यह समय बच्चों के लिए ज्यादा ध्यान देने वाला हो गया है। पेरेंट्स के सामने अपने कामकाज के साथ बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। ऐसे में पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को पढ़ाने व अन्य कार्यों की जिम्मेदारी बांट लें, लेकिन उन्हें पर्याप्त समय देना जरूरी है।
शिक्षाविद् और प्राचार्य डॉ. भरत व्यास बताते हैं कि यह समय पेरेंट्स के लिए कम चुनौतियां भरा नहीं है। उन्हें अपने कामकाज के साथ बच्चों की पढ़ाई और भविष्य निर्माण पर भी ध्यान देना है। ऐसे में उन्हें चाहिए कि वे बच्चों को समझाने के बजाय करके दिखाएं। क्योंकि बच्चा सुनने से कम देखने से ज्यादा सीखता है। बच्चों का मल्टी डायमेंशनल डेवलपमेंट के लिए उन पर पूरा ध्यान देना जरूरी है।
पेरेंट्स ने पूछे सवाल
कोरोना के समय में घर पर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे बच्चों के पेरेंटस ने भास्कर से कई सवाल पूछे। उनमें से कुछ सवालों के जवाब आज पढ़िये जिनके जवाब डॉ. भरत व्यास ने दिये।
बच्चे आखिर मोबाइल की ओर क्यों अट्रैक्ट होते हैं?
हम युवा पीढ़ी और बच्चों को सही दिशा में नहीं ले जा पा रहे हें। उनके संस्कार पक्ष को मजबूत करने के प्रयास नहीं हो रहे हैं।
पेरेंट्स की क्या ड्यूटी होना चाहिए?
पेरेंट्स बच्चों को शिक्षा के लिए सिर्फ और सिर्फ स्कूलों के भरोसे छोड़ रहे हैं। अभी तो बच्चा स्कूल भी नहीं जा पा रहा। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स की ड्यूटी बढ़ जाती है।
घर-दफ्तर का काम, बच्चों की पढ़ाई और मेंटरिंग में कैसे बैलेंस करें पेरेंट्स?
पेरेंट्स की ड्यूटी बच्चा क्लास अटेंड कर ले या होम वर्क पूरा कर ले यही नहीं होती। बच्चे का सर्वांगीण विकास हो, पर्सनेलिटी का मल्टी डायमेंशनल विकास हो, यह भी देखना चाहिए। यह समय थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन पेरेंट्स यदि इसे बिना बोझ समझे बच्चों पर ध्यान देने लगेंगे, तो बच्चे मोबाइल से भी दूर होंगे और पेरेंट्स जो कर रहे हैं, वैसा ही करने लगेंगे।
बच्चों को घर पर कैसे सिखाएं-समझाएं?
बच्चे में अच्छे संस्कार, गुण आएं यह भी पालकों की जिम्मेदारी है। बच्चा सुनकर कम देखकर ज्यादा सीखता है। बच्चा जैसा व्यवहार देखेगा, वैसा ही करेगा। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स का व्यवहार उसी तरह से अनुशासित और संस्कारित रखना पड़ेगा। तभी हम बच्चों को आगे बढ़ा सकेंगे। ऐसे बच्चों से समाज में आने वाली कई समस्याओं का निराकरण अपने आप ही हो जाएगा।
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