कूनो नेशनल पार्क में चीतों की परवरिश हो रही है… वो भी बिल्कुल नवजात की तरह। यह बहुत जरूरी भी है। अगर ये सरवाइव कर गए, तो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बनेंगे और ऐसे ही विलुप्त होते जानवरों को एक महाद्वीप से दूसरे में शिफ्ट करने का रास्ता खुलेगा। इसीलिए भारत और नामीबिया के एक्सपर्ट 24 घंटे इन पर नजर बनाए हैं।
दैनिक भास्कर ने नामीबिया में इन चीतों की देखरेख करने वाले प्रिटोरिया यूनिवर्सिटी में वन्यजीव चिकित्सा विशेषज्ञ एड्रियन टॉर्डिफ, पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) जेएस चौहान, कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ प्रकाश कुमार वर्मा से चीतों की शिफ्टिंग की शुरुआत से लेकर बाड़े में छोड़ने की पूरी प्रोसेस, इसके लिए की गई तैयारियां, चीतों के व्यवहार और आने वाली चुनौतियों को समझा, पढ़िए खास रिपोर्ट...
सबसे पहला काम… नामीबिया में तैयार किया मप्र के कूनो जैसा बाड़ा
जून 2022। कूनो नेशनल पार्क में हलचल बढ़ने लगी थी। वन अमले ने अफ्रीकन चीतों के नए घर में तैयारी शुरू कर दी थी। उधर, कूनो से 8 हजार किलोमीटर दूर नामीबिया की राजधानी विंडहोक के पास सीसीएफ (चीता कंजर्वेशन फंड) के जंगल में आठ चीतों का चयन किया गया। तय हुआ कि 15 अगस्त के आसपास चीते कूनो ले जाएंगे। इसके ठीक एक महीने पहले सीसीएफ में 8 चीतों (5 मादा और 3 नर) को क्वारेंटाइन किया गया।
कूनो के डीएफओ प्रकाश वर्मा ने बताया कि पहले कूनो में चीतों के लिए एक बाड़ा बनाया गया। इसके बाद नामीबिया में वैसा ही बाड़ा बनाया गया। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि चीते जब नामीबिया से यहां आएं, तो उन्हें कुछ नया नहीं लगे। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की टीम लगातार इनका हेल्थ चेकअप करती रही। वैक्सीनेशन किया गया, ताकि वे अपने साथ इन्फेक्शन या बीमारी लेकर न जाएं।
कूनो की यात्रा से पहले की तैयारी… दवा के डोज और खास तरह के बॉक्स
भारत के लिए सफर शुरू करने से पहले दवाई के ऐसे डोज दिए गए कि चीते न तो उग्र हों और न ही पूरी तरह बेहोश हों। यह इतना कैल्कुलेट था कि जब चीते भारत पहुंचे, तब सामान्य स्थिति में रहे। इनके लिए खास तरह के बॉक्स बनाए गए। इसी तरह, अल्ट्रा लॉन्ग रेंज जेट का चुनाव भी सोच-समझकर किया गया, क्योंकि यह विमान एक बार ईंधन लेने के बाद 16 घंटे तक सीधी उड़ान भर सकता है।
इसमें इस तरह से बदलाव किए गए, जिससे पिंजरों को आसानी से एडजस्ट किया जा सके। वेटरनरी डॉक्टर को देखभाल के लिए एक जगह भी मिल सके। सीसीएफ से निकालकर एयरपोर्ट तक लाने, फिर प्लेन में शिफ्ट करने तक में हर उस बात का ध्यान रखा गया, जिससे चीतों को असुविधा न हो। इसके लिए गाइडलाइन तय है।
नामीबिया से कूनो का सफर… बॉक्स में भी कैमरे से नजर
