जिला अस्पताल की ब्लड सेपरेशन यूनिट में ढाई माह से एक यूनिट से प्लेटलेट, प्लाज्मा व आरबीसी यूनिट बनते हैं। तीन तरह के बीमारी से पीड़ित मरीज को यूनिट के माध्यम से इलाज मिल रहा है। अब तक 1370 यूनिट बन चुकी है। इसमें 700 मरीजों को तीनों यूनिट चढ़ाई है। मरीजों को इंदौर रैफर नहीं करना पड़ता है। ब्लड के बदले तत्काल तीनों में जरूरत के हिसाब से यूनिट देते हैं। अस्पताल में कुछ दिन पहले यूनिट शुरू हुई। इससे एनीमिया, डेंगू व हार्ट अटैक के मरीजों को प्लेटलेट, प्लाज्मा व आरबीसी की सुविधा मिल रही है।
रोजाना 1 हजार से ज्यादा मरीज अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं। इसमें 10 गंभीर मरीजों का यूनिट से इलाज हो रहा है। अब तक 700 से ज्यादा मरीजों को इलाज मिला है। यूनिट शुरू होने के पूर्व मरीजों को इंदौर या अन्य बड़े शहरों को रैफर करना पड़ता था। अब उन्हें तत्काल आवश्यकतानुसार से इलाज मिल जाता है। ब्लड बैंक प्रभारी डा. रत्नेश महाजन ने बताया जिला अस्पताल के मरीजों के अलावा निजी अस्पतालों में भी प्लेटलेट कंसट्रेट, प्लाज्मा व रेड सेल कंसट्रेट दिया जा रहा है। निजी अस्पतालों में इसका न्यूनतम शुल्क निर्धारित किया है।
प्लेटलेट कंसट्रेट व प्लाज्मा के 300-300 रुपए व रेड सेल कंसट्रेट के 1050 रुपए अस्पतालों से लिए जाते हैं। इस साल अब तक ब्लड बैंक में 1186 यूनिट ब्लड का स्टॉक हुआ है। इससे यूनिट का बेहतर संचालन हो रहा है। करीब 10 करोड़ की लागत से भवन व मशीनें आई है। इसकी शुरूआत होने में भी दो साल से ज्यादा का समय गया, क्योंकि इसके लिए लायसेंस प्रक्रिया हुई। इसके बाद यूनिट चालू हुई है।
इस तरह होता है काम... ब्लड सेपरेटर यूनिट में एक यूनिट ब्लड से श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी), प्लेटलेट्स, प्लाज्मा, प्रोटीन सहित अन्य कम्पोनेंट को अलग-अलग करते हैं। इससे ब्लड डोनर के एक यूनिट ब्लड को कंपोनेंट के रूप में छह अलग-अलग मरीजों को चढ़ाया जा सकता है। सिंगल डोनर प्लेटलेट्स मशीन से एक डोनर से ही इसकी पूर्ति होती है। साथ ही डोनर सात दिन बाद दोबारा प्लेटलेट्स डोनेट कर सकते हैं।
एक यूनिट से 3 कम्पोनेंट होते हैं अलग, 3 मरीजों को लाभ
यूनिट प्रभारी सचिन चौहान ने बताया कि इस यूनिट से एक यूनिट रक्त से तीन मरीजों की जान बचाई जा सकती है। ब्लड में तीन तरह के कम्पोनेंट होते हैं। इनमें रेड ब्लड सेल (आरबीसी), प्लाज्मा व प्लेटलेट्स शामिल हैं। सेपरेशन यूनिट में ब्लड परत दर परत (लेयर बाई लेयर) अलग हो जाता है। आरबीसी, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स अलग-अलग हो जाते हैं। इनको निकालते हैं। इस ब्लड के प्रत्येक कम्पोनेंट की जीवन अवधि अलग-अलग होती है। इस प्रक्रिया में छह घंटे लगते हैं। हालांकि पहले से स्टॉक होने पर मरीज के लिए तत्काल तीनों कम्पोनेंट देते हैं। एक यूनिट रक्त से तीन मरीजों की जान बचती है।
आदिवासी मरीजों को ज्यादा फायदा
जिले में आदिवासी मरीजों को ज्यादा फायदा हो रहा है। क्योंकि एनीमिया के ज्यादा मरीज आदिवासी ही हैं। इसके अलावा डेंगू के मरीज भी हर साल ज्यादा मिलते हैं। हार्ट के मरीजों को भी यूनिट से फायदा हो रहा है।
हार्ट के मरीज : इसमें ब्लड क्लॉट हो जाने पर प्लाज्मा चढ़ाया जाता है। साथ ही बर्न मरीजों और कई बार ब्लीडिंग होने पर भी प्लाज्मा देते हैं। इसमें मरीज की आवश्यकता अनुसार प्लाज्मा दिया जाता है।
इन मरीजों को देते हैं तीनों यूनिट
एनीमिया : इससे पीड़ित मरीजों में खून की कमी होती है। उन्हें आरबीसी कंपोनेंट चढ़ाते हैं। एक यूनिट में 2 से 3 ग्राम बढ़ता है।
डेंगू : इसमें प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है। मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाया जाता है। एक यूनिट में एक हजार प्लेटलेट या इससे ज्यादा बढ़ते हैं।
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