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नवरात्रि में शहर में चारों तरफ मां की आराधना कर पूजा हो रही है, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि गुरुवार को एक मां आधे दिन तक अपनी बेटी के इलाज के लिए अस्पतालों में भटकती रही। कहीं रुपए नहीं होने के कारण उपचार नहीं मिला तो सरकारी अस्पताल में भी उपचार की सुविधा नहीं मिली। शुक्र है कि दर्द से कराहती बेटी को संभालती मां को एक महिला समाजसेविका की मदद मिली। उन्होंने जनसहयोग से राशि एकत्रित कर पीड़िता का उपचार कराया।
रतलाम फाटक के पास जबरन कॉलोनी में रहने वाली धूलीबाई ने बताया कि उनकी 23 वर्षीय बेटी आरती की दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। पेट में ही गर्भस्थ शिशु की मौत हो जाने से जहर फैलने की वजह से किडनियां फेल होना बताया गया है।
पिछले करीब एक साल से प्रत्येक सप्ताह में तीन बार डायलिसिस कराना पड़ती है। सिविल हॉस्पिटल में बीपीएल के लिए डायलिसिस नि:शुल्क है, लेकिन यहां मरीजों की संख्या अधिक रहने के कारण जगह नहीं मिलती। वहीं जनसेवा में एक बार की डायलिसिस के लिए लगभग 2 हजार रुपए का शुल्क लगता है। रुपयों के अभाव में गुरुवार दोपहर धूलीबाई बेटी आरती को डायलिसिस कराने के लिए सिविल हॉस्पिटल पहुंची, लेकिन वहां संबंधित कर्मचारियों ने जगह नहीं होने की बात कहकर उनकी डायलिसिस करने से इनकार कर दिया।
इस बीच महिला समाजसेविका हेमलता तोमर अस्पताल पहुंची तो उन्होंने भी आरती के डायलिसिस करने के लिए सिविल हॉस्पिटल और जनसेवा के डाॅक्टराें से चर्चा की। कोई निराकरण नहीं निकला तो तोमर ने स्वयं एवं जनसहयोग से राशि एकत्रित कर आरती की जनसेवा में डायलिसिस करवाई।
बेटी की जिंदगी बचाने के लिए घर तक गिरवी रख दिया
धूलीबाई घरों में जाकर खाना बनाने काम करती थीं, लेकिन कोरोना और बेटी की देखभाल के चलते पिछले कई महीनों से वह यह काम भी नहीं कर पा रही है। पति दिलीप की मृत्यु हो चुकी है। एकमात्र घर का सहारा था, लेकिन बड़ौदा में बेटी आरती का उपचार कराने के लिए घर भी गिरवी रखना पड़ा।
आरती का पति बदनावर के समीप एक गांव में रहता है और गाड़ी चलाने का काम करता है। उसने भी उपचार के लिए रुपए देने से इनकार कर दिया है। नवंबर 2019 से बेटी के उपचार में धूलीबाई 4 लाख रुपए से अधिक खर्च कर चुकी हैं, लेकिन अब उनके पास रुपए नहीं हैं। इसलिए अब इलाज के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है।
संपन्न लोग भी करवा रहे इलाज, इसलिए नहीं मिलती जगह
समाजसेविका तोमर ने आरोप लगाया कई ऐसे लोग हैं, जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं, लेकिन फिर भी वे सिविल अस्पताल में नि:शुल्क डायलिसिस पिछले कई महीनों से करवा रहे हैं। इससे जरूरतमंदों को यहां डायलिसिस के लिए जगह नहीं मिल पाती। हंगामे के बाद सप्ताह में दो डायलिसिस की मंजूरी मिल पाई।
युवती की अब सप्ताह में दाे दिन कराई जाएगी डायलिसिस
पूर्व से डायलिसिस के मरीज उपचाररत हैं। संबंधित मरीज की मृत्यु होने या कहीं और शिफ्ट होने के बाद ही जगह खाली होती है। डायलिसिस के लिए आई युवती को सप्ताह में 2 डायलिसिस की जगह फिर भी दी गई है।
-डॉ. कमल सोलंकी, बीएमओ
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