”गोल-गोल गोमती ईसर पूजे पार्वती” के स्वर लगे गूंजने:गणगौर पर्व मना रही मारवाड़ी समाज की युवतियां, सप्तमी पर लाई गणगौर प्रतिमा

बड़वाह9 दिन पहले

गोल-गोल गोमती ईसर पूजे पार्वती...के स्वर नगर में फिर से गूंजने लगे हैं। निमाड़ी और मारवाड़ी संस्कृति का प्रतीक गणगौर पर्व होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो गया है।

व्रतधारी नवविवाहिताओं मनीषा गर्ग, परिधि गोयल, काजल मित्तल, सलोनी गुप्ता, पूजा गोयल, राजनंदनी सोनी ने बताया कि ये पर्व नवविवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु और कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर की कामना के साथ मनाती हैं। इस दौरान महिलाएं और युवतियां समूह बनाकर पर्व से सम्बन्धित प्रचलित गीत भी गाती हैं। धुलेंडी से शुरू हुआ पर्व करीब सोलह दिनों तक चलता है। शीतला सप्तमी के अवसर पर व्रतधारी धूमधाम से कुम्हार के यहां से गणगौर को लेकर आई।पहले बिजोरा बनाकर पूजा करती थी।लेकिन अब गणगौर की पूजा की जाएगी। 23 मार्च को गणगौर घाट पर माता पार्वती के प्रतीक ज्वारों के विसर्जन के साथ पर्व का समापन होगा।

होलिका की राख से पिंडी बनाकर करते हैं पूजा

वैष्णवी गर्ग और अवनी गर्ग ने बताया कि होलिका दहन के बाद बची राख पूजा स्थल आनंदेश्वर मंदिर लेकर आए। यहां मिट्टी गलाकर उसकी पिंडियां बनाईं। दीवार पर सोलह कुंकुम, हल्दी, मेहंदी और काजल की सोलह बिंदिया प्रतिदिन लगा रही हैं। इसके अलावा महिलाएं और युवतियां प्रतिदिन सुबह बगीचे में जाकर मिट्टी का बिजौरा बनाकर उसे कलश पर रखती हैं। उसे कई फूलों से सुसज्जित करती हैं। इसके बाद उसे पूजा स्थल पर ले जाकर सोलह बार बिजौरे की पूजा की जाती है। सप्तमी के बाद गणगौर की पूजा होती है। सोहलवे दिन विसर्जन के साथ समापन होता है।

यह है मान्यता

इस पर्व के दौरान माता गणगौर अर्थात पार्वती जी के साथ ईसर जी की पूजा की जाती है। ईसर भगवान शिव का ही एक रूप हैं। प्राचीन समय में पार्वती ने शिवजी को वर रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईसर और गणगौर की पूजा करती हैं। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती हैं।

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