नामीबिया से ग्वालियर तक के इस सफर के दौरान जहाज में मौजूद वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की टीम हाई अलर्ट पर रही। चीतों को जिन 8 बॉक्स में लाया गया, उनमें भी खास तरह के कैमरे लगाए गए। एक्सपर्ट लगातार बॉक्स के अंदर की तस्वीरों को सफर के दौरान देख रहे थे। चीतों को खाली पेट लाए, ताकि उन्हें उबकाई जैसी समस्या से बचाया जा सके। उनका पेट भरा होता, तो सफर के दौरान डिहाईड्रेशन हो सकता था, क्योंकि उन्हें हवाई जहाज में 12 घंटे तक सफर करना था। विंडहोक एयरपोर्ट से विमान चला, तो वहां का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस था।
उस वक्त वहां शाम के करीब साढ़े चार बजे थे (भारतीय समयानुसार रात नौ बजे), जब जहाज चीतों को लेकर ग्वालियर हवाई अड्डे पर सुबह करीब आठ बजे उतरा तो तापमान 28 डिग्री सेल्सियस था। चीते एक नए वातावरण में भारत भूमि पर उतरे। ग्वालियर में नामीबिया से आए वेटरनरी डॉक्टरों ने भारतीय वेटनरी डॉक्टरों की मौजूदगी में चीतों का चेकअप किया। इसके बाद ग्वालियर से कूनो तक का सफर चिनूक हेलिकॉप्टर से हुआ। चिनूक हेलिकॉप्टर की लंबाई 98 फीट लंबा (पंखों के साथ), 12.5 फीट चौड़ा और 18.11 फीट ऊंचा होता है। इसमें चीतों को कूनो लाया गया। इसमें 8 लोगों के बैठने की व्यवस्था रही रहती है। बड़ा और स्पेशियस होने के कारण इस हेलिकॉप्टर का चयन किया गया।
देश की धरती पर कदम…एक महीने तक विदेशी एक्सपर्ट की निगरानी में
फिर 17 सितंबर को वह ऐतिहासिक पल आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लीवर घुमाया। चीतों ने नए घर यानी कूनो नेशनल पार्क में कदम रखे। खास तौर पर तैयार बाड़ा एक महीने तक उनका ठिकाना है। शिफ्टिंग के दौरान लंबे सफर की थकान इन चीतों को देखकर महसूस की गई। डरे-सहमे कदमों से ये बाड़े में टहलने लगे।
बाड़े में पहली सुबह...छह चीते टहलने लगे, दो को घुलने-मिलने में संकोचा रहे थे, इन्हें घुलने-मिलने में समय लगा।
आठों चीते नेशनल पार्क में 1 महीने के लिए क्वारेंटाइन हैं। तय गाइडलाइन और प्रोटोकॉल फॉलो किया जा रहा है। इन पर नजर रखने के लिए साउथ अफ्रीका से 13 एक्सपर्ट आए हैं। एक महीने तक चीते इन्हीं की निगरानी में रहेंगे। वे उनकी खुराक से लेकर हर मूवमेंट को देख रहे हैं। सभी पैरामीटर का डेटा नोट किया जा रहा है, ताकि हेल्थ, बिहेवियर और और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सके।
चीतों के बाड़े और इसके आसपास निगरानी रखने के लिए 360 डिग्री पर घूमने वाले विशेष कैमरे लगाए गए हैं। इनकी रेंज 2 किमी है। रात के अंधेरे में भी 800 मीटर से 1 किमी की तस्वीरें अच्छे से ले सकते हैं। चीते सीधे अफ्रीकी एक्सपर्ट्स की निगरानी में हैं, इसलिए अभी रेडियो कॉलर का ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
एक महीने बाद चीते हैंडओवर होंगे
एक महीने बाद चीते हैंडओवर होंगे। इसके बाद इन्हें बड़े बाड़े में छोड़ा जाएगा, जहां वे करीब 3 महीने रहेंगे। चार महीने बाद 750 वर्ग किलोमीटर में फैला पूरा जंगल इनका होगा। यहां उनका आहार भी बदल जाएगा। ये चीते नामीबिया में इम्पाला (अफ्रीकी हिरण) का शिकार करते थे, लेकिन कूनो में इम्पाला से मिलते-जुलते चीतल और चिंकारा होंगे। बाड़े में इनके लिए महीनेभर तक खाने का ऐसा इंतजाम किया गया है कि बिना किसी कॉम्पीटिशन के सभी चीतों का पेट भर जाए।
