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जतारा तहसील क्षेत्र के चंदेरा गांव के हायर सेकंडरी स्कूल के पास पहली बार पंच कल्याणक गजरथ महोत्सव का आयोजन चल रहा है। जिसमें बुंदेलखंड भर के जैन समाज के लोग शामिल हो रहे हैं। गुरुवार को कार्यक्रम के दौरान गर्भ कल्याणक का आयोजन किया गया।
गर्भ कल्याणक के दौरान मुनिश्री सुप्रभ सागर ने कहा कि अहंकार को छोड़कर जो जीव संस्कारों को प्राप्त करता है, वही आत्मा परमात्मा बनती है, क्योंकि जिसके अंदर संस्कार नहीं उसका कोई आकार नहीं। जिस आत्मा ने गर्भ से ही संस्कारों को प्राप्त किया, उस परमात्मा का हम सभी गर्भ कल्याणक मना रहे हैं। जिस जीव ने गर्भावस्था में ही परमात्मा बनने के संस्कारों को प्राप्त किया, वही जीव अपने स्वयं के कल्याण के साथ-साथ प्राणी मात्र के कल्याण के लिए साधना बना।
मुनिश्री ने कहा कि आज हर व्यक्ति यही सोचता है कि मेरा बेटा राम बने, महावीर बने, लेकिन वह यह नहीं सोचता कि हमें अपनी संतान को महावीर और राम बनाने से पहले स्वयं भी सिद्धार्थ और दशरथ बनना होगा। जब कोई संतान गर्भ में आती है, तो मां का मन कई चीजों को खाने का करता है जैसे मिट्टी और चटपटा, लेकिन जब कोई विशेष पुण्यात्मा जीव गर्भ में आता है, तो मां को तीर्थ वंदना, भगवान के दर्शन, ग्रंथों के दर्शन होते हैं।
तीर्थंकर भगवान भी गर्भ में जब आते हैं, तो माता को शुभ सोलह स्वप्न आते हैं। जिसका फल होता है कि तीर्थंकर जैसा महान पुण्य आत्मा जीवित मां के गर्भ में आने वाला है, जो कि तीनों लोकों के प्राणियों का कल्याण करने वाला है और इसी कारण से वह मां भी लोक में पूज्यता को प्राप्त होती है, जैसे कि हम घर में प्रवेश करने से पहले देहरी को पूजते हैं, वैसे ही तीर्थंकर भगवान की मां की भी पूजा की जाती है।
इस खोटे पंचकाल में साक्षात तीर्थंकर परमात्मा का जन्म संभव नहीं है। परमात्मा को स्मरण करें, तो भले ही अरिहंत को जन्म न दे सकें, लेकिन निग्रंथ को तो अवश्य जन्म दे सकते हैं। उसके लिए भी संस्कार जरूरी हैं।
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