पन्ना हीरे के लिए मशहूर है। हम आपको कोई नई बात नहीं बता रहे हैं, लेकिन वो कहानियां और प्रोसेस जरूर बताएंगे जिससे हीरा मिलता है। संडे स्टोरी में हम आपको बताएंगे कैसे हीरा तलाशा जाता है और उन भाग्यशाली लोगों की कहानियां जिन्होंने 20 से 30 साल तक रोज इसी उम्मीद में खुदाई की कि उनकी किस्मत चमक जाएगी। एक पल में यहां आदमी रंक से राजा बन जाता है। कई ऐसे भी हैं, जो लाखों गंवाने के बाद भी आज भी इस उम्मीद में खदानों की खाक छान रहे हैं कि हीरा उन्हें मिल जाए। दैनिक भास्कर ऐप टीम की पन्ना से खास रिपोर्ट।
पहले जमीन तलाशते हैं, 200 रुपए में मिलता है एक पट्टा
एक पट्टा 25 गुणा 25 फीट का होता है। हीरे से लबरेज बताई जाने वाली खदान में कई किसानों की निजी और कुछ जमीन सरकार की है। सरकारी की जमीन पर खनन के लिए खनिज कार्यालय से परमिशन लेनी पड़ती है। एक पट्टे के लिए 200 रुपए की फीस लगती है।
जिसकी जमीन पर हीरा मिलेगा वो 25% का हकदार
यदि किसी किसान के खेत में खुदाई (खनन) करना है तो उस किसान का सहमति पत्र खनन विभाग में जमा कराना होता है। आमतौर पर जमीन मालिक इसके एवज में 25% का अनुबंध करते है। इसका मतलब है कि यदि हीरा मिला हो तो उस जमीन मालिक को हीरे की कुल कीमत का 25% हिस्सा मिलेगा।
चाल वाली मिट्टी में मिलता है डायमंड
हीरा मिट्टी की दूसरी लेयर में मिलता है। इसे चाल की लेयर कहा जाता है। चाल उस मिट्टी की परत को कहते हैं, जिसमें पत्थर व हीरे मिक्स होते हैं। यही मिट्टी बेहद काम की होती है, जो हीरा उगलती है। जब तक चाल की मिट्टी मिलती है, उस गहराई तक खुदाई होती है। इस मिट्टी को स्टोर किया जाता है। खुदाई में मिले बड़े-बड़े पत्थरों में हीरे मिलने का सबसे संभावना अधिक होती है।
रातभर मिट्टी को पानी में रखकर सुबह धोया जाता है
चाल की मिट्टी को रातभर के लिए पानी वाले गड्ढे में भिगोकर रखते हैं। यहां तीन तरह के पानी के गड्ढे बनाए जाते हैं। सबसे पहले भिगोए गए चाल की मिट्टी को हाथों से मसला जाता है। बड़े पत्थरों के टुकड़ों को अलग कर देते हैं। इसके बाद जाली की बनी लोहे की टोकनी में इस चाल वाली मिट्टी को लेकर पानी वाले दूसरे गड्ढे में धोया जाता है। दही की मथनी की तरह हाथों से मथा जाता है। इस प्रक्रिया में मिट्टी घुल जाती है और टोकनी में कंकड़-पत्थर बचते हैं। इसे आखिरी में तीसरे साफ पानी वाले गड्ढे में धोते हैं। फिर इस कंकड़-पत्थर को गोबर से लीप कर बनाए मिट्टी की फर्श पर सूखाते हैं। एक-दो घंटे बाद इसमें हीरे को वैसे ही खोजा जाता है, जैसे चावल में कंकड़ देखा जाता है। हीरे जैसा चमकदार पत्थर मिलने पर उसे अलग कर देते हैं। हीरा होने का भरोसा होने पर उसे हीरा कार्यालय पहुंचाते हैं। वहां से पुख्ता होता है कि पत्थर हीरा है या कांच।
ऐसे तय होती है हीरे की कीमत
पन्ना के हीरा अधिकारी रवि पटेल के मुताबिक कलर क्लीयरिटी, कट और वजन से हीरे की कीमत तय होती है। सबसे अच्छा हीरा जैम क्वालिटी में ई और डी श्रेणी का माना जाता है। पन्ना में अमूमन ई श्रेणी का हीरा मिल जाता है। जैम क्वालिटी के हीरे की अंगूठी और दूसरी ज्वैलरी बनती है। जबकि दूसरा इंडस्ट्रियल ब्लैक हीरा होता है। इसका ग्लास कटिंग, एयरप्लेन के छर्रे सहित दूसरी व्यवसायिक गतिविधियों में उपयोग होता है। इसकी कीमत कम होती है। हीरा 50 हजार से लेकर 15 लाख रुपए कैरेट तक बिक सकता है।
20 साल बाद चमकी किस्मत, मिला 2.25 करोड़ का हीरा