आइसोलेशन पीरियड में चीतों को सर्टिफाइड भैंसे का मीट दिया जा रहा है। विशेषज्ञों की जांच के बाद ही मीट परोसा जाता है, ताकि यह पता चल सके कि कहीं कोई बैक्टीरिया इंफेक्शन या किसी दूसरी तरह का इंफेक्शन तो मीट में नहीं है। फिलहाल खाने में भैंसे का मीट दिया जा रहा है। आमतौर पर चीते चार दिन में एक बार या कई बार एक सप्ताह में एक बार भी पानी पीते हैं, यह उनके शिकार पर डिपेंड करता है। इसके बावजूद भी बाड़े में पानी की लगातार सप्लाई की व्यवस्था की गई है।
सुरक्षा का सवाल… बाघ और तेंदुए को खदेड़ने में माहिर है हाथी।
चीतों की सुरक्षा में लगे 30 साल के सिद्धनाथ की पहचान पूरे प्रदेश में बाघों के रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए होती है। हाथी सिद्धनाथ बेहद गुस्सैल स्वभाव का है। साल 2010 में दो महावतों को मार चुका है। उसने जनवरी 2021 में एक आदमखोर बाघ को काबू करने में अहम भूमिका निभाई थी। 25 वर्षीय हथिनी लक्ष्मी बेहद शांत स्वभाव की है, लेकिन अपने काम में माहिर है। जंगल सफारी, रेस्क्यू ऑपरेशन या जंगल की गश्त के काम में लक्ष्मी को महारत हासिल है।
चीतों को लाना क्यों जरूरी था…. इकोसिस्टम संतुलित रहेगा, रेगिस्तान बढ़ने का खतरा कम होगा
फॉरेस्ट इकोसिस्टम में टाइगर को टॉप पर रखा गया है। यही स्थान ग्रास लैंड इकोसिस्टम में चीते का है। जो रोल फॉरेस्ट इकोसिस्टम में टाइगर का है, वही रोल ग्रास लैंड इकोसिस्टम में चीते का है। यानी घास वाले मैदानी जंगल में चीता "शीर्ष शिकारी" हैं। इसका मतलब है, वह फूड चेन में सबसे ऊपर है। इस इकोसिस्टम से चीतों को हटाते हैं, तो फूड चेन प्रभावित होती है। यदि चीते नहीं होंगे तो शाकाहारी जानवर बढ़ेंगे, जिससे घास और अन्य वनस्पति कम होगी। जब सभी जानवर वनस्पति खाएंगे तो वनस्पति तंत्र बिगड़ जाएगा।
वनस्पति नहीं होगी तो मिट्टी का कटाव होने लगेगा, इससे रेगिस्तान बढ़ने का खतरा होगा। पेड़-पौधे नहीं होंगे तो बारिश का सिस्टम भी बिगड़ेगा। शोध से पता चला है कि जब जानवरों की एक प्रजाति गायब हो जाती है, तो जानवरों और मनुष्यों दोनों में बीमारियां बढ़ सकती हैं। देश में 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया, लेकिन 1972 के वन्य प्राणी संरक्षण कानून में वन्य प्राणियों की सूची में चीते शामिल किए यानी उस वक्त यह उम्मीद की गई कि देश में चीते आ सकते हैं।
सबसे बड़ी चुनौती…वे लोग जो चीते और तेंदुए में अंतर नहीं समझ पाएंगे
असल परीक्षा तो तब होगी, जब चार महीने बाद इन चीतों को खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। चीते बहुत एक्सप्लोर करते हैं। दूर-दूर तक जाते हैं। इंसानी बस्ती के आसपास आएंगे, वहां इन्हें लोगों से खतरा हो सकता है, क्योंकि चीते तेंदुए की तरह ही दिखते हैं। इसके लिए लोगों को समझाना, बड़ा चैलेंज है। हालांकि चीते कभी इंसान पर हमला नहीं करते। इसके लिए चीता मित्र भी बनाए गए हैं, ये लोगों को कितना समझा पाते हैं, यह भविष्य में पता चलेगा।
