इंदौर गम और गुस्से में है। दर्द ऐसा कि जिसे कोई मुआवजा कम नहीं कर सकता। रामनवमी के दिन मिला जख्म इतना गहरा है कि शायद ही कभी भर पाएगा। 36 मौतों के गुनहगार ढूंढे जा रहे हैं, लेकिन इस हादसे में अपनों को खो चुके परिवार हर मौत का हिसाब मांग रहे हैं। सबसे अधिक 11 मौतें मंदिर के सामने पटेल नगर रहने वालों की हुई हैं। किसी की मां नहीं रही, तो किसी का बेटा चला गया। हर घर में चीत्कार सुनाई दे रही है। गम के आंसू बह रहे हैं। इसमें एक शख्स ऐसा भी है, जिसके सामने उसकी मां और पत्नी बावड़ी में समा गईं।
मंदिर के सामने ही प्रियंका पटेल का घर है। पति परेश का प्लास्टिक का बड़ा कारोबार है। दो बेटे रेयांश (5) यूकेजी में तो 12 वर्षीय गुनित 5वीं में पढ़ता है। मंदिर हादसे में मरने वाले 36 लोगों में प्रियंका भी शामिल है। उनके दोनों बेटों को दूसरे दिन पता चला कि उनकी मां अब कभी लौटकर नहीं आएंगी। घरवाले दोनों बच्चों को यह कहकर बहलाते रहे कि मां को चोट लगी है और वह अस्पताल में भर्ती है। शुक्रवार दोपहर एक बजे प्रियंका का शव पहुंचा तो दोनों को पता चला कि उनके सिर से मां का आंचल छिन चुका है। दोनों बेटे मां के शव से लिपट कर चीखने लगे। उनकी हालत देख वहां मौजूद हर आंखें भीग गईं।
पटेल नगर पार्क में है मंदिर, इस कारण मौत भी सबसे अधिक यहीं के लोगों की
पटेल नगर के सामने नगर निगम का पार्क है। इसी पार्क के अंदर 50 साल पुराना बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर है। जिस बावड़ी पर स्लैब डालकर मंदिर निर्माण किया गया था, उसी स्लैब के ढहने से 36 मौतें हुई हैं। 37 वर्षीय प्रियंका ने नवरात्र का व्रत रखा था। गुरुवार को रामनवमी के चलते मंदिर में आयोजित हवन में शामिल होने गई थी। उनके दोनों बेटे गुनित (12) और रेयांश (5) भी साथ गए थे, लेकिन थोड़ी देर बाद दोनों लौट गए। सवा 11 बजे के करीब हादसा हुआ। बावड़ी से प्रियंका को निकाल कर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उससे पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी। पत्नी की मौत से परेश टूट सा गया है। एक तरफ बच्चों को निहार रहा था, तो दूसरी ओर पत्नी के शव को।
गुस्से में परिवार के लोग, बोले- इस बावड़ी को ढंको मत, ये 36 मौतों के जख्म बयां करेगा
11 लोगों की मौत से पटेल नगर के लोगों में भारी गुस्सा है। परिवार के लोगों ने तो मीडिया वालों से भी बात करने से मना कर दिया, बोले कि क्या बताएं, क्या आप हमारे जख्म कम कर दोगे? इस बावड़ी को मत ढंको, ये 36 मौतों के जख्म को बयां करेगी।
एक साथ शाम 4 बजे सभी 11 शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। पटेल नगर के लोगों ने सबसे ज्यादा आंसू तब बहाए जब कस्तूरी बेन पटेल की अर्थी निकली। वो सबकी चहेती थीं। जिस दादी की गोद में खेलकर राघव बड़ा हुआ आज वो उसी दादी का अंतिम संस्कार करने निकला है। अपनी दादी के लिए विलाप करते देख सभी के आंसू छलक आए।
रस्सा नहीं टूटा होता तो लक्ष्मी बेन पटेल जिंदा होती