पन्ना में सबसे बड़ा 44 कैरेट का हीरा 1961 में मिला था। 67 साल बाद 2018 में 4 दोस्तों को 42 कैरेट से ज्यादा वजन का हीरा मिला था। 20 साल बाद किस्मत उन पर मेहरबान हुई थी। ये हीरा उन्हें पटी की खदान में 9 अक्टूबर को मिला था। इस खदान का पट्टा मोतीलाल प्रजापति के नाम पर था। हीरा कार्यालय से मोतीलाल को इस हीरे के एवज में 2.25 करोड़ के लगभग कीमत मिली थी। मैं भास्कर रिपोर्टर मोतीलाल से मिलने उनके घर बेनीसागर मोहल्ले में पहुंचा। घर में पत्नी मिलीं। बताया कि वह तो सुबह ही खदान निकल गए। अब शाम 5 बजे मिलेंगे। मेरी मोतीलाल से बात हुई। इसके बाद मैं भी हीरापुर टपरियन खदान जा पहुंचा। यहां मेरी मुलाकात मोतीलाल से हुई। करोड़पति बनने वाले बेनीसागर मोहल्ला पन्ना निवासी मोतीलाल अब भी इस उबाऊ और थकाऊ काम को कर रहे हैं। सीधा सवाल भी इसी को लेकर किया। मोतीलाल ने कहा “मैंने जो जिंदगी जी है, वो मेरे बच्चे न जिएं। उनको अच्छी शिक्षा देना और पढ़ाई कराना मेरा सपना है। इसी सपने को पूरा करने अब भी खदानों की खाक छान रहा हूं।
मोतीलाल के करोड़पति बनने की कहानी जान लीजिए
बेनीसागर मोहल्ला पन्ना निवासी मोतीलाल 47 साल के हैं। चार भाई-बहनों में मोतीलाल 10वीं तक पढ़ पाए। पैसे के अभाव में पढ़ाई छोड़ मजदूरी करनी पड़ी। अभी परिवार में मां, पत्नी के अलावा दो बेटे व एक बेटी है। मोतीलाल चार पार्टनर के साथ 20 सालों से पटी की अलग--अलग खदान में हीरे की खाक छानते रहे। किस्मत मेहरबान हुई 9 अक्टूबर 2018 को जब उन्हें पटी के खदान में 42.59 कैरेट का हीरा मिला। नीलामी में ये हीरा 2.25 करोड़ में बिका। मोतीलाल ने इस रकम से अपना घर बनवाया और 20 सालों में जो खर्च व कर्ज चढ़े थे, उसे चुकता किया। शेष रकम उसने बच्चों के भविष्य खातिर बैंक में जमा कर दिया है। अब भी मोतीलाल का रूटीन पहले जैसा ही है। अब भी वे दोस्तों के साथ हीरापुर टपरियन की खदान में हीरे की तलाश में सुबह 5 बजे घर से निकल जाते हैं। दोपहर बाद वहां से ईंट-भट्ठे पर काम करने चले जाते हैं। वहां से शाम ढलने के बाद लौटते हैं। कहते हैं कि खदान में काम करते हुए 25 साल हो गए। पिछले साल उन्हें कम क्वालिटी का 5 कैरेट का हीरा मिला था। 1.62 लाख रुपए में नीलाम हुआ था। 11.50 प्रतिशत टैक्स कट गया था। शेष रकम चार पार्टनरों में बंट गई।
20 साल बाद पटी खदान में सुशील को मिला हीरा
22 फरवरी को पन्ना जिले की पटी की उथली हीरा खदान से 26.11 कैरेट का जैम क्वालिटी का हीरा मिला था। हीरा निरीक्षक अनुपम सिंह ने बताया कि तुआदार सुशील कुमार शुक्ला निवासी किशोरगंज बडा बाजार को ये हीरा मिला था। 47 वर्षीय सुशील कुमार शुक्ला ने बताया कि वे 20 साल से बड़े भाई राजकिशोर शुक्ला के साथ हीरे के लिए खुदाई कर रहे थे। उस दिन हमारी किस्मत चमकी और हमें वो नायाब हीरा मिला था।
16 साल की उम्र में भाई के साथ छतरपुर से पन्ना आया था, 30 साल बाद मिला हीरा
नयापुवा पन्ना निवासी 45 वर्षीय रामप्यारे 16 की उम्र में छतरपुर से पन्ना आए थे। उनके बड़े भाई लोहा--पत्थर का काम करते थे। वह खुद साइकिल पंक्चर की दुकान खोल ली। बेटा भरत अब बाइक रिपेयरिंग करता है। पांच साल पहले पत्नी की बीमारी से मौत हो गई। दो बेटियां हैं मोहिनी 12वीं में तो रोहिनी छठवीं में पढ़ रही हैं। पिछले 30 सालों से वह भी हीरा तलाश रहे थे। ये तलाश पूरी हुई 24 फरवरी 2021 को। उन्हें 14.9 कैरेट का हीरा मिला। कुल 7 पार्टनर थे। 39 लाख रुपए मिले थे। एक के हिस्से में 5.57 लाख रुपए आए। ये पैसे वे बेटियों की शादी के लिए जमा कर चुके हैं। अब भी हीरे की तलाश के लिए खदान जाते हैं।