शिकारियों से खतरे की कोई आशंका नहीं है, क्योंकि हर चीता सैटेलाइट कॉलर से लैस है, जिससे 24 घंटे इनकी लोकेशन वन अमले को पता रहेगी। एक ही जगह पर यदि 2 घंटे या 4 घंटे रहे और कोई मूवमेंट नहीं किया, तो अलर्ट मैसेज आ जाएगा। हर दो-तीन घंटे में इनकी लोकेशन के बारे में ऑटोमैटिक मैसेज आ जाएगा। अलग टीम बना दी है, जो लगातार इनके मूवमेंट को मॉनिटर करेगी।
संघर्ष का डर... चीते तेंदुए के साथ रहे, लेकिन हमारे तेंदुए कभी चीतों के साथ नहीं रहेगी।
अब आगे क्या…ये सरवाइव कर गए, तो हर साल 10 चीते लाए जाएंगे।
कूनो में 120 पेड़ों की प्रजाति... चीतों के लिए भरपूर खाना और शानदार वेदरेट फूड माने जाते हैं।
चीतों से जुड़ी इन खबरों को भी पढ़िए
चीतों के लिए PM मोदी ने मांगे नाम, बोले- कॉम्पिटिशन में हिस्सा लें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क लाए गए चीतों के नाम मांगे हैं। मन की बात में PM मोदी ने कहा, पिछले दिनों चीतों ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। देश के हर हिस्से से चीतों के आने पर खुशी जताई गई। देशभर के लोगों का एक कॉमन सवाल है कि चीतों को देखने का मौका कब मिलेगा? पढ़िए पूरी खबर
चीतों को कुत्तों की तरह रखा इसलिए खत्म हुए:दोबारा बसाने कूनो को ही क्यों चुना
मध्यप्रदेश के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में 8 चीते पहुंच चुके हैं। इसी के साथ कूनो देशभर में चर्चा में आ गया। ऐसे में सवाल यह है कि चीतों के लिए कूनो को ही क्यों चुना गया? आखिर चीतों को लाने की जरूरत क्यों पड़ी? जानिए इन सवालों के सिलेसिलवार जवाब...
शेर से 3.5 गुना बड़ा चीते का दिल,3 सेकंड में पकड़ता है 96 किमी/घंटे की रफ्तार
चीता दुनिया का सबसे तेज रफ्तार वाला जानवर, पलक झपकते शिकार इसके जबड़े में होता है और मिनटभर में उनका काम तमाम। इसी वजह से चीते को शिकार मशीन कहा जाता है। 70 साल बाद देश में फिर से चीतों की वापसी हुई है। जानिए कैसे काम करता है शिकार मशीन...
MP अब चीता स्टेट भी बनेगा,देश का इकलौता प्रदेश, जहां टाइगर-लेपर्ड सबसे ज्यादा
टाइगर और लेपर्ड स्टेट मध्यप्रदेश अब चीता स्टेट भी बनने जा रहा है। यहां नामीबिया से 8 चीतें लाए गए हैं, जो कूनो नेशनल पार्क में विशेष बाड़े में रह रहे हैं। इन्हें तीन महीने बाद जंगल में छोड़ा जाएगा। इसके बाद यह देश का एकलौता ऐसा पहला प्रदेश बन जाएगा, जहां पर टाइगर, लेपर्ड और चीता तीनों होंगे। पढ़िए पूरी खबर
कूनो में लड़ सकते हैं चीते और तेंदुए:139 तेंदुओं, 100 भालुओं के बीच रहेंगे 8 चीते
कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर को नामीबिया से 8 चीतों को लाया गया है। इन्हें कूनो नेशनल पार्क में अभी विशेष बाड़े में रखा गया है। यहां रहने वाले तेंदुए अपनी कैट प्रजाति के एक नए वन्यप्राणी से पहली बार मुखातिब होंगे। बिल्कुल उनकी जैसी शक्ल वाले ये चीते 70 साल बाद उनकी टेरेटरी में आ रहे हैं। जानिए आखिर क्या कुछ बदलेगा जंगल में चीतों के आने से...
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.