ओबीसी आरक्षण को लेकर मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार शाम को मंत्रालय में बैठक बुलाई थी। जिसमें पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने के लिए ट्रिपल टेस्ट को किस तरह लागू करने पर चर्चा हुई। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट पर अन्य राज्य क्या फैसला ले रहे हैं? यह पता लगाएं।
इधर, ओबीसी को लेकर सरकार की तैयारी 22 प्रतिशत आरक्षण देने की दिख रही है। इसके लिए सांख्यिकी विभाग को आंकड़े जुटाने के निर्देश दिए हैं। दूसरे राज्यों की स्ट्रेटजी पर सरकार की नजर है। यह जानकारी भी जुटाएं कि क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मध्य प्रदेश की तरह अन्य राज्य पुनर्विचार याचिका दायर करने जैसे विकल्पों पर जा रहे हैं या नहीं?
एक अधिकारी ने बताया कि मुख्यमंत्री ने पिछड़ा वर्ग आयोग से कहा है कि वैकल्पिक तौर पर ओबीसी वर्ग की सीट वार गणना करने का रोडमैप भी बनाएं। पता चला है कि मुख्यमंत्री नए साल में त्रिपुरा जाएंगे, लेकिन इससे पहले वे ओबीसी आरक्षण के मामले में राज्य सरकार की तैयारी की जानकारी केंद्रीय नेतृत्व को देंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि ट्रिपल टेस्ट को लेकर जल्दी से जल्दी तैयारी पूरी करें।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27% OBC के लिए आरक्षित सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने देर शाम कों के साथ विधायक दल की बैठक भी बुलाई है। यह बैठक सीएम हाउस में होगी।
मुख्यमंत्री ने पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों के साथ इस पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई है। पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण खत्म किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विकल्पों पर चर्चा होगी। इससे साफ है कि सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने की तरफ कदम बढ़ा रही है। शिवराज सरकार को सुप्रीम कोर्ट से एक ओर झटका लग चुका है। कोर्ट ने सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका की अर्जेंट हियरिंग करने से गुरूवार को इंकार कर दिया था। अब यह मामला 3 जनवरी को सुना जाएगा।
आयोग 3 माह में करेगा ओबीसी पर रिपोर्ट
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी की आबादी जिले व तहसीलवार तैयार कर रिपोर्ट तैयार करेगा। आयोग के अध्यक्ष डाॅ. गौरी शंकर बिसेन ने बताया कि इस काम में कम से कम 3 माह का समय लगेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कहा गया है कि प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट लागू करने के लिए राज्य स्तरीय आयोग के गठन की स्थापना करने का उल्लेख है। यह आयोग इस वर्ग की आबादी की गणना कर सिफारिश सरकार को देगा। इसके आधार पर आरक्षण तय किया जाएगा।
आरक्षण में करना होगा ट्रिपल टेस्ट का पालन
सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाए। OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करे। अदालत ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा, तो चुनाव रद्द किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी को करेगा।
सीएम ने कहा था - सभी वर्गों का कल्याण है लक्ष्य
सीएम ने एक दिन पहले ही विधानसभा में कहा था कि हमारी सरकार सभी वर्गों के लिए कृत संकल्पित है। उन्होंने कहा कि चाहे सामान्य वर्ग हो, पिछड़ा वर्ग हो और SC-ST हो, सबकी भलाई और सब का कल्याण यह हमारा लक्ष्य है, सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता के साथ हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए सामान्य वर्ग के गरीबों को भी 10% आरक्षण देने का काम इसी सरकार ने किया है। ओबीसी को भी 27% आरक्षण मिले वह भी हमने किया है।
आयोग के सामने क्या है संकट
निर्वाचन आयोग के सामने संकट यह है कि भले ही ओबीसी सीटों पर निर्वाचन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, लेकिन सभी सीटों का रिजल्ट एक साथ घोषित कराना है। यह निर्देश आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं। अब सरकार नए सिरे से आरक्षण करती है, तो इसमें वक्त लगेगा। ऐसे में जिन सीटों में बदलाव होगा। वहां मतदान समय पर हो पाना संभव नहीं लगता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि सरकार ओबीसी सीटों के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित कर अधिसूचना जारी करे। संभवत: आज-कल में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अधिसूचना जारी कर देगा।
सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र स्थानीय चुनाव के लिए यह था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27% OBC के लिए आरक्षित सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने अपने 6 दिसंबर के आदेश में तब्दीली से इनकार कर दिया। कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अपनी पिछली अधिसूचना में बदलाव करते हुए हफ्ते भर में नई अधिसूचना जारी करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिसूचना में पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया। इसके बाद बाकी बची 73% सीटें सामान्य श्रेणी के लिए रखे जाने की नई अधिसूचना एक हफ्ते में जारी करने का आदेश राज्य निर्वाचन आयोग को दिया है।
पंचायतराज संशोधन विधेयक नहीं हुआ विधानसभा में पेश
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने पंचायतराज संशोधन विधेयक पेश नहीं किया है। सरकार ने मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 लागू किया था। इसके तहत पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच सरकार ने ऐसी पंचायतों के परिसीमन को निरस्त कर दिया है, जहां बीते एक साल से चुनाव नहीं हुए हैं। ऐसी सभी जिला, जनपद या ग्राम पंचायतों में पुरानी व्यवस्था ही लागू कर दी गई थी। जो पद, जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, वही रखा गया था। चूंकि विधानसभा के आहूत नहीं होने पर सरकार अध्यादेश लागू करती है, लेकिन अगले सत्र में उसे बतौर विधेयक सदन में पारित करना होता है। सरकार ने यह विधेयक शीतकालीन सत्र में पारित नहीं कराया। हालांकि इसकी वैधता 45 दिन रहती है। लिहाजा, पंचायत चुनाव पर इसका असर नहीं होगा।
जानिए क्या है ट्रिपल टेस्ट
1- राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना।
2- आयोग की सिफारिशों के मुताबिक स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो।
3- किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।
वर्तमान में प्रदेश की पंचायतों में औसतन 60% सीटें रिजर्व
आयोग के सूत्रों ने बताया कि फिलहाल यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि पंचायतों में रिजर्व सीटों का प्रतिशत कितना है? दरअसल, पंचायत में आरक्षण उस क्षेत्र की आबादी के हिसाब से होता है। बतौर उदाहरण- झाबुआ में ओबीसी की आबादी बहुत कम है, इसलिए यहां की पंचायतों में इस वर्ग के लिए बहुत कम सीटें रिजर्व होंगी। यानी यहां सामान्य सीटों की संख्या बढ़ जाएगी।
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