देश के मशहूर संतूर वादक शिवकुमार शर्मा नहीं रहे। पर संतूर वादन में उन्होंने जो लंबी लकीर खींची है, उसके आसपास भी कोई नहीं पहुंचता दिख रहा है। संतूर वादक शिवकुमार की वादन कला में गोते लगाने का सौभाग्य संस्कारधानी के लोगों को तीन बार मिला था। आज जब वे हमारे बीच नहीं रहे, तो शहर में उनकी कला के कद्रदान उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए याद कर रहे हैं।
एमपीईबी में पीआरओ पंकज स्वामी के मुताबिक मशहूर संतूर वादक शिवकुमार शर्मा और संतूर एक दूसरे के पर्याय थे। संतूर को विश्वव्यापनी बनाने में उनका अहम योगदान है। शिवकुमार शर्मा का जबलपुर से भी गहरा नाता रहा। वे यहां वर्ष 1984, वर्ष 2014 व वर्ष 2017 में आ कर कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे। वर्ष 1984 में शिवकुमार शर्मा के जबलपुर में कार्यक्रम आयोजित करने में आईटीसी के विजय किचलू की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। विजय किचलू ने कोलकाता में शास्त्रीय संगीत की अकादमी खोलने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
उसी अकादमी के तत्वावधान में यह कार्यक्रम होम साइंस कॉलेज के ऑडिटोरियम में हुआ था। उस समय सिविल लाइंस में सोना हाउस में आईटीसी का एक बड़ा आफिस था। फ्रांसिस नाम के एक व्यक्ति जबलपुर में मैनेजर हुआ करते थे। फ्रांसिस साहब की ख्याति इस बात के लिए थी, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जबलपुर में संगीत के कई बड़े आयोजन करवाए थे। एक तरह से जबलपुर को संगीत से रुबरू कराने में उनका बड़ा योगदान रहा।
2014 में आए थे दूसरी बार
वर्ष 2014 में शिवकुमार शर्मा की जबलपुर की दूसरी जबलपुर यात्रा विवेक तन्खा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के सिलसिले में हुई थी। उनकी तीसरी यात्रा हर्ष व सुनयना पटेरिया के आमंत्रण पर चंद्रप्रभा पटेरिया की स्मृति समारोह में आयोजित होने वाले वार्षिक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर 2017 को हुई थी। वैसे भी जबलपुर में सुशील पटेरिया-चंद्रप्रभा पटेरिया और बाद में उनके पुत्र व वधु हर्ष व सुनयना के प्रयासों से जबलपुर में बड़े संगीतज्ञों का आना संभव हुआ।
पटेरिया परिवार से था आत्मीयता
सुनयना पटेरिया ने बताया कि वर्ष 2017 में शहीद स्मारक में शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन हुआ था। पंडित जी सुनयना जी के विवाह समारोह में वर्ष 1983 में बनारस में शामिल हुए थे। इस नाते उनकी सुनयना पटेरिया और परिवार से आत्मीयता थी। सुनयना पटेरिया ने बताया कि शिवकुमार शर्मा ने संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में मान्यता दिलाने में मेहनत की थी। पंडित शिवकुमार शर्मा ने इसे लोकप्रियता की पराकाष्ठा तक पहुंचाने में विशेष योगदान दिया। पिता पंडित उमा दत्त शर्मा ही उनके गुरू थे।
कार्यक्रम होने तक कमरे से बाहर नहीं निकलते थे
शिवकुमार शर्मा ने पहले फिल्म संगीत में संतूर बजाया। उससे वे संतुष्ट नहीं थे। शिवकुमार शर्मा शिव भक्त थे। वे अपनी सफलता को ‘विश्वनाथ बाबा’का आशीर्वाद मानते थे। वे अपने कार्यक्रम के दिन कमरे से बाहर नहीं निकलते थे। वे पूरे समय अपने को एकाग्रचित करते थे। जबलपुर में भी वर्ष 2014 व 2017 में वे कार्यक्रम होने तक कमरे से बाहर नहीं निकले थे।
क्या है संतूर
संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था। संतूर का भारतीय नाम 'शततंत्री वीणा' यानी सौ तारों वाली वीणा है, जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला। संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है। इसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियां होती है। एक सुर से मिलाये गये धातु के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 60 होती है।आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है।
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