पटेल नगर निवासी लक्ष्मी बेन पटेल (70) को उसके बेटे के दोस्त हितेश पटेल ने बचाने की भरसक कोशिश की थी। जिस रस्सी की मदद से लक्ष्मी बेन को हितेश बाहर खींच रहा था, वो आधी दूरी पर ही टूट गया। हितेश को इस बात का मलाल है कि वह मां समान लक्ष्मी बेन को नहीं बचा सका। हालांकि, उसकी कोशिशों से चार जिंदगी बच गईं। ऐसी ही कहानी मयंक पटेल की भी है। मंदिर के सामने ही उसका भी घर है।
उसकी मां ज्योति पटेल और दादी रतन बेन पटेल (82) भी हवन में शामिल होने गई थीं। हादसे में दोनों बावड़ी में समां गईं। शोर सुनकर मयंक दौड़ कर पहुंचा और बावड़ी में डूब रही मां को बचाने छलांग लगा दी। मां ज्योति को तो बचा लिया, लेकिन दादी रतन बेन पटेल नहीं दिख रही थीं। काफी देर बाद उनका शव निकाला जा सका।
बेटी चार घंटे बावड़ी में संघर्ष करती रही, अस्पताल में उखड़ी सांसें
इंदौर लिंबोदी निवासी सुरेंद्र यादव की बेटी भूमिका खानचंदानी भी अब इस दुनिया में नहीं है। वह चार घंटे तक जिंदगी और मौत के बीच बावड़ी में संघर्ष करती रही। रेस्क्यू के दौरान जब उसे बाहर निकाला गया तो वो बेहोशी की हालत में थी, उसकी सांसें चल रही थीं। अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया।
भूमिका की देवरानी के दो साल के बेटे हितांश की भी इस हादसे में मौत हो गई। भूमिका अपनी छोटी बेटी वेदा (3), बड़ी बेटी एलिना(6), देवरानी भारती, देवरानी के बेटे हितांश (2) और सास दीपा खानचंदानी के साथ पटेल नगर स्थित मंदिर गई थी। कार देवरानी ही चलाकर ले गई थी। सभी ने मंदिर में हवन पूजन किया और बावड़ी के ऊपर ही बैठे थे।
मौसी की गोद में था दो साल का हितांश
भारती की सिंधी कॉलोनी निवासी बहन मनीषा भी उनके साथ थीं। हितांश को उसकी मौसी मनीषा ने गोद में लिया ही था, अचानक बावड़ी धंस गई। सभी बावड़ी में गिर गए। सास दीपा, देवरानी भारती को एक-एक कर बाहर निकाला। लेकिन भूमिका, उसकी दोनों बेटी वेदा और एलिना, देवरानी का बेटा हितांश और मनीषा का पता नहीं चल रहा था।
भूमिका की छोटी बेटी वेदा को करीब एक घंटे बाद और बड़ी बेटी एलिना को डेढ़ घंटे बाद बाहर निकाला गया। दोनों बच्चियां घबराई हुई थी। उनके हाथ-पैर और सिर में चोट लगी थी। देवरानी की बहन मनीषा की हादसे में मौत हो गई। उसकी एक साल पहले ही शादी हुई थी।
दोनों बेटियां मां को याद कर रो रही हैं....
भूमिका की दोनों बच्चियां इमरजेंसी ICU में है। अभी वो ठीक हैं लेकिन लगातार मम्मी को याद करते हुए रो रही हैं। अभी उन्हें नहीं बताया है। छोटी बेटी ज्यादा परेशान कर रही है। वो मां से मिलने की जिद कर रही है। बच्चों की दादी (दीपा) भी अस्पताल में भर्ती है। उनके लेफ्ट पांव के घुटने में ज्यादा चोट लगी है। उनका ऑपरेशन हुआ है। भूमिका और हितांश का शुक्रवार को अंतिम संस्कार किया गया। भूमिका के पति उमेश का दवाइयों का कामकाज है, जबकि हितांश के पिता प्रेमचंद निजी कंपनी में जॉब करते हैं।
बेटी ने कहा था पापा आधे घंटे बाद लेने आ जाना, पहुंचे तो मंजर ही बदल चुका था
हादसे में सर्वोदय नगर में रहने वाली करिश्मा वाधवानी (24) की भी जान चली गई। उसके छोटे भाई भरत वाधवानी ने बताया कि दीदी से आखिरी बार बुधवार को मंदिर और घर में बात हुई थी। पूजन पर मैं भी मंदिर गया था, दीदी भी साथ थी। गुरुवार सुबह मैं कोचिंग चला गया। दीदी पापा (राम वाधवानी) के साथ मंदिर गई थी। पापा उसे मंदिर में छोड़कर काम पर गए थे। दीदी ने कहा था कि आधे घंटे में आ जाना, मुझे वापस घर छोड़ देना। पापा आए तब मंदिर में भीड़ लगी थी। दीदी को ढूंढा तो वो नहीं मिली। पापा ने मां को बताया तो मैं मां को मंदिर लेकर आया। शाम 7 बजे बावड़ी से दीदी का शव बाहर निकाला गया।
