता है।
भास्कर: क्या इसका मतलब है कि 50% से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए?
तन्खा: ये सरकार की गलती है। अध्यादेश समझदारी से लाना चाहिए था। सभी को विश्वास में लेकर लाते, तो ऐसी नौबत नहीं आती। संविधान के विपरीत अध्यादेश लाएंगे, इस तरह से काम करेंगे, तो व्यवस्थाएं खराब होंगी ही। इसका दुष्परिणाम सामने आना ही है।
भास्कर: 4 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट मांगी थी। क्या सरकार 9 महीने में कुछ कदम बढ़ पाई?
तन्खा: ये सवाल सरकार से करना चाहिए। हमने तो सरकार को OBC के प्रति संवेदनाएं दिखाते हुए कभी नहीं देखा। हम हाईकोर्ट में आठ महीने से पैरवी कर रहे हैं। OBC के साथ अन्याय हो रहा है। मैंने तो तीन-तीन घंटे हाईकोर्ट में खड़े रहकर पैरवी की और सिद्ध भी किया।
सरकार 4 महीने रूल बदलने के लिए हाईकोर्ट से सिर्फ टाइम मांग रही है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक के सामने के सामने ये प्रकरण आया था। पांच दिन पहले भी केस लगा था। सरकार ने एक सप्ताह का और समय मांगा है। सोचिए, एक रूल बदलने में सरकार को चार महीने का वक्त भी कम पड़ गया।
भास्कर: एमपी में ओबीसी को क्यों 27 % रिजर्वेशन देना चाहिए। क्या सरकार वो तथ्य रख पाई?
तन्खा: प्रदेश सरकार OBC हित में काम करने का सिर्फ दुष्प्रचार करती है। गलत व असत्य बातों से OBC समाज को खुश करना चाहते हैं, तो कर लें। सरकार को OBC की पॉलिसी को समझदारी से बनाना चाहिए, जिसे चैलेंज भी न किया जा सके। OBC को लेकर सरकार को कोर्ट में सामाजिक, आर्थिक, जनसंख्या की भागीदारी संबंधी विस्तृत और तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करना चाहिए।
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