इधर झिंगा ने 30 साल हीरा खोजा, लेकिन भाग्य नहीं चमका
हीरा मिलना किस्मत का खेल है। कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने सालों गंवा दिए, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। 65 वर्षीय खैरा निवासी झिंगा ने अपने स्तर पर 30 साल से हीरो खोज रहे हैं, लेकिन उनकी किस्मत नहीं चमकी। ढलती उम्र और शारीरिक कमजोरी के बावजूद रोज सुबह इस उम्मीद में खदान में काम करने पहुंचते थे कि शायद उनकी जिंदगी में एक दिन उजाला आ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब वे दूसरे की खदान में 300 रुपए रोज की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं। हीरा मिलेगा तो भी तो वो खदान के मालिक के हिस्से में आएगा।
नौकरी नहीं मिली तो खदान में किस्मत आजमाने आ गया
करीब 22 साल के युवा शिवम प्रजापति पन्ना साइंस कॉलेज से बीएससी कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने कोई नौकरी नहीं की। हीरा पाने की चाह में अब वे भी भाइयों के साथ कई महीनों से चाल खोद रहे हैं। अभी बारिश का पानी है तो चाल धुल रही है। ये समाप्त हो गया तो चाल खोद कर स्टोर करेंगे। फिर उसे बारिश में साफ करेंगे। शिवम कहते हैं। हीरे के खुले खदान खतरों से खाली नहीं। जगह-जगह पर पत्थर, गड्ढे और उबड़-खाबड़ जमीन। एक छोटी सी चूक से चोट लगने का खतरा बना रहता है। हीरापुर टपरियन में पट्टा लेने वाले श्रीपाल जैन हीरे की खुदाई के लिए 900 रुपए रोज मजदूरों पर खर्च कर रहे हैं। उनके वहां तीन मजदूर काम करते हैं। जैन बताते हैं कि अभी बारिश का पानी है तो चाल की धुलाई में आसानी है। नहीं तो टैंकर से पानी मंगवाओ। जैन बताते हैं कि हीरा तलाशना एक जुएं की तरह है, यह तय नहीं है कि इतने महीने या साल बाद हीरा मिलेगा।
भ्रांतियां भी कम नहीं, हीरा फलता नहीं है, इसलिए कुआं खुदवाया और मंदिर बनवाया
हीरे को लेकर भ्रांति है कि हीरा खोलने वाले को उसका लाभ नहीं मिलता। वह दुर्भाग्य लेकर आता है। यही कारण है कि लोग हीरे की रकम से कुछ धार्मिक कार्य कराते हैं। नयापुरवा पन्ना निवासी लखन सिंह यादव छह भाइयों में तीसरे नंबर के हैं। सभी भाई 6 साल से पटी सहित दूसरे खदानों में हीरा तलाश रहे हैं। साथ में दूध का भी व्यवसाय है। लखन सिंह यादव को 2 नवंबर 2020 को पटी क्षेत्र में 14.98 कैरेट का हीरा मिला था। इसके एवज में टैक्स काटकर उन्हें 56 लाख रुपए मिले थे। रुपए मिले तो उन्होंने दुर्भाग्य से बचने के लिए लोगों के लिए एक कुआं खुदवाया और हनुमानजी का मंदिर बनवाया।
पन्ना में सबसे अधिक हीरा खदान पटी में
पन्ना जिले में 11 स्थानों पर हीरा मिलता है। जंगल सहित कुछ अन्य क्षेत्र भी चिन्हित हुए हैं, लेकिन अभी वहां हीरा खनन की अनुमति नहीं है। पन्ना जिले के खनन अधिकारी रवि पटेल के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में जिले में 745 खदान के पट्टे स्वीकृति हुए हैं। इसमें सबसे अधिक खदान के पट्टे कृष्णा कल्याणपुर (पटी) में 317 आवंटित किए गए हैं। पटी क्षेत्र में हीरा उज्ज्वल क्वालिटी का मिलता है। सबसे कम पट्टा किटहा में 27 लिया गया है। इस साल अब तक 235.94 के 90 हीरे कार्यालय में जमा कराए हैं। इनकी शुरुआती कीमत 3.79 करोड़ रुपए आंकी गई है।
1961 से हो रहा हीरा नीलामी
