मध्य प्रदेश के उपचुनाव बीजेपी के लिए शुभ मंगल साबित होता दिख रहा है। खंडवा लोकसभा सीट पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही बीजेपी ने जोबट और पृथ्वीपुर सीट कांग्रेस से छीनकर ताकत का अहसास करा दिया है। इस चुनाव में सबसे बड़ा फायदा आदिवासी वोट बैंक के रूप में बीजेपी को मिला। इस चुनाव में कांग्रेस ने दमोह मॉडल पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह फेल दिखाई दे रहा है। कांग्रेस भले ही 31 साल से बीजेपी के कब्जे वाली रैगांव सीट कब्जा करने में सफल रही, लेकिन इसमें भी बहुजन समाज पार्टी के मैदान में नहीं होने का फायदा मिला।
आदिवासी वोट बैंक की वापसी,BJP के लिए अग्नि परीक्षा
जोबट सीट का रिजल्ट बीजेपी के लिए 2023 के आम चुनाव के लिहाज से भी मायने रखता है। आदिवासी वोट की अहमियत का अहसास 2018 के विधानसभा चुनाव में कर चुकी बीजेपी के लिए उपचुनाव में भी चुनौती बनी हुई थी। इस चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली।
एक सीट निर्दलीय के खाते में गई, जबकि 2013 में बीजेपी को 31 व कांग्रेस को 16 सीटें (1 निर्दलीय) को मिली थी। यानी बीजेपी को 14 सीटों को नुकसान हआ था। यदि बीजेपी आदिवासी वोटर को साधे रखती तो शिवराज सरकार 2018 में फिर बन जाती। क्योंकि बीजेपी बहुमत से महज 7 वोट से दूर रह गई थी। बता दें कि मध्यप्रदेश में वैसे तो आदिवासियों की आबादी 22% है और ये विधानसभा की 95 सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहते हैं।
बीजेपी ने इसलिए खेला सुलोचना पर दांव
जोबट विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं। बीजेपी उम्मीदवार सुलोचना रावत को बड़ी जीत मिली है। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार महेश रावत को हराया है। काउंटिंग की शुरुआत के साथ से ही बीजेपी की सुलोचना रावत बढ़त बनाकर रखी थी। सुलोचना रावत लंबे समय तक कांग्रेस में रही हैं। उपचुनाव से पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था। इसके बाद पार्टी ने उन्हें टिकट दे दिया था। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को 7 हजार से अधिक वोटों से हराया है।
सुलोचना रावत जोबट में आदिवासियों की बड़ी नेता हैं। वह खुद भिलाला समुदाय से आती हैं। जोबट में भिलाला समुदाय के लोगों की आबादी 55% है। उन्होंने कांग्रेस के महेश रावत को पटखनी देते हुए यहां जीत हासिल की है। वोटिंग के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस उम्मीदवार उन्हें कड़ी टक्कर देंगे। मगर काउंटिंग के दौरान ऐसा कुछ नहीं दिखा है। सुबह आठ बजे से जोबट में वोटों की गिनती शुरू हुई थी। उसके बाद से ही सुलोचना रावत आगे चल रही थीं।
पृथ्वीपुर : पार्टी में विरोध के बाद भी शिशुपाल को लाए मैदान में
बीजेपी ने पृथ्वीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी से आए शिशुपाल सिंह यादव को मैदान में उतारा तब लगा कि कांग्रेस एक बार फिर यह सीट बचाने में कामयाब हो जाएगी। इसकी वजह यह थी कि शिशुपाल को उम्मीदवार बनाने के बाद बीजेपी के मूल कार्यकर्ता नाराज थे। खासकर ब्राम्हण वोटर के छिटकने का अंदेशा था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने संगठन के साथ मिलकर स्थानीय नेताओं को मतदान से पहले मना लिया था। इसी का परिणाम है कि बीजेपी ने कांग्रेस उम्मीदवार नीतेंद्र सिंह राठौर के प्रभाव वाले मंडल (बीजेपी के) में जीत दर्ज की।
बीजेपी की ताकत बनी कांग्रेस की कमजोरी
उप चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला रहा। विधानसभा के उपचुनाव राज्य के तीन अलग-अलग अंचलों में हो रहे हैं। इस मुकाबले में कांग्रेस न महंगाई को मुद्दा बना सकी।और न ही बीजेपी के मूल कार्यकर्ता की नाराजगी को भुना पाई। सालभर के भीतर मध्य प्रदेश में यह तीसरी बार है जब, उपचुनाव हुए। पिछले साल दीपावली से पहले 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव हुए थे। इसके बाद दमोह में विधानसभा का उपचुनाव हुआ। सभी उपचुनाव बीजेपी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं रहे है।
मुख्यमंत्री सहित पूरी सरकार और पार्टी का संगठन इन चुनावों को एक युद्ध की तरह लड़ रहा था। उप चुनाव में कांग्रेस की कमजोरी ही बीजेपी की ताकत भी बनी। बीजेपी ने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले ही जोबट में सुलोचना रावत को लाकर कांग्रेस को बढ़ा झटका दिया, लेकिन पार्टी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद मतदान के 6 दिन पहले बड़वाह विधायक सचिन बिरला को लाकर बीजेपी ने ताकत बताई। बिरला पिछले साल दिसंबर से पार्टी से नाराज चल रहे थे, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
बीजेपी की यह रणनीति भी काम आई
आमतौर पर विधानसभा अथवा लोकसभा के उपचुनाव के नतीजे उस राजनीतिक दल के पक्ष में रहते हैं जिसकी सरकार राज्य में में होती है। बीजेपी ने वोटरों के बीच यह संदेश भी दिया कि यदि विपक्षी दल का विधायक चुना जाता है तो नुकसान क्षेत्र का ही होगा। चुनाव में बड़े-बड़े वादे और दावे भी बीजेपी की ओर से किए गए।
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