कर्म का उदय:पूर्व भव के पुण्य-पाप का फल इस भव में दु:ख-सुख के रूप में मिलता है -साध्वीश्री

खाचराैद3 वर्ष पहले
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सभी जानते है जीव अकेला आया है, अकेला ही जाएगा। कभी सुख होता है कभी दु:ख होता है। अपने कार्य के स्वरूप ही कर्म का उदय होता है और हम कहते हैं हमने तो किसी के साथ गलत किया ही नहीं फिर भी हमारे साथ कोई घटना घटी तो क्यूं। पर यह नहीं समझते कि पूर्व जन्म में कर्मों का उदय है। यह बात साध्वी अविचलदृष्टा श्रीजी ने बुधवार काे लिमड़ावास स्थित पौषधशाला में धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा हम इतने आलसी हो गए हैं कि पंखा, कूलर, बल्ब बिना वजह भी चल रहे हैं तो उसे उठकर बंद नहीं करते हैं। टीवी-एसी के लिए भी रिमोट आ गया है। आप उसे व्यर्थ में बंद और व्यर्थ में चालू करते हैं। उसे बंद और चालू करने की घटना में एकेन्द्रिय जीव की उत्पत्ति होती है। चालू करने पर जीव पैदा होता है और बंद करने में उसकी मृत्यु हो जाती है। श्रावक के जीवन में क्रियाकलाप करने पर हिंसा तो होती है परंतु आवश्यकता नहीं होने पर बिना विवेक जो जीवों की उत्पत्ति होती है, उससे श्रावक जीवन में कर्मों का उदय होता है। 18 दिवसीय पुण्य कलश तप आराधना आज से- मीडिया प्रभारी नमित वनवट ने बताया कि प्रवचन के अलावा अनेक धार्मिक आयोजन भी चल रहे हैं। उसी क्रम में 18 दिवसीय महाप्रभावशाली पुण्य कलश तप आराधना गुरुवार से शुरू हाेगी, जाे 26 जुलाई तक जारी रहेगी। तप के तहत 1 दिन उपवास और 1 दिन बियासना कर तप को अपने जीवन के कर्मों की निर्जरा से बचाया जा सकता है।

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