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एक लाख आबादी वाले शहरों की स्वच्छता सूची में जावरा नंबर वन आए, इसके लिए नगरपालिका ने कचरा संग्रहण से लेकर उसके निपटान तक की सारी व्यवस्था ठेके पर दे दी है। सवा करोड़ रुपए में सालभर का कांट्रेक्ट लेने वाली राजस्थान की सृजन सेवा समिति (एनजीओ) पूरे शहर में 100 फीसदी कचरा कलेक्शन तथा ट्रेचिंग ग्राउंड पर कचरा प्रबंधन की सारी व्यवस्था देखेगी। यहां तक कि इस कार्य में लगे सभी कर्मचारी और मशीनरी इसी एनजीओ के अधीन रहेंगे। चार साल से नपा स्वच्छता रैंकिंग सुधारने के प्रयास कर रही लेकिन परिणाम सिफर रहे। कचरे के समूचे प्रबंधन के लिए पर्याप्त अमला, प्रशिक्षित टीम और एडवांस मशीनरी जरूरी है जो नपा के पास नहीं है। अब सुधार की उम्मीद है। नगर की आबादी करीब 85 हजार है। रोज शहर से करीब 16 टन कचरा निकलता है। गीले व सूखे कचरे को सादाखेड़ी ट्रेंचिंग ग्राउंड पर ले जाकर पृथक्कीकरण करना बड़ी चुनौती साबित हो रही है। कचरा संग्रहण के लिए नगरपालिका के पास 13 वाहन हैं। एक वाहन पूजा सामग्री संग्रहण करने के लिए है। हालांकि इनमें से 2 वाहन खराब होने से अभी सिर्फ 11 वाहन की कचरा संग्रहण करने में लगे है। इस व्यवस्था में लगे वाहनों और कर्मचारियों पर हर महीने औसत 8 से 9 लाख रुपए खर्च करने के बावजूद हम वहीं खड़े हैं, जहां चार साल पहले थे। चार साल का विश्लेषण करने और बड़े शहरों की व्यवस्था देखने के बाद नपा ने स्वच्छता को ठेके पर देने का निर्णय लिया और पिछले सप्ताह 1 करोड़ 20 लाख सालाना यानी हर महीने 10 लाख रुपए के हिसाब से प्रतापगढ़ राजस्थान की सृजन सेवा समिति को कांट्रेक्ट दे दिया। नपा सीएमओ डॉ. केएस सगर एवं इंजीनियर डिंपल परदेसी ने बताया वर्क ऑर्डर के साथ ही एनजीओ सदस्यों ने रूट मेपिंग के लिए सर्वे शुरू कर दिया है।
अब से ये तमाम कार्य कचरा संग्रहण करने वाले एनजीओ
के जिम्मे रहेंगे, नपा सिर्फ मॉनीटरिंग और भुगतान करेगी
{नगर के प्रत्येक घर से कचरा संग्रहण किया जाएगा। जो गलियां ज्यादा संकरी हैं और मौजूदा वाहन नहीं जा पाते, वहां के लिए ई-रिक्शा की व्यवस्था की जाएगी। {अब तक सिर्फ गीले व सूखे दो तरह से कचरा संग्रहण किया जा रहा था। जागरूकता मुहिम के बाद इसे चार श्रेणियों में पृथक्कीकरण किया जाएगा। {स्वच्छता को लेकर लोगों को जागरूक करना। नुक्कड़ नाटक से लेकर स्वच्छता टीम को प्रशिक्षण की व्यवस्था। ये काम एनजीओ करेगा। {कचरा संग्रहण से लेकर इसे ट्रेंचिंग ग्राउंड पर पहुंचाने से लेकर वहां पर प्रबंधन करने में लगे कर्मचारियों का वेतन, वाहनों का मेंटेनेंस व ईंधन खर्च भी एनजीओ ही वहन करेगा। {ट्रेंचिंग ग्राउंड पर कचरा पृथक्कीकरण, अपशिष्ठ प्रबंधन जैसे कार्यों के लिए नपा के पास कोई टीम नहीं है। एनजीओ यहां कर्मचारी नियुक्त कर प्रबंधन/प्रोसेसिंग को सुनिश्चित करेगा। {जो कचरा संग्रहित होगा, उसमें से 90 फीसदी कचरे का किसी न किसी रूप में उपयोग करेंगे। जैसे खाद बनाना, प्लास्टिक या कांच को रि-सेल करना आदि। सिर्फ 10 फीसदी डंप होगा। {सीआईई यानी कम्युनिकेशन, इन्फॉर्मेशन और एज्युकेशन पर एनजीओ फोकस करेगा। इसके लिए वर्कशॉप व संबंधित मुहिम चलाई जाएगी।
इस कचरे की रहेंगी चार श्रेणियां घर-घर जाकर समझाएंगे
पहला:- गीला कचरा- इसमें फल, सब्जी वेस्ट, गार्डन वेस्ट जैसे फूल, पत्ती आदि रहेंगे। यानी जो डिकम्पोजेबल है।
दूसरा:- सूखा कचरा- इसमें प्लास्टिक, पॉलिथिन, कागज, रबर इत्यादि रहेंगे। यानी जो प्राकृतिक रूप से डिकम्पोज नहीं होते। जिनका रि-यूज संभव है।
तीसरा:- हेजार्ड डस्ट वेस्ट- इसमें सेनेटरी नैपकिन के साथ ही ऐसे घरेलू मेडिकल वेस्ट जो फर्स्ट एड बॉक्स की श्रेणी में है। जिनसे प्रदूषण की आशंका रहती है।
चौथा:- ई-वेस्ट- इसमें खराब इलेक्ट्राॅनिक उपकरण जैसे बल्ब, ट्यूबलाइट, बैटरी, वायर आदि शामिल हैं।
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