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नगर में 150 कॉलोनियां हैं। इनमें से 33 वैध व नगरपालिका में हैंडओवर हैं जबकि 39 कागजी रूप से सही लेकिन डेवलपमेंट अधूरे होने से हैंडओवर होना बाकी हैं। 8 नई कॉलोनियां परमिशन के चक्कर में अटकी और 70 अवैध हैं। इनमें तो प्रशासन भी कुछ नहीं कर पाया। वहां बिना अनुमति के सारे काम हो रहे हैं। वैध व अन्य लाइसेंसी कॉलोनियों में ना केवल प्लॉट खरीदार बल्कि खुद कॉलोनाइजर परेशान हैं। नपा ने 33 वैध को छोड़कर बाकी सभी में भवन परमिशन देना बंद कर दिया है। इधर कॉलोनाइजरों का आरोप है कि प्रशासन खुद ही समय पर विकास अनुमति नहीं दे रहा। ना हैंडओवर की प्रोसेस आगे बढ़ा रहा। ऐसे में परेशानी बढ़ती जा रही है। यदि कॉलोनाइजर विकास नहीं करे तो प्रशासन को एक्शन लेना चाहिए। काम करना चाहे तो समय पर अनुमति दें। दोनों मामले में काॅलोनाइजर व प्रशासन एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदार। आमजन को क्यों परेशान किया जा रहा है। भवन निर्माण अनुमति नहीं दे रहे तो प्लॉट रजिस्ट्री रोकना चाहिए। शासन को रेवेन्यू नुकसान ना हो इसलिए अवैध व खेतों में कटे प्लॉट की रजिस्ट्री धड़ल्ले से करवा रहा और दूसरी तरफ निर्माण अनुमति नहीं दी जा रही है। ये कथनी व करनी में अंतर जैसा है। अवैध कॉलोनियों में विकास कार्य नहीं करने से लोग परेशान हैं। इसलिए प्रशासन ने सितंबर 2020 में आठ कॉलोनाइजरों पर एफआईआर की थी। इसका उद्देश्य कॉलोनियों में डेवलपमेंट करवाना था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि 70 अवैध कॉलोनियां को लेकर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। जो काम करना चाहते हैं, उन्हें प्रशासन समय पर परमिशन व अन्य कागजी कार्रवाई पूरी करके नहीं दे रहा। ये आरोप कॉलोनाइजरों एवं प्रॉपर्टी ब्रोकरों के हैं। भवन परमिशन नहीं मिलने तथा नामांतरण नहीं होने से परेशान कॉलोनाइजर व प्रॉपर्टी ब्रोकर शुक्रवार शाम एसडीएम राहुल धोटे से मिलने भी पहुंचे। कॉलोनाइजर एसोसिएशन के प्रदीप कोठारी, राकेश कोचट्टा, ओम नागर, आकाश दसेड़ा, प्रतीक राठौर, प्रॉपर्टी ब्रोकर एसोसिएशन के हेमंत श्रीमाल, अनिल चोपड़ा, पिंटू सोनी, पुखराज भावसार, श्याम सोनी, नरेश ललवानी, लवेश सोनी, किशन सोनी, इस्माइल मंसूरी, सुनील शर्मा, जाकिर छीपा व गुड्डू बापू ने एसडीएम से कहा कि जो कॉलोनियां कागजी रूपी से सही हैं और जिनमें विकास कार्य प्रगतिरत हैं, उनमें मकान निर्माण परमिशन दीजिए। कॉलोनाइजरों को तमाम अनुमतियों के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस सुविधा दें क्योंकि हर छोटे-बड़े आवेदन के लिए रतलाम जाना पड़ता है। कभी नपा तो कभी टीएनसीपी की दौड़ लगाना पड़ती है, फिर भी समय पर काम नहीं हो रहा। कॉलोनाइजरों व प्रॉपर्टी ब्रोकरों ने नगरपालिका द्वारा नामांतरण के वक्त लिया जा रहा एक प्रतिशत शुल्क बंद करने की मांग भी की। एसडीएम ने आश्वासन देकर लौटा दिया। नपा तो पहले ही हाथ खड़े कर देती है कि हमारे हाथ में कुछ नहीं है। हम सुपरविजन देखते हैं, परमिशन एवं कार्रवाई के अधिकार कलेक्टर के पास हैं।
3 साल का लाइसेंस, डेढ़ से दो साल तो अनुमति में निकल जाता है, काम कैसे करें : कॉलोनाइजर
1. कॉलोनाइजर शौकत खान ने कहा कि अमरदीप कॉलोनी में विकास परमिशन के लिए तमाम कागजी कार्रवाई पूरी कर नपा में आश्रय निधि जमा कर दी। फिर कलेक्टोरेट से आठ महीने हो गए विकास परमिशन नहीं मिली। काम शुरू नहीं कर पा रहे हैं। टीएनसीपी से डेढ़ साल पहले नक्शा अप्रूवल करवाया जिसकी मियाद तीन साल है। डेढ़ साल से ज्यादा हो गया, कागजी कार्रवाई प्रशासन ने पूरी नहीं की। अनुमति मिलते-मिलते ही दो साल हो जाएंगे तो डेवलपमेंट कब करेंगे। प्रशासन खुद सुन नहीं रहा और एफआईआर के नाम से डरा रहा है। 2. अनिल दसेड़ा ने कहा कि राजेंद्र जैन परिसर का काम 2018 में पूरा हो गया। हैंडओवर के लिए मई 2018 को आवेदन दिया। सीएमओ ने लिखकर दिया था कि सारा काम पूरा है। आज तक हैंडओवर नहीं की। वैध को अवैध बताकर एफआईआर कर दी। शिव महिमा रेरा अप्रूव्ड है। हर तीन महीने में रेरा रिपोर्ट लेता है। उसमें भी निर्माण परमिशन नहीं दे रहे। जो अधिकारियों ने कहा वे सारे आवेदन दिए। प्रशासन को चाहिए कि कॉलोनी परमिशन व हैंडओवर प्रक्रिया के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू करे। कमी बताएं और काम पूरे करवाकर हैंडओवर करें।
कॉलोनाइजर नियम से आवेदन व काम पूरा करें
^नीति-नियम के अनुसार विभागों की रिपोर्ट, एस्टीमेट एवं जरूरी दस्तावेज के साथ आवेदन देंगे तो पेंडेंसी नहीं रहेगी। जिन्हांेने नियम से काम नहीं किए उन पर हमने एफआईआर भी की है। जहां तक हैंडओवर की बात है तो जब तक विकास कार्य पूरे नहीं होंगे, तब तक हैंडओवर की कार्रवाई संभव नहीं है। कॉलोनाइजर नियम से आवेदन व काम पूरा कर रिपोर्ट पेश करें तो काम समय पर होंगे। गोपालचंद डाड, कलेक्टर, रतलाम
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