तीन भाई-बहनों में करिश्मा सबसे बड़ी थी
भरत ने बताया कि ‘तीनों भाई-बहन में करिश्मा सबसे बड़ी थी। उसके बाद भाई मयूर है। पिता की सिंधी कॉलोनी में इलेक्ट्रिक की दुकान है। दीदी ने एमकॉम तक पढ़ाई की है। वो घर पर ट्यूशन पढ़ाती थी। वो हमेशा आत्मनिर्भर बनना चाहती थी। हर साल नवरात्रि में नवमी के मौके पर मंदिर जाती थी। एक दिन पहले अष्टमी पर भी परिवार के साथ मंदिर गई थी।’
बावड़ी के अंदर मलबा और ऑक्सीजन की कमी के चलते रेस्क्यू में आई मुश्किल
बावड़ी पर स्लैब डालकर ही अस्थाई मंदिर का निर्माण हुआ था। पहली बार मूर्ति के सामने हवन किया जा रहा था। लगभग 70 से अधिक लोग उस पर बैठे थे। स्लैब टूटा तो 60 से अधिक लोग बावड़ी में गिर गए थे। 24 लोगों को स्थानीय लोगों ने समय रहते बचा लिया। 36 की लाशें निकालने में प्रशासन को 24 घंटे लग गए। इसी बात ने हर इंदौरी को गुस्से से भर दिया है।
दैनिक भास्कर ने यही सवाल राहत बचाव कार्य में सेना और स्थानीय पुलिस के साथ जुटी SDRF टीम को लीड कर रहे अविनाश दिवाकर से किया। उन्होने बताया कि हम हादसे के एक घंटे बाद ही पहुंच गए थे। स्लैब के सरिया और पटिए राहत में रोड़े अटका रहे थे। सीढ़ी से हमने टीम के लोगों को नीचे उतारा। नीचे ऑक्सीजन की कमी थी। इस कारण बचाव में परेशानी आ रही थी। कोटा स्टोन का मलबा अधिक होने के चलते परेशानी आई। फिर पानी खाली कराना पड़ा। तब जाकर रेस्क्यू शुरू कर पाए। दिवाकर के मुताबिक मेरे 8 साल की नौकरी में कभी इतना बड़ा हादसा नहीं देखा था।
...30 फीट पानी व गाद में सिर के बल धंसे थे बच्चों के शव, हम सिहर उठे
NDRF हेड कांस्टेबल चंदन मिश्रा ने बताया कि कई खतरनाक रेस्क्यू ऑपरेशन किए... लेकिन यह ऑपरेशन विचलित कर देने वाला था। हमें पहले बताया गया था कि बावड़ी में पांच फीट ही पानी है, जब उतरे तो पता चला करीब 30 फीट पानी है। वह भी गाद वाला। तल में जो फंसे थे, उनमें से ज्यादातर सांस नहीं ले पाने के कारण बच नहीं सके। बावड़ी का 400 वर्ग फीट का कुंड तल में 150 फीट का था। इसी कुंड में 10 से ज्यादा शव फंसे थे। बच्चों के शव निकालने में हम सिहर उठे। डेढ़ साल के हितांश का शव सिर के बल गाद में धंसा था। 8 साल के तनीष पाल की भी यही स्थिति थी। करीब 30 फीट तक काला, जहरीला व चिकटा पानी था, जिसके कारण हम शव खींच नहीं पा रहे थे। हम सभी शव सलामत लाने के लिए प्रयास कर रहे थे। आखिरी शव सुनील सोलंकी का शुक्रवार सुबह साढ़े पांच बजे मिला। पहली बॉडी तो 15 मिनट में ही निकाल ली थी, लेकिन जैसे-जैसे बावड़ी की गहराई में उतरने लगे तो जहरीली गैस ने परेशान किया। हालांकि रेस्क्यू की टैक्टिक्स से प्रशिक्षित होने के कारण हमने खुद को सुरक्षित रखते हुए ऑपरेशन जारी रखा। इसके लिए हमें हमारे इंस्पेक्टर जीडी श्रीनिवास मीणा ने ट्रेंड किया था।
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