गढ़ोला जागीर में चल रहे श्री राम महायज्ञ एवं गौ कथा में छठवें दिन शनिवार को यज्ञाचार्य रामचरण शास्त्री ने कहा कि आध्यात्मिक राष्ट्र के रूप में भारत भूमि प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति धर्माधिष्ठित संस्कृति है। भारतीय संस्कृति रूपी अनेक शाखाओं, प्रशाखाओं से युक्त इस विशाल प्राचीनतम अक्षय वट के मूल और तने की खोज की जाए तो निश्चित रूप से यह खोज वैदिक वाङ्मय पर पूर्ण होगी। आचार्य शिवनारायण शास्त्री ने कहा कि भारतीय धर्म तथा दर्शन के प्राण वेद हैं। वैदिक ऋषियों ने इन्हीं के आधार पर जीवन पद्धति का निर्माण किया। इसका अविरल प्रवाह ही भारतीय संस्कृति में प्रवाहित हो रहा है।
वेद अक्षय विचारों का मानसरोवर हैं। पंडित अमित कटारे ने कहा कि भारतीय संस्कृति में जो जीवन-शक्ति दृष्टिगोचर होती है उसका मूल कारण वेद है। भारत में उत्पन्न किसी भी धर्म, पंथ, मत, दर्शन अथवा संप्रदाय के मूल में जाना है तो वेद में जाना होगा। पंडित शिवम शास्त्री ने कहा कि प्रभु भक्ति से मनुष्य का मन निर्मल होता है। प्रत्येक जीव भक्ति का अधिकारी है। भक्ति से जीव के सभी कर्म बंधन समाप्त हो जाते हैं। गौ कथा में पंडित विपिन बिहारी महाराज ने कहा कि विशुद्ध अन्त:करण से की गई प्रार्थनाएं शांति प्रदात्रि एवं आनंद साम्राज्य द्वार की कुंजियां हैं। जब तक अंतःकरण की निर्मलता प्राप्त नहीं होती तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस जन्म में मानव ने जो-जो कर्म किए हैं। पुनर्जन्म में वही बुद्धि और प्रेरणा उसे प्राप्त होती है।
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