सतना जिले में भगवान राम के धाम चित्रकूट में एक गुफा मिली है, ये गुफा चित्रकूट के पास बहने वाली गुप्त गोदावरी के ही नजदीक है। प्रशासन को भी ग्रामीणों ने ही इसकी जानकारी दी है। अब विशेषज्ञ इस गुफा की पड़ताल करेंगे। मझगवां के SDM ने बताया कि गुफा बाहर से तो संकरी है, लेकिन अंदर काफी जगह है। अंदर पुरातन काल की नक्काशियां बनी हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि गुफा गुप्त गोदावरी की मुख्य गुफाओं से लगभग 300 मीटर दूर है। जिस स्थान पर गुफा मिली है, वह चित्रकूट नगर पंचायत के वार्ड नंबर 15 चौबेपुर में आता है। गुफा सूखी है और इसमें जाने का रास्ता भी संकरा है। गुफा जमीन से 10 फीट ऊपर है, इसलिए यहां जाना भी आसान ही है। ग्रामीणों के जरिए गुफा की जानकारी मिली तो प्रशासन भी यहां पहुंचा।
SDM लेटकर गुफा में घुसे
मझगवां SDM प्रभाशंकर त्रिपाठी ग्रामीण लल्ला पांडे के साथ पहाड़ी पर मिली गुफा में गए। गुफा के प्रवेश द्वार पर मिट्टी जमी हुई है, इस वजह से द्वार काफी संकरा है। इस वजह से SDM लेटकर गुफा में घुसे। लेकिन जैसे ही थोड़ा अंदर गए तो पता चला कि गुफा अंदर से काफी बड़ी है। 25 मीटर लंबी गुफा के अंदर काफी जगह है। यहां लोग खड़े हो सकते हैं, चल फिर भी सकते हैं। अंदर काफी अंधेरा था।
गुफा डेढ़ मीटर चौड़ी है। टॉर्च जलाकर देखा तो पता चला कि दीवारों पर नक्काशी भी बनी हुई है। जिससे ये लगता है कि कभी किसी जमाने में लोग यहां रहते होंगे। गुफा के अंदर रोशनी के लिए कोई साधन नहीं है। इससे लगता है कि गुफा में रोशनी प्रवेश द्वार से ही आती होगी। लेकिन मुहाने पर मिट्टी इक्ठ्ठा होने के कारण द्वार काफी संकरा हो गया है।
पुरात्तव विभाग को पत्र भी लिखा
एसडीएम त्रिपाठी ने बताया कि गुफा वन विभाग के अधीन है। इस बारे में वन विभाग के अधिकारियों से चर्चा की जा रही है। वे गुफा की सफाई कराएं और प्रवेश द्वार दुरुस्त भी करें। गुफा की जानकारी और पुरातात्विक महत्व के बारे में जानने के लिहाज से पुरातत्व विभाग को भी पत्र लिखा है।
ग्रामीण पांडे ने बताया कि गुप्त गोदावरी के पास मिली इस नई गुफा तक पहुंचने का रास्ता काफी आसान है। गोदावरी किनारे पहले मिली दोनों गुफाओं की ऊंचाई काफी ज्यादा है। वहां तक सीढ़ियों के जरिए जा सकते हैं। लेकिन यह नई गुफा मात्र 10 फीट की ऊंचाई पर है। यहां पहुंचना कोई दुर्गम नहीं है।
पंचवटी से गुप्त रूप से आई थी गोदावरी
लोक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम के वनवास के दौरान पंचवटी से गोदावरी नदी गुप्त रूप से चित्रकूट आई थी। भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण यहां रहते थे। चूंकि, गोदावरी यहां गुप्त रूप से आई थीं, इसलिए इसका स्थान का नाम गुप्त गोदावरी पड़ गया। गुप्त गोदावरी के पास की दो गुफाओं में से एक में जलधारा का अविरल प्रवाह होता है। जिसका उद्गम गुफा के अंदर स्थित एक प्राकृतिक कुंड से है। गुफा से बाहर निकल कर जलधारा लुप्त हो जाती है। गुफा की छत पर लाइम स्टोन के चिकने पत्थरों का कटाव देखने में धनुषाकार है। पूरी गुफा के अंदर कहीं घुटने तक तो कहीं उससे थोड़ा ऊपर तक जल बहता रहता है। इसी जल में प्रवेश कर लोग यहां दर्शन-पूजन करते हैं।
दूसरी गुफा में भी दो जलकुंड
गुप्त गोदावरी की दूसरी गुफा में भी दो जलकुंड हैं। हालांकि, यह गुफा सूखी है। इनमें से एक जलकुंड वह है, जिससे जलधारा का उद्गम है जबकि दूसरे जलकुंड को सीता कुंड कहा जाता है। जनश्रुति है कि माता सीता यहां स्नान करती थीं। एक दिन मयंक नाम के दानव ने उनके वस्त्र चुराने का प्रयास किया। उसका दुःसाहस देख क्रोधित हुए लक्ष्मण ने तीर चलाकर उसे उल्टा टांग दिया। तब से वह गुफा की छत पर उल्टा लटका हुआ है। अब उस स्थान पर एक पत्थर दिखता है। जिसे खटखटा चोर माना जाता है। इस पत्थर की खासियत है कि इसे छेड़ने पर इसमें से खटखट की आवाज आती है।
चित्रकूट की गुफाओं-कंदराओं में तपस्या करते हैं साधु-संत
माना जाता है कि भगवान श्रीराम की भूमि चित्रकूट के वनांचल के पहाड़ों में ऐसी तमाम गुफाएं और कंदराएं हैं, जहां आज भी साधु- संत तपस्या करते हैं। हालांकि, अभी ऐसी कंदराओं और गुफाओं का पता लगाने का विशेष प्रयास कभी सरकारी तौर पर किया नहीं गया। जबकि, स्थानीय लोगों के दावों पर यकीन किया जाए तो अगर यहां गुफाओं की खोज की जाए तो अभी कई और रहस्य भी सामने आ सकते हैं।
हनुमान धारा में भी निकलती है पहाड़ से
माना जाता है कि चित्रकूट के कण-कण में भगवान श्रीराम हैं। सतना जिले में आने वाले MP के हिस्से के चित्रकूट में तमाम ऐसे धार्मिक और पौराणिक महत्व के स्थान हैं, जहां भक्त अपनी आस्था के फूल समर्पित करते हैं। पावन सलिला मंदाकिनी के रामघाट से कुछ ही दूरी पर भगवान कामतानाथ विराजमान हैं। आपदा हरण करने वाले कामदगिरि पर्वत की प्रदक्षिणा कर भक्त कामतानाथ भगवान से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
हनुमानधारा में पवन पुत्र हनुमान ऊंचे पर्वत शिखर पर विराजमान हैं।इस पर्वत से जलधारा निकलती है। जो बजरंगबली के कंधे पर आ कर गिरती है। फिर एक कुंड में समा जाती है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को यहां स्थान दिया था ताकि वे लंका दहन के कारण उत्पन्न धधक को इस जलधारा से शांत कर सकें। इसके अलावा यहां गुप्त गोदावरी, सती अनुसुइया आश्रम, स्फटिक शिला, सीता रसोई जैसे धार्मिक स्थल भी हैं।
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