ग्रामीण शिकारी कुत्तों से करते हैं रक्षा, हर घर में हैं मोरों के लिए दाना पानी की व्यवस्था महेश्वर तहसील के करही नगर से 2 किमी दूर चिनगुन गांव को मोरों के गांव के नाम से जाना जाता है। मोर दिन भर आसपास के खेतों में विचरण करते हैं तो शाम होते ही यह घरों की छत पर आकर बसेरा जमा लेते हैं।
ग्रामीणों व मोरों के बीच इतना तालमेल जमा हुआ है कि मोर इनके आसपास बिना डरे पहुंच जाते हैं। यहां के ग्रामीण राष्ट्रीय पक्षी मोर को अपना पारिवारिक सदस्य मानते हैं। जिसके कारण वह उनके लिए घर के बाहर दाना पानी की व्यवस्था भी करके रखते हैं।चिनगुन गांव में 200 से अधिक घर व करीब एक हजार से अधिक की जनसंख्या है।
यहां पर कई सालों से राष्ट्रीय पक्षी मोर खेतों, घरों व जंगल में घुमते हुए आसानी से देखे जा सकते हैं। कई बार मोर घुमते हुए लोगों के घरों में भी घुस जाते हैं। खेतों में लगे अनाज खाते हैं लेकिन ग्रामीण उन्हें कभी नहीं टोकते हैं। यहां के अधिकतर घरों के बाहर मोरों के लिए दाना पानी की व्यवस्था की है ताकि वे बड़े आराम से अपना भोजन कर सके।
सुबह से शाम तक गूंजती है मीठी आवाज
गांव हो या आसपास का जंगल क्षेत्र। पेड़ों पर बैठे मोर पर इनकी मीठी आवाज से ही गांव गूंज उठता है। ग्रामीणों ने बताया अल सुबह से गांव में मोर मोरानियों की मीठी आवाज गूंजना शुरू हो जाती है, जो देर शाम तक गूंजती है।
शिकारी कुत्तों से करते हैं रक्षा, घायलों का कराते हैं इलाज
गांव के हरिराम जाट, गोबिंद जाट, जगदीश सारन, महेंद्र जाट, राजपाल जाट ने बताया गांव व आसपास के दो किमी के क्षेत्र में करीब 500 से अधिक मोर मोरनिया है। कई बार खेतों में विचरण करने के दौरान मोरों पर शिकारी कुत्तें हमला कर देते हैं। जिसे देख ग्रामीण उन्हें बचाने का प्रयास करते हैं।
कई बार घायल हुए मोर को ग्रामीण इलाज कर उनकी देखभाल करते हैं। इसकी सूचना वन विभाग को भी दी जाती है ताकि राष्ट्रीय पक्षी का अच्छे से उपचार हो सके। मोरों को अधिक नुकसान न हो इसका ग्रामीण हमेशा ध्यान रखते हैं।
पावो क्रिस्टेटस है मोर का वैज्ञानिक नाम
वन विभाग पाडल्या रेंजर विष्णु पाटीदार ने बताया भारतीय मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टेटस है। करही क्षेत्र के चिनगुन गांव व आसपास के जंगल में बड़ी संख्या में इन मोरों की प्रजाति है। ग्रीष्म ऋतु इनका प्रजनन काल होता है। इस समय इनकी मधुर ध्वनि रात्रि सुनने को आसानी से मिल जाती है।
जो एक तरह का मैटिंग इंडिकेशन और अलार्म कॉल होता है। एक नर सामान्यतः 3 से 5 मादाओं के झुंड में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में मोर जंगली व घरेलू दोनों स्थानों पर पाए जाते हैं। जिस प्रकार चिनगुन के लोग मोर संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं वह सरहनीय है।
उन्होंने किसानों से अपील कि है कि बुवाई के समय बीज व कीटनाशकों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतें क्योंकि जहरीले बीजों के कारण मोरों की मृत्यु हो सकती हैं। यह राष्ट्रीय पक्षी है जिसका संरक्षण करना हम सभी का कर्तव्य है। भारतीय वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 3 का प्राणी होने से मोरों को किसी भी प्रकार से क्षति पहुंचाना, शिकार करना दंडनीय अपराध भी है।
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