पन्ना में 1961 से हीरा कार्यालय काम कर रहा है। तब से हर तीन महीने पर हीरा की नीलामी होती है। हीरे की नीलामी में गुजरात, मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद सहित कई राज्यों के व्यापारी आते हैं। हीरा तलाश करने वाले को तुआदार कहते हैं। हीरा कार्यालय में तुआदार हीरा का परीक्षण कराकर जमा कराता है। वजन और हीरे की क्वालिटी के आधार पर उसकी न्यूनतम कीमत तय की जाती है। इसके बाद नीलामी होती है। अधिकतम कीमत में हीरा नीलाम किया जाता है। 11.50 टैक्स काटकर शेष राशि तुआदार मतलब हीरा खोजने वाले को दे दी जाती है।
दिलचस्प लोकमान्यताएं भी हैं, महाराज छत्रसाल और उनके गुरु प्राणनाथ से जुड़ी है हीरे की कहानी
वर्तमान पन्ना राजा राघवेंद्र सिंह जुदेव के मुताबिक राजशाही के समय में हीरा महेंद्र भवन में जमा होता था। तब हीरे के बदले में लोगों को उनकी जरूरत का राशन और दूसरी सामग्री राजशाही की ओर से दी जाती थी। पन्ना में हीरा मिलने की दिलचस्प कहानी सुनाई। कहते हैं कि हीरा बनने की भौगोलिक व वैज्ञानिक कारणों से परे ऐतिहासिक मान्यता भी है। 1700 के आसपास महाराज छत्रसाल को उनके गुरु महाराज प्राणनाथ ने आशीर्वाद दिया कि उनका घोड़ा रात भर में जहां--जहां पग रखेगा, वहां--वहां हीरा मिलेगा। ये मुक्ता प्रचलित है--छत्ता तेरे राज में धक--धक धरती होय, जित--जित घोड़ा पग धरे, उत--उत फत्ते होय। यहां फत्ते का मतलब हीरा से और छत्ते का मतलब छत्रसाल से है।
गोंड बस्ती से बुंदेला राज्य की राजधानी और फिर जिला बना पन्ना
♦ हीरा नगरी’ के नाम से प्रसिद्ध पन्ना एमपी के उत्तर-पूर्व विंध्यांचल की सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है। पन्ना जिले का वर्तमान स्वरूप पन्ना और अजयगढ़ रियासत, चरखारी, बिजावर, छतरपुर और यूनाइटेड प्रोविन्स को मिला कर हुआ है। ♦ मूल रूप से 13वीं शताब्दी तक गोंड बस्ती रहे पन्ना को महाराजा छत्रसाल बुंदेला ने अपनी राजधानी बनाया था। अप्रैल 1949 के पहले यह विंध्यप्रदेश का हिस्सा था। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश में मिलाया गया था। 20 अक्टूबर, 1972 को सागर संभाग बनने पर इसे रीवा संभाग से हटाकर सागर में मिला दिया गया। ♦ पन्ना जिले का नाम पन्ना जिला मुख्यालय स्थित पद्मावती देवी मंदिर के नाम पर रखा गया है। पन्ना को महाराजा छत्रसाल के शहर के रूप में भी जाना जाता है। पन्ना उत्तर में उत्तर प्रदेश के बांदा जिला, पूर्व में सतना जिला, दक्षिण में कटनी और दमोह जिला और पश्चिम में छतरपुर जिले से घिरा हुआ है। ♦ पन्ना हीरे की खान के अलावा प्राचीन और सुंदर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसे ‘मंदिरों की नगरी’ भी कहा जाता है। यहां पर स्थित श्रीप्राणनाथ जी और श्री जुगुल किशोर जी का मंदिर प्रसिद्ध है। पन्ना में एक राष्ट्रीय उद्यान भी है, जहां कई दुर्लभ वन्यजीव पाए जाते हैं।
असली--नकली हीरे की पहचान के 5 तरीके
♦ असली हीरे के अंदर की बनावट ऊबड़ खाबड़ होती है, लेकिन कृत्रिम हीरा अंदर से सामान्य दिखता हैl ♦ असली हीरे में कुछ न कुछ खांचे होते है,जो बारह सौ गुणा ताकतवर माइक्रो स्कोप की मदद से देखे जा सकते है। ♦ हीरे को अखबार पर रखे और उसके पार से अक्षरों को पढ़ने की कोशिश करें। अगर टेढ़ी लकीरे दिखे तो हीरा नकली है। ♦ हीरे को पराबैंगनी किरणों में देखें, नीली आभा के साथ चमकता है तो हीरा असली है। यदि पीली हरी या स्लेटी रंग की आभा निकले तो ये मोइसा नाइट है। ♦ असली हीरा पानी में डालते ही डूब जाएगा, नकली हीरा तैरने लगता है।
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