BJP ने फिर ट्रेंड बदलकर दिखाया:खंडवा में सिम्पैथी की लहर पर सवार होने के बजाय नया चेहरा उतारा, पॉलिटिक्स में नई लाइन खींची

खंडवा/बुरहानपुर2 वर्ष पहले
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ज्ञानेश्वर पाटिल अचानक आए और खंडवा से बीजेपी सांसद बन गए। भाजपा ने एक बार फिर राजनीति में नया ट्रेंड सेट किया है। नंदकुमार सिंह चौहान यानी नंदू भैया चौहान के निधन के बाद सिम्पैथी की लहर पर भाजपा सवार नहीं हुई। उसने महंगाई जैसे मुद्दे के बावजूद जोखिम लेते हुए नया उम्मीदवार उतारा। अपने बूथ मैनेजमेंट के दम पर जीत भी हासिल की।

कौन हैं निमाड़ से नए सांसद

राजनीति में सितारे किस तरह चमकते हैं। इसका एक उदाहरण खंडवा संसदीय सीट से सांसद चुने गए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ज्ञानेश्वर पाटिल हैं। नंदकुमार सिंह चौहान के निधन के बाद रिक्त हुई खंडवा-बुरहानपुर लोकसभा सीट को पाटिल ने जीत लिया है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार राजनारायण सिंह को पराजित किया है। पाटिल का नाम भी खंडवा-बुरहानपुर जिले की राजनीति में नया नहीं है। उन्हें राजनीति में 1992 में पूर्व सांसद अमृतलाल तारवाला लेकर आए थे, लेकिन इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है।

बड़े भाई के साथ राजनीति में आए थे पाटिल
पाटिल के बड़े भाई विश्वनाथ पाटिल तब राजनीति करते थे। अब वह केवल केला व्यवसाय हैं। तब वह पूर्व सांसद नंदू भैया के काफी खास थे। उन्हीं के साथ राजनीति करते थे। वह कभी बड़े पदों पर नहीं रहे, लेकिन पाटिल ने राजनीति में छलांग लगा दी। उन्होंने पूर्व सांसद अमृतलाल तारवाला का दामन थाम लिया। राजनीति में आ गए। इसके कुछ समय बाद वह नंदू भैया के संपर्क में आए। तब से नंदू भैया के निधन तक वह उनके साथ रहे। इस बीच उन्होंने नंदू भैया के कई चुनाव मैनेजमेंट संभाले। अब उनकी विरासत संभालने जा रहे हैं, हालांकि यहां भी नया मोड़ आया।

नंदू भैया के करीबी होने का लाभ मिला
यह राजनीतिक विरासत वैसे तो नंदू भैया के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान को मिलने वाली थी, लेकिन जातिगत समीकरण, गुटबाजी की आशंका सहित अन्य कारणों के चलते ऐन वक्त पर भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार बदल दिया। नंदू भैया के ही करीबी होने पर पाटिल को इसका लाभ मिला। एक बार खुद और एक बार पत्नी के जिला पंचायत अध्यक्ष रहने पर दोनों जिलों में यह लोगों के लिए नया नाम भी नहीं था।

जिला पंचायत अध्यक्ष रहने का फायदा मिला
जब पाटिल खंडवा जिला पंचायत अध्यक्ष थे, तब खंडवा व बुरहानपुर एक ही जिला था। बाद में जब उनकी पत्नी जयश्री पाटिल बुरहानपुर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। तब बुरहानपुर जिला बन गया था। इस चुनाव में उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष रहने का फायदा भी मिला।

क्या हैं पाटिल के सपने

  • नंदू भैया के सपने पूरे करने का दावा। इंदौर इच्छापुर हाईवे और खंडवा अकोला मीटरगेज को ब्राडगेज में परिवर्तित होने में हो रही देरी पर संज्ञान।
  • कृषि आधारित उद्योगों को आगे बढ़ाने के प्रयास करेंगे। ताप्ती मेगा रिचार्ज स्कीम पर काम करेंगे।

कैसे मिला टिकट

  • पाटिल को नंदू भैया का करीबी होने का फायदा मिला। इसके अलावा खुद को भी स्थापित करते रहे। बढ़े नेताओं से संपर्क में रहे।
  • जब हर्षवर्धन की जगह पिछड़ा वर्ग से टिकट की बात चली तो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी उनके नाम का समर्थन किया।
  • पाटिल की कृषि मंत्री कमल पटेल से लेकर स्थानीय नेताओं में भी अच्छी खासी पकड़ है।

