देखि सुदामा की दीन दशा-करुणा करके करुणानिधि रोए,पानी परात को हाथ छुओ नहीं, नैनन के जल सों पग धोए। अर्थात मित्रता ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें अपने बालसखा के लिए ईश्वर को भी नंगे पैर दौड़ते हुए दरवाजे पर आना पड़ा था।
यह बात भागवत कथावाचक जया किशोरी ने कही। वे वह नगर के सतलापुर रोड स्थित दशहरा मैदान पर चल रही साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन शनिवार को भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का प्रसंग सुनाते हुए बोल रही थी। उन्होंने कहा कि विश्व में शांति का माहौल तैयार करना है तो श्रीकृष्ण.सुदामा जैसी मित्रता को महत्व देना होगा। सच्ची मित्रता में कोई गरीब या अमीर नहीं होता। मित्रता के लिए किसी भी प्रकार की दौलत की आवश्यकता नहीं होती। सुदामा दरिद्र होते हुए भी भगवान श्रीकृष्ण के मित्र थे। सुदामा विद्वान थे। वे अपनी विद्वता से धनार्जन कर सकते थे परंतु सुदामा ने विद्वता को कभी धन कमाने का साधन नहीं बनाया। इसलिए वो गरीब होते हुए भी अमीर थे।
उन्होंने कहा कि दरिद्र सुदामा भगवान श्री कृष्ण से मिलने पहुंचे। वहां द्वारपालों द्वारा उन्हें रोक दिया गया। जिससे वह चोटिल हो गए। परंतु जैसे ही भगवान श्री कृष्ण को पता लगा कि उनके बचपन के मित्र उनसे मिलने आए हैं तो वह अपना सब राजकाज छोड़कर सुदामा से मिलने दौड़े चले आए। फिर अपने आंसुओं से सुदामा के चरण धोए। इस तरह कृष्ण सुदामा के मिलन का दृश्य देखकर पांडाल में उपस्थित लोग भावुक हो गए।
भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता के वर्णन के साथ ही कथा का समापन हो गया। इसके पूर्व सुबह के समय हवन अनुष्ठान किया गया। अंत में प्रसादी वितरित की गई।
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