बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर ऐतिहासिक महल गुल आरा का झरना बहने लगा है। इसका निर्माण शाहजहां ने गायिका गुल आरा की याद में 1627-58 ई. में करवाया था। यह उतावली नदी के आमने-सामने वाले तटों पर स्थित है। कई इतिहासकारों का कहना है कि शाहजांह ने गुल आरा की सुदंरता से प्रभावित होकर शादी कर ली थी। करीब 5 सदियों के बाद भी इस जगह की सुंदरता कम नहीं हुई है।
अब सालों से यह एक ऐतिहासिक स्थल है। जहां प्रतिदिन करीब 200-300 पर्यटन आते हैं। अभी कोरोना संक्रमण की संभावना के वजह से यहां विदेशी पर्यटन नहीं आ सके, जबकि दो साल पहले तक यहां विदेशी पर्यटक भी आते थे। यहां सालभर बहता झरना हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
दोनों किनारों पर दो खूबसूरत महल बनवाए
पिता की मृत्यु के बाद जब शाहजहां गद्दी पर बैठे और बुरहानपुर आए तो उनके स्वागत में इस स्थान पर मुजरे की एक महफिल सजाई गई थी। इस दौरान गुल आरा शाहजहां को पसंद आ गई थी। उन्होंने उसके नाम से यहां पर नदी के दोनों किनारों पर दो खूबसूरत महल बनवाए और इनके नाम बेगम गुल आरा के नाम पर रखे थे।
बादशाहनामा में जीवनामृत
बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने महल गुल आरा की खूबसूरती के बारे में लिखा है कि ये ताजगी-ए-हयात यानी जीवनामृत है। औरंगजेब काल में शाहजहांनामा के लेखक इनायत खां ने इस स्थान को कश्मीर तक कहा है।
शायर का छलका दर्द
एक प्रसिद्ध सूफी संत हजरत ख्वाजा मोहम्मद हाश्म काश्मी ने यहां दर्द भी देखा है। उन्होंने फारसी में एक शेर लिखा जिसका अर्थ है, ऐ जलप्रताप! तुझे किस बात का गम है, जो मेरी तरह तमाम रात पत्थर पर अपना सिर मारकर रोता है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.