जावद के श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर ट्रस्ट ने शनिवार शाम को गोधूलीवेला में नृसिंह भगवान का प्राकट्य उत्सव मनाया। इस दौरान मंदिर के पुजारी कमलेश पाराशर ने भगवान नृसिंह का स्वरूप धारण किया। वहीं एक युवक को हिरण्य कश्यप की वेशभूषा पहनाई गई। हिरण्य कश्यप ने श्रद्धालुओं के साथ अपनी लीलाएं की।
इसी के साथ शाम को शुभ मुहूर्त में भगवान के प्रकट होने के लिए ढोल नगाड़ों के साथ पूजा-अर्चना की गई। पूजन के बाद अचानक सैकड़ों भक्तों के बीच भगवान नृसिंह खंभा फाड़कर प्रकट हो गए। भगवान नृसिंह प्रकट हुए तो शंख, घंटे बजने लगे। यह दृश्य देखकर हर कोई अचंभित रह गया।
भगवान नृसिंह ने उपस्थित श्रद्धालुओं को दर्शन दिए, तो जयकारें लगने लगे। इसके बाद पुजारी ने भगवान नृसिंह की आरती की। साथ ही मंदिर गर्भगृह में विराजमान अखिलकोटि ब्रह्मांड नायक भगवान लक्ष्मीनाथ जी की आरती की गई और श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरित किया गया। कार्यक्रम के दौरान हिरण्य कश्यप का नृत्य आकर्षक का केंद्र रहा।
हिरण्य कश्यप के वध से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्य कश्यप को कोई मार नहीं सकता था। उसने कठिन तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि ‘किसी प्राणी, मनुष्य, पशु, देवता, दैत्य, नागादि किसी से मेरी मृत्यु न हो। मैं समस्त प्राणियों पर राज्य करूं। मुझे कोई न दिन में मार सके न रात में, न घर के अंदर मार सके न बाहर। यह भी कि कोई न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार मार सके। न भूमि पर न आकाश में, न पाताल में न स्वर्ग में।
भगवान ब्रह्मा के इस वरदान ने उसके भीतर अजर-अमर होने का भाव उत्पन्न हो गया था। इसके चलते उसने धरती पर अत्याचार शुरू कर दिया। लोगों को वह ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा-प्रार्थना छोड़कर खुद की पूजा करने का कहता था। जो ऐसा नहीं करते थे उन्हें वह मार देता था।
हिरण्य कश्यप के कई पुत्र थे। उनमें प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। विष्णु भक्ति के कारण हिरण्य कश्यप प्रहलाद से इतना नाराज था कि उसने प्रहलाद को मारने का आदेश दे दिया, लेकिन विष्णु भक्ति के कारण प्रहलाद को कोई मार नहीं सकता था। प्रहलाद को जल में डुबोया गया, पहाड़ से नीचे गिराया गया, अस्त्र-शस्त्र से काटने का प्रयास किया गया, लेकिन हर उपाय असफल रहे। इससे हिरण्य कश्यप चिंतित हो गया।
जिसके बाद हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद को एक खंभे से बांध दिया। फिर भरी सभा में प्रहलाद से पूछा, ‘किसके बलबूते पर तू मेरी आज्ञा के विरुद्ध कार्य करता है? ’प्रहलाद ने कहा, ‘आप अपना असुर स्वभाव छोड़ दें। सबके प्रति समता का भाव लाना ही भगवान की पूजा है।
'हिरण्यकश्यप ने क्रोध में कहा, ‘तू मेरे सिवा किसी और को जगत का स्वामी बताता है। कहां है वह तेरा जगदीश्वर? क्या इस खंभे में है जिससे तू बंधा है?’ यह कहकर हिरण्य कश्यप ने खंभे में घूंसा मारा। इसके बाद खंभे से भगवान नृसिंह प्रकट हुए। जिन्होंने हिरण्य कश्यप का वध कर दिया।
कार्यक्रम में ये रहे मौजूद
नृसिंह जयंती उत्सव के दौरान ट्रस्ट उपाध्यक्ष सत्यनारायण ओझा, सचिव विजय मुछाल, सह सचिव दिलीप बांगड़, कोषाध्यक्ष राजीव ओझा, सह कोषाध्यक्ष दिनेश राठी, कार्य समिति सदस्य श्रीलाल बोहरा एडवोकेट, द्वारिकाधीश काबरा, राजेंद्र राठी दामोदरपूरा वाला, जय प्रकाश भूतड़ा और नरसिंहलाल सोनी, शांति कुमार पौराणिक, राजकुमार मुछाल, नंद किशोर पलोड़, कमल किशोर भूतड़ा, बाबूभाई काबरा, गोपाल भूतड़ा, नंदलाल सोनी, रोशनलाल सोनी, बलराम काबरा, राकेश राठी, सुशील पोरवाल, महेश ईनाणी, विनय भूतड़ा, महेश राठी सेठु, दीपक झंवर, अंकित पोरवाल मोनू, राकेश बिकानेरिया, नेमीचंद लोढ़ा, कैलाश पोरवाल, पुरुषोत्तम सोनी, मोहित पाटनी, प्रहलाद काबरा, दिलीप कुमावत, राजाबाबू सोनी, सुरेश एरन, सुशील काबरा, कारूलाल ग्वाला सहित सैकड़ों महिला-पुरूष और बच्चे उपस्थित रहे।
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