देश 5जी कनेक्टिविटी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं। दूसरी और मध्यप्रदेश में कई गांव ऐसे हैं, जहां मोबाइल नेटवर्क ही नहीं है। ऐसा ही मामला नर्मदापुरम जिले के 25 गांवों में सामने आया। यहां की सिवनी मालवा तहसील के सामरधा गांव में आयुष्मान कार्ड शिविर लगा है। यह नई बात नहीं, पर खास यह है कि गांव में नेटवर्क नहीं है, इसलिए आयुष्मान कार्ड बनाने वाली टीम 300 फीट ऊंचे पहाड़ पर चढ़ी। यहां बमुश्किल कनेक्टिविटी मिली, तब जाकर खुले में 4 डंडियों के सहारे पत्तों की छांव की और फिर आयुष्मान कार्ड बनाना शुरू किया।
ऐसे हालात अकेले एक गांव के नहीं, बल्कि सिवनी मालवा तहसील के झिन्नापुरा, लही, सामरदा, पलासी, दावीदा, पीपलकोठा, भाबंधा, घोघरा, बारासेल, बैंठ, नयापुरा, जाटमऊ, बांसपानी सहित 25 गांव है। यहां दूर-दूर तक मोबाइल और इंटरनेट की कनेक्टिविटी नहीं मिल पाती है। आदिवासी अंचल में योजना का क्रियान्वयन शत-प्रतिशत हो सके, इसके लिए पंचायत सचिव एवं कॉमन सर्विस सेंटर संचालक सतपुड़ा के आदिवासी अंचल में पहाड़ियां ढूंढ रहे हैं, ताकि कनेक्टिविटी मिले, जिससे आयुष्मान कार्ड का काम शत प्रतिशत हो सके।
गांव-गांव चल रहा अभियान
कई पात्र हितग्राहियों के आधार कार्ड अपडेट नहीं होने से आयुष्मान कार्ड नहीं बन पा रहे हैं। आधार कार्ड अपडेशन का कार्य सिवनी मालवा के 8 सेंटरों पर स्वान नेट कनेक्शन देकर कराया जा रहा है। एक सेन्टर से करीब 25 कार्ड ही अपडेट हाे पा रहे हैं।
पहाड़ पर मिलता है नेटवर्क
सामरधा ग्राम पंचायत सचिव लवकुश रघुवंशी ने बताया दावीदा गांव से 2 किमी दूर पहाड़ पर नेटवर्क मिलता है। जहां आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं। पूरी टीम और गांव के लोग पहाड़ी पर जाते हैं। इसके बाद कार्ड बन पाते हैं।
इस मामले में जनपद पंचायत सीईओ दुर्गेश भूमरकर का कहना है कि सतपुड़ा पर्वत पर बसे हुए कई गांवाें में मोबाइल और इंटरनेट की कनेक्टिविटी नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में आसपास जहां भी कनेक्टिविटी मिलती है वहां पर काम करते हैं।
2 हजार गांवों में नहीं मिलता नेटवर्क
एमपी के 2 हजार गांव ऐसे हैं, जहां पर लोग मोबाइल या फोन का उपयोग नहीं करते । ग्वालियर में भी 200 गांव ऐसे हैं, जहां पर लोग मोबाइल का उपयोग नहीं किया जाता है। इन गांवों के लोग शहर आकर मोबाइल का उपयोग करते हैं। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन गांव में किसी भी कंपनी का नेटवर्क नहीं मिलता है। इस कारण से लोग मोबाइल का उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे ही गांव की सूची भारत सरकार ने पिछले दिनों तैयार कराई । यदि पूरे देश की बात करें तो यह संख्या हजारों में है। ऐसे गांव में बीएसएनएल को नेटवर्क पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई है।
बीएसएनएल का कहना है कि जैसे ही 4जी नेटवर्क आएगा तो उसका नेटवर्क सबसे पहले इन गांव में पहुंचाने का काम किया जाएगा। इधर, बीएसएनएल के 3जी नेटवर्क ठीक से काम नहीं कर रहा है। इस कारण से कई लोग बीएसएनएल का नेटवर्क छोड़कर दूसरे नेटवर्क का विकल्प चुन रहे हैं। यदि पिछले 6 महीने की बात करें तो बीएसएनएल के अफसरों का कहना है कि करीब 10 हजार ग्राहक बीएसएनएल छोड़कर दूसरी कंपनी का विकल्प चुन चुके हैं।
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मांडू की खाइयों में बसे गांवों में नहीं पहुंचा नेटवर्क
मांडू से 7 किमी दूर 2 हजार फीट खाई में बसे 5 आदिवासी गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है। बात करने के लिए ग्रामीणों काे दाे हजार फीट की चढ़ाई चढ़कर पहाड़ी के ऊपर पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों ने यहां भी कुछ जगह चिह्नित कर रखी है, जहां से मोबाइल का नेटवर्क पकड़ में आ जाता है। उनमें से किसी पहाड़ी को ये बीएसएनएल पहाड़ी कहते हैं तो किसी को जियो पहाड़ी। आंबापुरा पर आइडिया का नेटवर्क मिलता है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
इन गांवों में न मोबाइल न लैंडलाइन कनेक्शन
सूचना क्रांति और ई-गर्वनेंस के दौर में जब तमाम सरकारी सेवाएं इंटरनेट व टेलीकम्युनिकेशन के भरोसे हैं, ऐसे में मध्यप्रदेश के 2612 गांव में यह सेवा शुरू भी नहीं हुई है। इन गांवों में न तो मोबाइल नेटवर्क पहुंचते हैं, न ही लैंडलाइन टेलीफोन सर्विस है। हर हाथ में मोबाइल फोन वाले मौजूदा दौर में यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन हकीकत यही है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
मोबाइल नेटवर्क नहीं, राशन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा सभी में दिक्कत
पूरे देश में भले ही 5 G मोबाइल नेटवर्क लाने की तैयारी की जा रही हो। कई जगह यह सेवा शुरू भी कर दी गई है। लेकिन मध्यप्रदेश के तीन हजार से ज्यादा गांव आज भी मोबाइल नेटवर्क से महरूम है। इसमें सबसे ज्यादा बैतूल और खरगोन जिले के गांव है। जहां तक संचार क्रांति की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। बीएसएनएल अब इन गांवों तक मोबाइल टॉवर पहुंचाने की तैयारी कर रहा है।पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
कंप्यूटर शिक्षा में हम सबसे पीछे
स्कूल स्तर पर बच्चों को कंप्यूटर एजुकेशन उपलब्ध कराने में मध्यप्रदेश देश में सबसे पीछे है। प्रदेश के सिर्फ 3 फीसदी स्कूल ही ऐसे हैं, जिनमें बच्चों के लिए कंप्यूटर डिवाइस हैं। जबकि इस मामले में 91 फीसदी के साथ लक्षद्वीप, 86 फीसदी के साथ दिल्ली और 82 फीसदी के साथ केरल सबसे आगे है। वैसे मध्यप्रदेश के 11 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट सुविधा तो है, लेकिन यह विद्यार्थियों के बजाए ऑफिशियल वर्क के लिए है।पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...
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