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47वें खजुराहो नृत्योत्सव की तीसरी शाम पश्चिमी मंदिर समूह के कंदारिया महादेव मंदिर और देवी जगदंबा मंदिर के मध्य बने विशाल मुक्ताकाशी मंच पर 3 नृत्य प्रस्तुतियां हुईं। पहली प्रस्तुति में सौरव-गौरव मिश्रा ने कथक युगल नृत्य पेश किया, प्रियाल भट्टाचार्य एवं साथियों ने नृत्य मार्ग नाट्य और सुलग्ना बैनर्जी एवं राजदीप बैनर्जी ने कथक एवं भरतनाट्यम की युगल प्रस्तुति दी।
तीसरी शाम की बनारस घराने के कथक नृत्यकार सौरव एवं गौरव मिश्रा ने लयात्मक एवं संगीत के समन्वय में शानदार कथक नृत्य की मनमोहन प्रस्तुति दी। उन्होंने भगवान शंकर की आराधना से शुरुआत करते हुए जब “धिनक डमरू पाणी, सूर्य पाणी है नटराज नमो नमः’’ वंदना के रूप में नृत्य किया तो दर्शक भाव विभोर हो गए और विशाल परिसर करतल ध्वनि से गुंजायमान हो उठा। सौरव-गौरव मिश्रा ने तीन ताल पर कथक नृत्य पर पारंपरिक तरीके से आमद- तोड़ा के माध्यम से बनारस घराने की विशेषता को प्रस्तुत किया। कला प्रेमियों ने तालियां बजाकर नृत्यकारों का स्वागत किया।
मिश्रा बंधुओं ने अपनी अंतिम प्रस्तुति भी भगवान शंकर की आराधना के साथ दी। उन्होंने जब “डिमिक डिमिक कर डमरू बाजे, प्रेम मगन नाचे भोला’’ पर नृत्य किया तो लगा जैसे खजुराहो के मुक्ताकाशी मंच पर स्वयं भगवान शिव तांडव करने अवतरित हो गए हैं।
उन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम को भी नृत्य माध्यम से प्रस्तुत कर “कन्हैया जी ने ऐसा जादू डाला के तोरे कारण चुरा ले गई निंदिया’’ पर अभिनय युक्त नृत्य किया। जो दर्शकों को खूब भाया, यह नृत्य लाइव संगीत पर रहा। जिसमें बोल-पड़न गुरु रवि शंकर तबले पर, अंशुल प्रताप सिंह पखावज पर, प्रीतम कुमार मिश्रा संतोष कुमार मिश्रा वोकल पर एवं सारंगी पर संगीत मिश्रा ने संगत की।
दर्शकों ने मार्ग नाट्य नृत्य को सराहा
दूसरे चरण में पियाल भट्टाचार्य और साथियों ने भरत मुनि के नाटय शास्त्र पर आधारित ‘नृत्य मार्ग नाट्य’ का मंचन किया। उन्होंने प्राचीन आकर्षक वेशभूषा एवं मुखौटा आदि के साथ चित्र पूर्वा रंगा की प्रस्तुति ‘अश्वरना विधि नृत्य गीत अभिनय’ आदि का संयोजन कर नृत्य मंचन किया। यह ‘मार्ग नाट्य नृत्य’ खजुराहो नृत्योत्सव के 47 साल के इतिहास में पहली बार शामिल किया गया है।
कलाकारों का देह संचालन अद्भुत
इसका इतिहास भले ही नाट्य शास्त्र में भरत मुनि से जुड़ा है। पर नृत्यकार पियाल भट्टाचार्य ने इस नृत्य शैली को 2 दशक पहले ही विकसित किया है। इस नृत्य में मनमोहक देह संचालन वेशभूषा अलंकार आदि ने दर्शकों के बीच दिनों दिन ख्याति अर्जित कराई।
मीरा भजन व तराना पर सोले नृत्य खूब भाया
अंतिम चरण की प्रस्तुति में नृत्यांगना सुलग्ना बनर्जी एवं राजदीप बनर्जी ने भरतनाट्यम और कथक नृत्य को युगलबंदी के रूप में प्रस्तुत किया। जिसमें अर्धनारीश्वर को नृत्यकारों ने अतुलनीय मुद्राओं से दर्शकों को अर्धनारीश्वर के रूप का साक्षात्कार कराया। यह नृत्य ताल झपताल एवं राग तीन ताल में निबद्ध था। इसके उपरांत कथक नृत्य को सोलो के रूप में करते हुए शुद्ध कथक नृत्य किया, जिसमें ताल धमाल, राग तीन ताल पर गत, निकास, श्रृंगार आदि का मिश्रण था।
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