मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा यूं ही नहीं मिला है। बाघ अपने रिजर्व एरिया से निकल कर उन जगहों पर अपना आशियाना बना लिया, जो कठिन माने जाते थे। चाहे भेड़ियों के प्राकृतिक आवास नौरादेही अभयारण्य हो या फिर नक्सलियों के बालाघाट के जंगल। पेंच की बाघिन क्वीन ऑफ पेंच के नाम पर 2 वर्ल्ड रिकॉर्ड भी हैं। इसमें 10 साल में 8 बार में 29 शावकों को जन्म दिया है।
प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में सबसे ज्यादा रिजर्व पार्क बांधवगढ़, कान्हा और पेंच हैं। इसकी वजह से यहां बाघों की संख्या सवा 300 से ज्यादा है। प्रदेश में अभी 526 बाघ हैं और इनका कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है। खास बात ये है कि प्रदेश के असंरक्षित इलाकों में इनकी संख्या बढ़ती जा रही है।
वर्ल्ड टाइगर डे पर पढ़िए बाघों के बढ़ने और बसने की कहानी...
नौरादेही अभयारण्य: भेड़ियों की जगह बाघ बसने लगे
भेड़ियों के प्राकृतिक आवास के लिए पहचाने जाने वाले सागर जिले के नौरादेही अभयारण्य में अब बाघों की दहाड़ सुनाई दे रही है। यहां 3 सालों में बाघों का कुनबा बढ़ा है। नौरादेही में सवा 2 साल के तीनों शावक अपनी मां बाघिन राधा के साथ अक्सर देखे जाते हैं। बाघ किशन भी राधा और शावकों के आसपास ही रहता है।
सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के 1192 वर्ग किमी भू-भाग में फैले नौरादेही वन्य प्राणी अभयारण्य का जंगली क्षेत्र भेड़ियों का प्राकृतिक आवास है, लेकिन इसे एक बाघ सेंचुरी के तौर पर विकसित किया जा रहा है। 19 अप्रैल 2018 को यहां कान्हा से बाघिन एन-1 को लाया गया, जिसे राधा नाम दिया गया। राधा के रमने के बाद अभयारण्य में बांधवगढ़ से एन-2 बाघ लाया गया, जिसका नाम किशन रखा गया।
एक वर्ष में ही अभयारण्य में खुशियां आईं और मई 2019 में राधा ने 3 शावकों को जन्म दिया। इनमें दो मादा और एक नर है। इस तरह तीन वर्ष में अभयारण्य में बाघों का कुनबा बढ़कर 5 पर पहुंच गया।
नौरादेही में सवा 2 साल के तीनों शावक अपनी मां राधा के साथ अक्सर देखे जाते हैं। किशन भी राधा और शावकों के साथ देखा जाता है। बाघों का यह परिवार अभयारण्य की व्यारमा और बमनेर नदी की तराई में सर्रा, नौरादेही, सिंगपुर रेंज के जंगल में अठखेलियां करते नजर आता है। कभी कभार यह मुहली रेंज के जंगल में भी पहुंच जाते हैं। विभाग द्वारा बाघों की सुरक्षा के लिए अभयारण्य में एक्स आर्मी मैन तैनात किए गए हैं। साथ ही विभाग का अमला हाथी की मदद से शावकों की गतिविधियों पर नजर रखता है। बाघों के अलावा नौरादेही में भालू, तेंदुआ, भेडिय़ा, नीलगाय, बंदर, बारहसिंगा, हिरण, काले हिरण आदि जंगली जानवर हैं।
बालाघाट: जहां कभी नक्सलियों का डेरा था, वहां अब बाघों का राज, छह साल में जीरो से 28 हुए
बालाघाट वो इलाका है, जहां कभी नक्सलियों का डेरा होता था और आज भी वहां नक्सल मूवमेंट रहता है। इसके बावजूद बीते 6 साल में इस इलाके में बाघों की संख्या 0 से 28 हो गई। ये इलाका 1000 वर्ग किमी में फैला है। बालाघाट के आदिवासी पहले नक्सलियों के बहकावे में आकर उनमें शामिल हो जाते थे। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने इन्हीं आदिवासियों को अपना वॉलंटियर बनाया।
WWF सेंट्रल इंडिया, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के वॉलेंटियर्स ने छह साल इस इलाके में आदिवासियों को जागरूक किया। उन्हें बताया कि किसी भी वन्य प्राणी के शिकार से एक नहीं, पूरा परिवार परेशान होता है। जेल अलग जाना पड़ता है। इस बात को यहां की नई पीढ़ी ने समझा। उन्होंने शिकार करना छोड़कर वन्य जीवों के संरक्षण में सहयोग करना शुरू कर दिया।