जीत के कारण

  • मोदी सरकार की पीएम आवास योजना, अनाज वितरण योजना सहित अन्य योजनाओं और पार्टी के नाम का फायदा मिला।
  • भाजपा ने पिछड़ा वर्ग कार्ड खेला। इसलिए मराठा समाज के अलावा पिछड़ा वर्ग के भी काफी वोट मिले।
  • अल्पसंख्यक वर्ग ने भी उनका समर्थन किया। फेडरेशन के अध्यक्ष रहने का फायदा मिला।

यह भी खास
खंडवा जिले की छैगांवमाखन के ग्राम तोरणी में 2002 में जिला पंचायत की ओर से सैकड़ों की संख्या में पानी रोको अभियान की संरचनाएं बनाई गई थी। तब यहां जिला पंचायत अध्यक्ष पाटिल और जिला पंचायत के सीईओ आईपीएस राजेश गुप्ता थे। अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को खंडवा लाने का श्रेय पाटिल को जाता है। तत्कालीन राष्ट्रपति ने उनके इस कार्य की काफी सराहना की थी।

विजय शाह के किचन कैबिनेट के सदस्य हैं पाटिल
पाटिल वन मंत्री विजय शाह की किचन कैबिनेट के सदस्य हैं। यानी उनके और विजय शाह के पारिवारिक संबंध हैं। इसके अलावा केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद प्रभात झा, नंदू भैया के कारण पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य, खंडवा विधायक देवेंद्र वर्मा, कृषि मंत्री कमल पटेल सहित अन्य से करीबी संबंध हैं।

हर बार नंदू भैया के ही कारण मिला पाटिल को पद
नंदकुमार सिंह चौहान ने कई कार्यकर्ताओं को नेता बनाया। उनमें एक नाम पाटिल का भी है। पाटिल को पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का श्रेय भी नंदू भैया को जाता है। दूसरी बार पाटिल की पत्नी जयश्री पाटिल को भी नंदू भैया ने ही जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया था। अब सांसद भी वह नंदू भैया के ही कारण बने हैं। सभी से अच्छे संबंध रहे, लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। इसलिए सामने नहीं आ सके।

अब सांसद बनने पर एकदम से उभरकर सामने आए। नंदू भैया ने पाटिल की ही तरह जिन कार्यकर्ताओं को नेता और फिर महापौर, विधायक बनाया उनमें बुरहानपुर महापौर अनिल भोंसले, खंडवा विधायक देवेंद्र वर्मा, पंधाना विधायक राम दांगोरे, बड़वाह के पूर्व विधायक हितेंद्रसिंह सोलंकी, मांधाता के विधायक नारायण पटेल, नेपानगर की विधायक सुमित्रा कास्डेकर आदि का नाम आता है।

आपके सांसद की प्रोफाइल

  • नाम- ज्ञानेश्वर पाटिल
  • उम्र -52
  • राजनीतिक सफर -अभा विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा में रहे।
  • 2000 से 2005 तक जिला पंचायत अध्यक्ष रहे।
  • आरक्षण होने पर 2005 में पत्नी जयश्री पाटिल बुरहानपुर जिला पंचायत अध्यक्ष बनी।
  • किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे।
  • 1999, 2004, 200़9 व 2014 में नंदू भैया का चुनावी प्रबंधन देखा।
  • 1998, 2001 व 2003 में भी षाहपुर चुनाव में मैनेजमेंट देखा।
  • 2003 में जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को खंडवा जिले के तोरणी लाए।
  • शिक्षा - स्नातक, बीकॉम।
  • व्यवसाय - केला ट्रांसपोर्टर व सप्लायर।
  • कमजोरी- 2013-14 में जैनाबाद से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गए थे।
  • फर्जी राशन कार्ड बनाने का मामला बार-बार उछलता रहा है।
  • करीब तीन साल पहले मप्र पावरलूम फेडरेशन का अध्यक्ष रहने पर राज्य मंत्री का दर्जा तो मिला, लेकिन पद से हटा दिया गया था।

(बुरहानपुर से रईस सिद्दीकी की रिपोर्ट)

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