कोरोना से संक्रमित होने के बाद सबसे ज्यादा समय 257 दिन तक अस्पताल में इलाज कराने वाले रीवा के मृतक किसान धर्मजय सिंह के सिर्फ ट्रीटमेंट में ही 6 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। कोरोना में इतनी बड़ी राशि का खर्च होना भी अपने आप में चर्चा में है। आखिर इतना पैसा किस चीज में खर्च हुआ, इस बारे में किसान के बड़े भाई प्रदीप सिंह ने बताया और उन्होंने किस तरह इस पैसे का इंतजाम किया।
धर्मजय एक्मो मशीन से साढ़े छह महीने बाद 21 नवंबर को बाहर आए थे। उनके लंग्स 80% काम भी करने लगे थे। वे बैठने और बात भी करने लगे थे, लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और ब्रेन हेमरेज से उनकी जान चली गई।
बस किसी तरह भाई की जान बचानी थी
चेन्नई से भास्कर के साथ बातचीत में धर्मजय के बड़े भाई प्रदीप ने बताया कि भाई की जान से बढ़कर कुछ नहीं था। न ही परिवार के किसी शख्स ने पैसे को लेकर कुछ सोचा, बस उन्हें बचाना था। चेन्नई अपोलो हॉस्पिटल में रोजाना के ट्रीटमेंट की फीस ही ढाई से तीन लाख रुपए तक थी। इसमें एक्मो सिस्टम में रखने के चार्ज के साथ सभी डॉक्टर्स के राउंड की फीस भी शामिल थी। अब कभी-कभी तीन या साढ़े तीन लाख रुपए भी लग जाता।
ऑक्सिजनेटर चेंज करने की फीस अलग लगती थी। इसमें इंफेक्शन हो जाता है, इसलिए हर महीने में 3-4 बार चेंज करते हैं। इसे लेकर 5-8 लाख रुपए अलग से लेते थे, महीने में चार बार ये ऑक्सिजनेटर चेंज कर लेते थे। ऐसे में हर महीने 70-80 लाख रुपए लग जाते थे। भाई के संक्रमित होने पर मेडिसिन की जरूरत ज्यादा पड़ जाती थी, बाकी समय कम होने से पैसा कुछ कम लगता था।
एक्मो से बाहर आने पर एक लाख खर्च रोज का
21 नवंबर को जब वे एक्मो से बाहर आए तो अस्पताल का खर्च एक लाख रुपए के आसपास हर दिन का आ गया। बाहर आने से डॉक्टर के राउंड, मशीन के साथ ही कुछ अन्य चीजों की फीस कम हो गई। इसके अलावा पेशेंट के खाने का ही हर दिन का 15-16 हजार रुपए लेते थे। यहां का बहुत हाई बिल रहता है। लंदन के डॉक्टर के कॉल की फीस भी मरीज से लेते हैं। 35 लाख रुपए रीवा से चेन्नई अपोलो में भर्ती करने का लगा।
गांववाले मदद के लिए आए, लेकिन नहीं ली
कोरोना के इतने महंगे इलाज के लिए गांववासी भी मदद करने के लिए सामने आए, लेकिन मरीज के परिजन ने मना कर दिया। ट्रीटमेंट में 6 करोड़ लगे, जो परिवार-रिश्तेदारों से जुटाए गए।
ये भी पढ़िए:-
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.