बालाघाट CCF नरेंद्र कुमार सनोडिया ने बताया कि बालाघाट वन डिवीजन कान्हा और पेंच नेशनल पार्क के बाघों का काॅरिडोर रहा है। यहां पर पहले कभी बाघों ने अपना रहवास नहीं बनाया। नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से कई बार यहां शिकार की सूचना जरूर मिलती थी। अब यहां 28 बाघ हैं, जिनका रिकॉर्ड वन विभाग रख रहा है।
पेंच की रानी ने एक साथ 5 शावकों को जन्म दिया
पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन "क्वीन ऑफ पेंच" के नाम दो वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज है। पहला- 10 साल में 8 बार में 29 शावकों को जन्म दे चुकी है। इसमें से 23 शावक जीवित और तंदुरुस्त भी हैं। दूसरा, एक साथ 5 शावकों का जन्म देने का। वर्ष 2008 से लेकर अब तक औसतन हर दो साल में शावकों को जन्म देने का रिकॉर्ड बनाया है। मई 2008 में इस बाघिन ने 3 शावकों को जन्म दिया था, इसके बाद से लगातार 29 शावकों को जन्म दिया।
कॉलर वाली बाघिन के नाम से मशहूर इसे "क्वीन ऑफ पेंच" कहा जाता है। इसे ‘मोस्ट फेमस टाइग्रेस इन इंडिया’ के नाम से भी जाना जाता है। पेंच में बाघों का कुनबा बढ़ाने में इसका खासा योगदान रहा है। शावकों की परवरिश में माहिर और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र यह बाघिन इसी वजह से वाइल्ड लाइफ के लिए धरोहर मानी जाती है। अब इस बाघिन की तीसरी संतान ने भी एक साथ 5 शावकों का जन्म दिया है। पेंच टाइगर रिजर्व के संचालक विक्रम सिंह के मुताबिक माना जाता है कि 50% शावक ही बच पाते हैं, लेकिन इसके 28 में से 23 शावक सही सलामत हैं। उसकी टेरेटरी भी बड़ी है और किसी का दखल नहीं है।
भोपाल- 2006 तक एक भी बाघ नहीं, अब 18 से ज्यादा
भोपाल के 500 वर्ग किमी में फैले वन डिवीजन में 2006 में एक भी बाघ नहीं था, अब 18 से ज्यादा हैं। इस एरिया में बाग भी बढ़ रहे हैं। लगातार निगरानी की जा रही है।
सबसे ज्यादा बाघ बांधवगढ़ में
मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बाघ बांधवगढ़ नेशनल टाइगर रिजर्व पार्क में हैं। यहां इनकी संख्या 164 है, जबकि दूसरे नंबर पर कान्हा आता है। कान्हा रिजर्व में 118 बाघ हैं। इसी तरह पेंच में 64 बाघ हैं। यह तीनों रिजर्व पार्क महाकौशल क्षेत्र में आते हैं।
संजय दुबरी में बढ़ गए 60% बाघ
वर्ष 2018 में सीधी जिले के संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में महज 5 बाघ पाए गए थे, पर वर्ष 2020 की आंतरिक गिनती में यहां 13 बाघों की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं।
कहां कितने बाघ
नोट= आंकड़े 2020 के हैं।
और यह भी: टाइगर स्टेट में तेंदुओं का बसेरा
टाइगर के बाद तेंदुआ स्टेट का दर्जा हासिल कर चुके मध्यप्रदेश में तेंदुओं की संख्या टाइगर रिजर्व (बाघ संरक्षित क्षेत्रों) में तेजी से बढ़ रही है। 2018 में हुए नेशनल टाइगर एस्टीमेशन के अनुसार देश में 12,852 तेंदुए पाए गए थे।
इनमें सबसे अधिक 3,421 तेंदुए (एक चौथाई) मध्यप्रदेश में गिने गए, लेकिन किस टाइगर रिजर्व में तेंदुओं की संख्या कितनी है, ये रिपोर्ट इसी सप्ताह वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को भेजी है। इस रिपोर्ट को वर्ल्ड टाइगर डे (अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस) पर आज गुरुवार को वन मंत्रालय जारी कर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 51 टाइगर रिजर्व में सबसे अधिक 350 तेंदुए मप्र के पन्ना टाइगर रिजर्व में हैं। जबकि दूसरे नंबर पर प्रदेश का ही कान्हा टाइगर रिजर्व है जहां 207 तेंदुए हैं।
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