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पोरवाल विकास समिति के नाम पर फर्जी तरीके से बसाए गए पोरवाल नगर के फर्जीवाड़े को तहसीलदार न्यायालय ने भी मानते हुए लिखा है कि समाज के लोगों के साथ फर्जी तरीके से प्लॉट बेचने के नाम पर अनुबंध किए गए। जबकि न तो भूमि का डायवर्शन करवाया गया और न ही पोरवाल विकास समिति के नाम पर कोई पंजीयन पाया गया।
यह अपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है। इस मामले में अब जिम्मेदारों पर कार्रवाई होना तय है। इधर नगर पालिका की एक रिपोर्ट में भी समिति के नाम पर अवैधानिक रूप से 15 लाख रुपए बैंक में रखे जाने की जानकारी सामने आई है।
करीब 20 साल पहले पोरवाल विकास समिति के नाम पर केवल कागजों पर ही पोरवाल नगर कॉलोनी बनाकर 99 समाजजनों को धोखे में रखते हुए प्लॉट देने के नाम पर विक्रय अनुबंध किए गए थे। अनुबंध के साथ ही समाजजनों से लाखों रुपए की राशि भी ले ली गई थी लेकिन 20 साल भी समाजजनों को न प्लॉट दिए गए और न ही रुपए वापस दिए गए।
समाज के सदस्य कैलाशचंद्र पिता सिद्धूलाल पोरवाल निवासी रानी लक्ष्मीबाई मार्ग, ओमप्रकाश पिता मांगीलाल पोरवाल निवासी तिलक मार्ग, गोरधनलाल पिता प्रभुलाल पोरवाल निवासी जवाहर मार्ग, पूरालाल पिता शंकरलाल पोरवाल निवासी जैन कॉलोनी जवाहर मार्ग, शकुंतला पति हरिवल्लभ पोरवाल निवासी जवाहर मार्ग और स्व. हरिवल्लभ पिता लक्ष्मीनारायण पोरवाल द्वारा पोरवाल विकास समिति के नाम से एक समिति का गठन किया गया था। जबकि ऐसी किसी समिति का पंजीयन ही नहीं करवाया गया।
इन लोगों ने 1999 में पाड़ल्याकलां में जमीन खरीदी और समाजजनों को इस पर पोरवाल नगर कॉलोनी बसाने का भरोसा दिलाकर प्लॉट देने के लिए विक्रय अनुबंध किए गए थे। इस मामले में पीड़ितों की ओर से एडवोकेट एसके साहू के माध्यम से शिकायत की गई थी।
एडवोकेट साहू ने बताया हाल ही में तहसीलदार न्यायालय द्वारा इस मामले में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि संबंधितों ने फर्जी तरीके से अनुबंध किया और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में भी 15 लाख रुपए अवैधानिक रूप से रखे हैं। चूंकि कार्रवाई का क्षेत्राधिकार तहसीलदार न्यायालय के पास नहीं है, इसलिए प्रतिवेदन एसडीएम को भेजा जाएगा। साहू ने कहा चूंकि अपराधिक कृत्य सामने आ चुका है, इसलिए अब जल्द कार्रवाई की जाना चाहिए।
टिप्पणी में लिखा- समाजजनों के साथ आपराधिक श्रेणी का कृत्य
तहसीलदार न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि अनावेदकों द्वारा डायवर्शन कराए बिना भूमि के प्लॉटों का अनुबंध कर दिया गया। भूमि किसी विकास समिति के नाम पर भी दर्ज नहीं है। इसके अतिरिक्त अनावेदकगणों द्वारा सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 15 लाख रुपए अवैधानिक रूप से रखे गए हैं, जिससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि अनावेदकगणों द्वारा समाज के व्यक्तियों के साथ फर्जी तरीके से अनुबंध कर और उनके 15 लाख रुपए अवैधानिक तरीके से रखे जाकर दुरुपयोग किया गया है। समाज की संस्था भी विधिवत पंजीकृत नहीं है, जो समाजजन के साथ आपराधिक श्रेणी का कृत्य किया जाना प्रतीत होता है।
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