बुंदेलखंड की सियासत के अपने अलग ही अंदाज हैं। लेकिन, यहां के एक जिले में दो मंत्रियों के बीच कभी पटरी बैठी ही नहीं। इनमें से जूनियर ‘सरकार’ का खास है। जबकि, सीनियर का संगठन में बोलबाला है। लेकिन, जब भी कोई खास मौका आता है, पूछपरख जूनियर की ही होती है। अब महापौर से लेकर पार्षदों के लिए बनी कमेटियों को ही ले लीजिए। संभाग की कमेटी में जूनियर को संयोजक बना दिया गया, जबकि सीनियर को सिर्फ सदस्य। इतना ही नहीं, जूनियर की पसंद पर ही महापौर का टिकट तय हुआ। बता दें कि ये दोनों मंत्री मूल रूप से BJP के ही हैं।
सीनियर तो अपने लोगों को पार्षद का टिकट तक नहीं दिला पाए। सुना है कि सीनियर मंत्री अपनी अनदेखी से रूठे-रूठे हैं, लेकिन किसी को बता नहीं पा रहे हैं। हालांकि, जब उन्हें पता चला कि महापौर उम्मीदवार को जिताने की गांरटी जूनियर ने ली है, तो उन्हें थोड़ा सुकून मिला। उनके एक समर्थक की टिप्पणी- अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे… मतलब साफ है उम्मीदवार की जीत सीनियर मंत्री की मदद के बिना संभव नहीं। क्योंकि एक जाति वर्ग में उनका दबदबा जो है।
कमलनाथ का लेटर BJP के लिए बना बम
चुनाव में टिकट देने की BJP की अपनी अलग ही स्टाइल है। लोग कयास कुछ और लगाते हैं और BJP नया और चौंकाने वाला चेहरा परोस देती है। लेकिन कमलनाथ के एक लेटर से BJP अपनी इस स्टाइल को लेकर परेशान हो गई। ये लेटर कांग्रेसियों के लिए था, लेकिन BJP में बम की तरह फूटा। फरमान ये था कि पार्षद का टिकट उसे ही मिलेगा, जो उसी वार्ड का रहने वाला होगा। इसे लेकर कांग्रेस में तो ज्यादा हल्ला नहीं मचा, लेकिन BJP में कोहराम सा मच गया। सुना है कि BJP की रणनीति के मुताबिक यदि वार्ड में सशक्त कार्यकर्ता नहीं मिले तो बाहरी को मौका दिया जा सकता है। BJP में ही इसका विरोध भी हुआ। लेकिन, कमलनाथ के लेटर ने आग में घी डालने का काम किया। जबलपुर में तो एक बड़े नेता के घर उनके ही समर्थकों ने सिर्फ इस बात के लिए हंगामा कर दिया कि उन्होंने कुछ वार्डों में बाहरी को टिकट देने की पैरवी की थी। इसके बाद पार्टी पार्षदों की टिकट घोषित करने में BJP ने फूंक–फूंककर कदम रखा। और यही वजह है कि पार्षदों की लिस्ट जारी होने में देरी हुई।
मुखबिरों के भरोसे कांग्रेस के फैसले
पुराने किस्से कहानियों में राजा अपने दरबार से लेकर जनता के बीच तक अपने जासूस का जाल फैलाकर रखते थे, ताकि इधर-उधर की बातें उन तक पहुंच सके। आज के जमाने ऐसे लोगों को मुखबिर कहते हैं। MP में कांग्रेस ऐसे ही मुखबिरों की बातों पर फैसले ले रही है। कांग्रेस की इसी मुखबिरी के कारण पहले कमलनाथ के एक करीबी को पद से हाथ धोना पड़ा और अब एक व्यवसायी की अपनी पत्नी को महापौर का टिकट नहीं मिला। यह मामला मालवा के एक जिले का है। यहां से महापौर का टिकट पाने के लिए एक व्यवसायी ने कांग्रेस नेताओं के जरिए कमलनाथ तक यह खबर पहुंचाई कि शहर की जनता के बीच उनकी पकड़ मजबूत है। उनके लिए लॉबिंग करने वालों ने भी ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर उनकी तारीफ कर दी।
यही वजह है कि कमलनाथ ने इस व्यवसायी की पत्नी को टिकट देने का मन बना लिया। जब इसकी भनक ग्वालियर के नेताओं को लगी तो उन्होंने अपना एक दूत कमलनाथ के पास भेजा। जिसने सारा भेद खोल दिया। सुना है कि इस दूत ने बताया कि व्यवसायी जिस शहर से पत्नी के लिए टिकट मांग रहा है, वे वहां रहते ही नहीं है। वैसे तो वे रहने वाले मूलत ग्वालियर के हैं, लेकिन कुछ सालों से इंदोर में रहकर कारोबार कर रहे हैं। सुना है कि कमलनाथ ने अपने मुखबिर लगाकर सच्चाई का पता लगाया। तब खबर मिली कि जिसे वे महापौर उम्मीदवार बना रहे हैं, उसे लेकर बाहरी होने की हवा पहले ही बहने लगी है। फिर क्या था, कमलनाथ ने ऐन वक्त पर बाहरी के बजाय लोकल नेता की पत्नी को उम्मीदवार घोषित कर दिया।
BJP विधायक की ‘आप’ से करीबियां
बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी है। लेकिन हर कोई नेता बनना चाहता है। खासकर वो जो पहले नेता रहे, लेकिन अब उनकी कार्यकर्ताओं से भी कम पूछ-परख हो रही है। ऐसे नेता नेता बनने के लिए इधर उधर मौके खोज रहे है। बीजेपी के एक सीनियर विधायक इन दिनों दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं। सुना है कि वे आम आदमी पार्टी के नेताओं से गुपचुप तरीके से मेल-जोल बढ़ा रहे हैं। हालांकि उनकी मीटिंग अभी तक अरविंद केजरीवाल से नहीं हो पाई है। विधायक की अचानक दिल्ली दौड़ से ‘सरकार’ के यह सोच कर कान खड़े हो गए कि कोई नया गुल तो नहीं खिल रहा है? जब इंटेलीजेंस से पतासाजी कराई तो पता चला कि विधायकजी अपना भविष्य पार्टी के बाहर खोज रहे हैं। बता दें कि महाकौशल क्षेत्र के यह विधायक कई बार अपने बयानों से सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर चुके हैं।
और अंत में…
साहब वर्षों से निभा रहे पड़ोसी धर्म
सीएम सचिवालय में पदस्थ एक अफसर पड़ोसी का इतना ख्याल रखते हैं कि उनका कहीं भी ट्रांसफर तक नहीं होने देते। ताकि मकान खाली होने पर अन्य अफसर अलॉट ना करा ले। जब भी उनका ट्रांसफर होता है, सीएम सचिवालय वाले साहब रुकवा लेते हैं। पड़ोसी होने का पूरा फायदा उन्हें मिल रहा है, जबकि वे आईएएस अफसर तक नहीं है। बावजूद उनका जलवा बना हुआ है। वे जिस विभाग में पदस्थ हैं, वहां भी उनका रुतबा कायम है। मंत्रालय में चर्चा है कि पड़ोसी धर्म निभाना हो तो साहब से सीखें।
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