मध्यप्रदेश की राजनीति में 'महाराज' के बदले हुए अंदाज से सियासी गर्माहट बढ़ती जा रही है। इससे 'सरकार' के खेमे में खलबली है, लेकिन विरोध-समर्थन का खेल सार्वजनिक होने में वक्त लगेगा, क्योंकि पिक्चर अभी धुंधली है। सिंधिया अपनी महाराज वाली छाप मिटा तो नहीं रहे, लेकिन इसे अपना अतीत बताकर नई छवि गढ़ने में जुट गए हैं। ऐसा पहली बार हुआ, जब उन्होंने ग्वालियर में दलित वर्ग के कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने ना केवल अपने हाथ से खाना परोसा, बल्कि उनके साथ बैठकर एक थाली में खाया भी।
संभवत: यह पहला मौका था, जब सिंधिया राजघराने के किसी व्यक्ति ने इस वर्ग के कार्यक्रम में साथ बैठकर खाना खाया हो। वैसे तो यह BJP का एजेंडा है, लेकिन सिंधिया का इस पर अमल करना कई सियासी संदेश देता है। वे जल्दी लोगों से घुलने-मिलने की कोशिश करने लगे। छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता के घर तक जाने में उन्हें अब गुरेज नहीं। यही कारण है कि उनके चाहने वालों की BJP में भी संख्या तेजी से बढ़ रही है। सुना है कि जो कभी विरोधी थे, वे भी 'महाराज' से नजदीकियां बढ़ाने में पीछे नहीं हैं।
'सरकार' के लिए चिंता वाली बात यह है कि उनके भरोसेमंदों की राजनीतिक आस्था डांवाडोल दिख रही है। इनमें से कुछ 'महाराज' से मेलजोल बढ़ा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि 'सरकार' को इसका अंदाजा नहीं है। वे कोई राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। इंटेलीजेंस की आंखों से वे सब देख रहे हैं।
‘सरकार’ के सामने पंडितजी को CM बनाने के लगे नारे
पिछले दिनों ‘सरकार’ धार्मिक यात्रा पर पहले दतिया और फिर मैहर गए थे। वे जब पाठ-पूजा कर मंदिर के बाहर आए तो पार्टी के नेता-कार्यकर्ता उनके स्वागत के लिए तैनात थे। इस बीच कुछ कार्यकर्ताओं ने नारे लगाना शुरू कर दिए... ‘देश का नेता कैसा हो, नरोत्तम मिश्रा जैसा हो…’, यह सुनते ही स्थानीय नेता अवाक रह गए। ‘सरकार’ ने मुस्कुराते हुए अपना स्वागत स्वीकार किया और रवाना हो गए। ये कार्यकर्ता किसके समर्थक थे और किसके निर्देश पर नारे लगा रहे थे, इसकी जानकारी ‘सरकार’ के भोपाल पहुंचते ही उन तक पहुंच गई। राज्य के खुफिया तंत्र ने पूरी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी। सुना है कि मैहर के ही एक BJP नेता के समर्थकों ने ये नारे लगाए थे। ये वही नेता हैं, जो ‘सरकार’ की कार्यप्रणाली को लेकर पत्र लिखकर सवाल खड़े करते हैं। जो कुछ भी हो उनका पंडितजी के साथ ‘खेला’ करने का दांव फेल हो गया।
ठेकेदार का बिल क्लीयर करो, वरना…
हुआ यूं कि प्रशासनिक मुखिया ने एक विभाग के अफसरों की बैठक बुलाई। अफसरों को लगा कि विभाग के कामकाज का रिव्यू होगा। वे पूरी तैयारी से आए, लेकिन जैसे ही बैठक शुरू हुई, बड़े साहब ने एक ठेकेदार का नाम लेकर पूछा- इनका बिल क्लीयर क्यों नहीं हो रहा है? यह काम प्राथमिकता से करें और मुझे बताएं। बड़े साहब यहीं नहीं रुके, उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा- यदि बिल क्लीयर नहीं किया तो मुख्यमंत्री से शिकायत कर दूंगा। यह सुनते ही अफसर अवाक रह गए। इसके बाद बैठक खत्म हो गई। इस विभाग के एक अफसर की टिप्पणी- यदि ठेकेदार का बिल ही क्लीयर कराना है तो फिर बैठक क्यों बुलाई? यह काम तो फोन पर भी हो सकता था।
प्रशासनिक मुखिया के आदेश को कौन टाल सकता है। विभाग में चर्चा है कि बड़े साहब की एक ठेकेदार के बिल में इतनी रुचि क्यों? ठेकेदार की पहुंच वैसे तो प्रशासनिक मुखिया से ऊपर के ओहदे तक है। यह विभाग में सब जानते हैं, इसलिए बिल क्लीयर करने के लिए बड़े साहब को आगे क्यों आना पड़ा? पता चला है कि साहब दो महीने बाद रिटायर होने वाले हैं, इसलिए वे ज्यादा फुर्तीले हो गए हैं।
इन्हें कोई बताए- चीता दहाड़ता नहीं है...
कोई नई योजना लॉन्च करना हो, हितग्राहियों को पैसा बांटना हो, कोई भूमिपूजन या लोकार्पण करना हो, BJP ऐसे कार्यक्रमों को बड़ा इवेंट बनाने में माहिर है। BJP नेता इन्हें लेकर कभी-कभी ज्यादा उत्साह में आकर गलतियां भी कर देते हैं। अब नामीबिया से चीतों की MP के कूनो में शिफ्टिंग को ही ले लीजिए। BJP ने इसे बड़े इवेंट का रूप देकर इसका जोर-शोर से प्रचार किया और उत्साह में आकर गलती कर बैठे। PM मोदी, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा, CM शिवराज सिंह और प्रदेश BJP अध्यक्ष वीडी शर्मा के फोटो वाले पोस्टर सोशल मीडिया में जारी किए गए हैं। उन पर लिखा है- फिर सुनाई देगी चीतों की दहाड़! भारत में चीतों का पुनर्वास। अब इन्हें कौन बताए कि चीता दहाड़ता नहीं, बल्कि मिमियाता है। बिल्ली की आवाज की तरह। चीतों की आवाज चिड़ियों के जैसी होती है। बड़े चीते थोड़े बहुत गुर्राते हैं, तो कुत्ते की जैसी आवाज निकालते हैं। इसके अलावा इनकी थोड़ी बहुत आवाज बिल्लियों से भी मिलती-जुलती होती है।
और अंत में…
साहब को भारी पड़ गए नियम-कायदे
हाल ही में सरकार ने IAS अफसरों की एक छोटी ट्रांसफर लिस्ट जारी की। इसमें शामिल एक नाम ने बिरादरी को चौंका दिया। इस अफसर को लूप लाइन समझे जाने वाले राजस्व मंडल में भेज दिया गया। जबकि जिस विभाग की कमान उनके पास थी, वह उन्हें कुछ समय पहले ही मिली थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्हें हटा दिया गया। जबकि उनकी कार्यप्रणाली के कसीदे विभाग के ही अफसर पढ़ रहे थे। वे नियम-कायदे को फॉलो करते थे। यही उनके हटने की वजह बन गई। सुना है कि वे संघ की एक अनुषांगिक संस्था के पदाधिकारियों के मनमाफिक काम में बाधा बने हुए थे। ऐसे में ‘सरकार’ चाह कर भी उन्हें विभाग में नहीं रख सकते थे। लिहाजा उन्हें जाना ही पड़ा।
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